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ऑथर्स गिल्ड आफ इंडिया की बहुभाषी काव्य गोष्ठी संपन्न


नागपुर/दिल्ली। देश की प्रख्यात संस्था 'ऑथर्स गिल्ड आफ इंडिया' द्वारा 6 जून 2025 को शाम 4:30 बजे आभासी बहुभाषी काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर अध्यक्षता करते हुए डॉ. सरोजिनी प्रीतम की क्षणिकाएं आकर्षण का केंद्र रही - 'वे बताते हैं / जब से गाय सी कन्या / घर में आई है/ सभी उसे नोच नोच कर खाते हैं'। 
उन्होंने काव्य गोष्ठी को सफल बताया और कहा, संस्था के साथ जुड़े हुए दक्षिण से उत्तर तक के साहित्य कार अपनी- अपनी अंचल भाषाओं में काव्य प्रस्तुत कर एकात्मकता का दृश्य साकार किया। इस कार्यक्रम की प्रमुख अतिथि हैदराबाद चैप्टर की संयोजक डॉ. अहिल्या मिश्रा ने इसे सफल निरूपित करते हुए भारत में फैलती अशांति पर अपने  विचार व्यक्त करते हुए कविता सुनाई - 'कौन लीपे गोबर आंगन, कौन जलाए तुलसी बाती, नए युग की नई फसल अब मॉडर्न हुए सब साथी।'

कार्यक्रम की प्रस्तावना संचालन व आभार संस्था के महासचिव डॉ. शिव शंकर अवस्थी ने माना। उनकी कविता थी - 'मेरी तमन्नाओं का नगर बस जाता अगर, अच्छे बच्चों के सर होता ताज, ऐसे लोगों का होता राज।' कार्यक्रम में, हिंदी, पंजाबी, मलयालम, तमिल, गुजराती, कन्नड़ और अन्य भाषाओ में कवियों ने प्रस्तुति दी। 

कार्यक्रम की शुरुआत पंजाबी भाषा की कविता से 'डॉ. सुदेश भाटिया विद्यासागर' दिल्ली ने सिंदूर ऑपरेशन पर प्रहार करते हुए कहा - 'आज स्वर्ग दे विच किन शोर मचाया, धरम दा पता पुछ पुछ  मारदे जांदे'।
गुरु प्रताप शर्मा उमरेड ने 'ईश्क मेरा आजादी', नेहा कौशिक ने 'एक छोटी सी चिड़िया', आर पार्वती चेन्नई ने हिंदी में 'दर्द', डॉ. सी जे प्रसन्न कुमारी तिरुवंतपुरम ने मलयालम में बसंत के मौसम की बहार और फूलों का जिक्र किया तो अंजली अवस्थी दिल्ली के सकारात्मक बोल - 'पड़ाव भी जरूरी है आगे बढ़ने के लिए, ठहराव उपरांत पुनः गतिशीलता के लिए ।'

डॉ. आशा मिश्रा 'मुक्ता' हैदराबाद की 'सायकल' दूर गांव की सड़क पर चली , 'शिप्रा मिश्रा' चंपारण, ने स्त्रियों को प्रवासी बताते हुए पूछा उन्हें तथागत की उपाधि क्यों नहीं मिलती ,युवा 'चंदा जी' के बोल थे वक्त थोड़ा ही बचा हंसने हंसाने के लिए और 'ऋता शेखर 'मधु' बंगलुरू ने वोटरों को जाग्रत करने का प्रयास कुंडलियों में यूं किया, 'याद रहे हर बार सही सांसद लाना है, जो करता है कुछ काम उसे ही लाना है'।
पुष्पन आशा रिक्कुनू केरला मलयालम भाषा में 'अंडेड्योरानो' शीर्षक से, पूर्णिमा एस तमिल में प्राण और शरीर को केंद्र में रख दर्शन दिया, प्रदीप गौतम सुमन रीवा ने गीत 'तुमको अपना बनाना चाहा', राम वल्लभ गुप्त इंदौरी 'कैसा लोकतंत्र', 'बड़ी पार्टियां', जनता बगले झांके आदि कई रूपक गढ़े वहीं मधु पाटोदिया नागपुर की यथार्थ सत्य "मेरी अपनी कहानी" के बोल थे - 'रसोई बोली मेरा सब काम निराला, कुआं बोला मेरे जल को सजा ले, सीप में बदल मोती सा क्लेवर ले'।

केरल से पी बी रमादेवी "हिंदी" में शीर्षक 'धरती काया' , वी ए वर्गीश ने मलयालम में 'मणिपुर के आंसू' कविता में गांधारी , पांचाली के उदाहरण दिए, प्रो हरीश अरोड़ा दिल्ली ने 'दहलीज' के माध्यम से खोजो पानी की आवाज, गीता विजय कुमार केरला ने आशावादी कवित में कहा 'धरती में हम साथ साथ रह सकते हैं,' श्रीदेवी चेन्नई के बोल 'बाबुल का आंगन' के माध्यम से नारी की चाहत को प्रस्तुत किया कुछ पल और ठहर जाते, के बाद अरुण कुमार पासवान 'इकरो इकरो मकान' की सुंदर पंक्तियों उपरांत, कुमारी किरण की 'हमारा पर्यावरण' के माध्यम से गायब होती कूक और कोयल का प्रश्न उठाया, सुजाता दास भिलाई ने नए तीन आपराधिक बदलाव के नियमों की काव्य व्याख्या की, जे सी बत्रा मेरठ ने 'सिरामि', मुल्तानी में, प्रभा मेहता नागपुर ने गुजराती 'हम समुद्र हो जाएं ', बालकृष्ण महाजन का हास्य व्यंग्य 'विश्व पर्यावरण' मंत्री को बुलाया गया एक पौधा लगाया गया तो मुकेश अग्रवाल दिल्ली का सिंदूरी आसमान शीर्षक गीत 'हर्षित कर देता है अचानक आए काले बादल, ढक लेते हैं उसको / दिनकर का अंत नहीं होता'

नरेंद्र सिंह परिहार नागपुर 'घेवर मिर्च सा प्यार', डॉ. श्याम मनोहर सिरोठिया बैंगलोर से 'मैने तो गीतों की रचना कर दी/ तुमने मेरे गीतों को प्राण दिया है ।' की सुंदर अभिव्यक्ति के बाद पूरी महफिल को जिस गीत ने आकर्षित किया और काव्य गोष्ठी का समापन किया वह प्रो युवराज सिंह युवा आगरा के बोल 'जल रहा है जिगर, तप रहा है बदन, प्यार करते हो तो सबको बता दीजिए'।
इस कार्यक्रम में देश के अंचल से 63 कवियों ने नाम दर्ज किया, कई कवि  जैसे समय मर्यादा के कारण सुना नहीं सके। हर दो महीने में आयोजन का वायदा कर सफल गोष्ठी का आभार डॉ. अवस्थी ने माना और व्यवस्था के लिए बछौतिया, संदीप शर्मा को बधाई दी। 
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