जो हुआ वही असली सच्चाई है...!
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फिल्म ‘फुले’ में महात्मा ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले पर बायोपिक की घोषणा अप्रैल 2022 में की गई थी, जिसमें प्रतीक गांधी और पत्रलेखा मुख्य कलाकार के रूप में थे। अनंत महादेवन द्वारा निर्देशित इस फिल्म का उद्देश्य भारत में सामाजिक सुधार और शिक्षा में युगल के योगदान को दर्शाना है। दोनों न केवल पात्रों से प्रभावित हुए, बल्कि फिल्म निर्माण की प्रक्रिया के बारे में जानने के लिए भी उत्साहित हो गए। फिल्म का निर्माण ज़ी स्टूडियोज, डांसिंग शिवा फिल्म्स और किंग्समैन प्रोडक्शंस द्वारा किया गया है।
महात्मा ज्योतिबा फुले और सावित्रीबाई फुले के जीवन पर आधारित हिंदी फिल्म ‘फुले’ को शुरू में सेंसर बोर्ड द्वारा ‘यू’ प्रमाणपत्र दिया गया था। हालांकि, कुछ संगठनों के दबाव के कारण सेंसर बोर्ड ने फिल्म से कुछ संवाद और दृश्य हटाने का आदेश दिया, जिससे विवाद और बढ़ गया। फिल्म के दृश्यों की उनकी प्रकृति, विवाद के पीछे के कारणों और महात्मा फुले के विचारों के विरोध के कारण आलोचना की गई जो आज भी जारी है। इसमें महार, मांग, पेशवाई, मनुस्मृति जैसे शब्दों और जाति व्यवस्था का उल्लेख करने वाले ‘व्हाईस ओवर’ को हटा दिया गया, इससे फिल्म के प्रदर्शन में देरी हुई। यह फिल्म ज्योतिराव फुले की जयंती 11 अप्रैल को प्रदर्शित होने वाली थी। लेकिन किसी कारणवश यह फिल्म 25 अप्रैल 2025 को प्रदर्शित हुई। हालांकि, प्रदर्शन से पहले और बाद में यह फिल्म काफी विवादों में घिरी रही। फिल्म के कुछ दृश्यों पर ब्राह्मण महासंघ और हिंदू महासंघ जैसे संगठनों ने आपत्ति जताई थी। निर्देशक और निर्माताओं ने दावा किया कि फिल्म ऐतिहासिक सत्य पर आधारित है। वंचित बहुजन आघाड़ी के अध्यक्ष प्रकाश अंबेडकर ने इस पर कड़ी नाराजगी जताते हुए कहा, ‘फिल्म में महात्मा फुले की कल्पना और सच्चाई को दिखाया गया है, सेंसर बोर्ड का इसमें हस्तक्षेप करना गलत है’।
महाराष्ट्र की सभी महान ऐतिहासिक हस्तियों द्वारा किए गए कार्य, देश की आजादी और जमीनी स्तर के समाज के पुनरुत्थान के लिए उनके प्रयास, उनके द्वारा झेले गए संघर्ष, परिस्थितियों के अनुसार लिए गए उनके निर्णय और उस समय की उनकी वैचारिक क्षमता, ये सारी बातें आज के समय में नई बहस का रूप ले चुकी हैं। ऐसे में किसी महान व्यक्ति की जीवन गाथा को पर्दे पर उतारते समय भी निर्देशक का उस विषय पर देखने का अलग नजरिया महत्वपूर्ण हो जाता है। ‘फुले’ को देखते हुए, इस फिल्म के पीछे अनंत महादेवन की अनूठी सोच को महसूस किया जा सकता है।
फिल्म ‘फुले’ का ट्रेलर रिलीज होने के बाद ब्राह्मण महासंघ के अध्यक्ष ने फिल्म की आलोचना की। उन्होंने कहा, “फिल्म के कुछ दृश्यों में ब्राह्मण समुदाय को ही दोषी ठहराया गया है। ट्रेलर में एक ब्राह्मण लड़के को सावित्रीबाई फुले पर गोबर फेंकते हुए दिखाया गया है। ब्राह्मण समुदाय ने भी महात्मा फुले का समर्थन किया था, लेकिन फिल्म में केवल नकारात्मक पहलू ही दिखाए गए हैं। उन्होंने मांग की, कि फिल्म को समावेशी बनाया जाए, अन्यथा इससे सांप्रदायिक विभाजन बढ़ेगा”। इस आलोचना का जवाब देते हुए रिपब्लिकन पार्टी के सचिन खरात ने कहा, “अतीत में कई फिल्मों में बहुजन समाज के पात्रों को केवल सैनिक या कांस्टेबल के रूप में दिखाया जाता था और किसी ने इस पर आपत्ति नहीं जताई”। अब जब सच्चाई सामने आ रही है तो मनुवादियों की सांसें अटकी हुई हैं। उन्होंने ब्राह्मण महासंघ के अध्यक्ष को मनुस्मृति जलाने की भी चुनौती दी।
विवाद पर स्पष्टीकरण देते हुए फिल्म के निर्देशक अनंत महादेवन ने कहा कि यह फिल्म कई पुस्तकों और ऐतिहासिक दस्तावेजों का अध्ययन करने के बाद बनाई गई है। फिल्म में दिखाई गई हर बात सत्य पर आधारित है और सत्य के साथ न्याय करने का प्रयास किया गया है। हमने किसी जाति का अनादर नहीं किया है। इसके विपरीत यह फिल्म दोनों समुदायों के बीच जातिगत मतभेदों को खत्म करने का काम करेगी। इस फिल्म के प्रदर्शन के दौरान कुछ जाति संगठनों के लोगों के बीच अनावश्यक विवाद पैदा हो गया। जिसमें उन्होंने आपत्ति जताने वालों से अनुरोध किया कि वे फिल्म का ट्रेलर देखने के बाद प्रतिक्रिया न दें। उन्होंने यह भी कहा कि ब्राह्मण संगठनों ने दो मिनट के ट्रेलर के आधार पर निष्कर्ष निकाल लिया है।
सभी धर्मों के लिए समानता और समान न्याय की वकालत करनेवाले महात्मा ज्योतिबा फुले स्वयं आर्थिक रूप से संपन्न परिवार से थे। ज्योतिबा, जिन्होंने अपने ब्राह्मण मित्रों के साथ स्कॉटिश मिशनरी स्कूल में पढ़ाई की थी, स्कूल छोड़ने के बाद पहली बार समाज में जातिगत भेदभाव के बारे में जागरूक हुए। उन्हें अपने मित्र के घर आयोजित विवाह समारोह से बाहर निकाल दिया गया क्योंकि वह शूद्र थे। उन्होंने महसूस किया कि यदि हम अपने समाज में व्याप्त अन्याय और लोगों के जीवन में व्याप्त अंधकार को दूर करना चाहते हैं तो शिक्षा के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं है। शिक्षा के प्रति अडिग ज्योतिबा ने अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले के साथ मिलकर जो काम शुरू किया, वह किस तरह इस एक विचार और थॉमस पेन की पुस्तक ‘राइट्स ऑफ मैन’ के प्रभाव से आकार ले सका? निर्देशकों ने फिल्म ‘फुले’ में इसे सरल तरीके से प्रस्तुत किया है।
महात्मा फुले ने 19वीं सदी में जाति प्रथा, अस्पृश्यता और महिला शिक्षा के प्रति रूढ़िवादिता को चुनौती दी। उन्होंने 1848 में पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल शुरू किया और सत्यशोधक समाज की स्थापना करके समानता के विचार को बढ़ावा दिया। किसानों का दुःख और ब्राह्मण का पेशा जैसी अपनी रचनाओं में उन्होंने ब्राह्मणवाद और जाति व्यवस्था की कड़ी आलोचना की। फिल्म ‘फुले’ को लेकर विवाद सिर्फ सिनेमा को लेकर नहीं है, बल्कि महात्मा फुले की विचारधारा पर आधारित है। फुले ने जाति व्यवस्था पर हमला करते समय कोई समझौता नहीं किया। उन्होंने कहा था कि किसी को भी दूसरे के धर्म से ईर्ष्या या नफरत नहीं करनी चाहिए। लेकिन समानता के उनके विचार का अभी भी कुछ समूहों द्वारा विरोध किया जाता है क्योंकि यह उनके एकाधिकार को चुनौती देता है। यह विवाद दर्शाता है कि महात्मा फुले के विचार आज भी समाज के कुछ वर्गों को परेशान करते हैं। फिल्म तो एक माध्यम मात्र है, लेकिन कुछ लोग इससे उभरने वाली इतिहास की सच्चाई और कठोर वास्तविकताओं को स्वीकार नहीं करते। इसीलिए, चाहे हकीकत में हो या सिनेमा, महात्मा फुले से नफरत करनेवाले लोग आज भी उनके विचारों का विरोध करते हैं और उन्हें दबाने की कोशिश करते हैं।
फिल्म ‘फुले’ पर उठे विवाद ने एक बार फिर महात्मा फुले के कार्यों और विचारों की प्रासंगिकता को उजागर किया है। यह विवाद केवल फिल्मों तक सीमित नहीं है, बल्कि समाज में गहरी जड़ें जमाए बैठे जाति और सत्ता समीकरणों से जुड़ा है। फुले ने कहा था, ‘केवल वे ही लोग धारा के विपरीत तैर सकते हैं जिनका दृढ़ निश्चय होता है’। आज भी उनके विचार समाज का मार्गदर्शन करते हैं, लेकिन साथ ही कुछ लोगों के लिए वे असुविधा का कारण भी बन जाते हैं। इस विवाद के समाप्त होने के बाद भी फुले के विचार और विरासत प्रेरणा देते रहेंगे। हाल ही में महाराष्ट्र विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित कर समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले को मरणोपरांत ‘भारत रत्न’ प्रदान करने की सिफारिश की। केंद्र सरकार ने भी सर्वसम्मति से एक प्रस्ताव पारित कर सिफारिश की है कि समाज सुधारक महात्मा ज्योतिराव फुले और सावित्रीबाई फुले को देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ से सम्मानित किया जाए।
नागपुर, महाराष्ट्र