राजनीतिक प्रवृत्तियों और चालाकियों पर व्यंग्य लिखें : डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी
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व्यंग्यधारा समूह की ओर से डॉ. चतुर्वेदी पर केंद्रित ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन
नागपुर। राजनीतिक प्रवृत्तियों और चालाकियों पर व्यंग्य लिखा जाना चाहिए। यह बात हमारे समय के महत्वपूर्ण व वरिष्ठ व्यंग्यकार डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी (भोपाल) ने कही। व्यंग्यधारा समूह की ओर से डॉ. चतुर्वेदी पर केंद्रित 'डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी एकाग्र' विषय पर 178वीं ऑनलाइन संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर वे बोल रहे थे। संगोष्ठी में डॉ. चतुर्वेदी की तीन रचनाओं की प्रस्तुति के बाद विमर्श किया गया। डॉ. चतुर्वेदी ने अपने व्यंग्य 'मलबे के मालिक', ललिता जोशी (नई दिल्ली) ने डॉ. चतुर्वेदी के व्यंग्य 'इतिहास की आड़' और संजय पुरोहित (बीकानेर) ने 'मार्निंग वॉक पर अफसर' का प्रभावी ढंग से पाठ किया।
विमर्श पर अपनी बात रखते हुए डॉ. चतुर्वेदी ने कहा कि नामजद व्यंग्यों का जीवन होता नहीं है।
व्यंग्यकार की भाषा और शैली कहन को मजबूत करने वाली होनी चाहिए। परसाई जी के लिखे संवाद अब यथार्थ में तब्दील हो गए हैं। अभिधा में व्यंग्य लिखना परसाई जी ने सिखाया है। व्यंग्य लेखन की भाषा में शरद जोशी जी के बाद मैंने प्रयोग किए हैं। व्यंग्यकारों को यह पहले तय करना होगा कि क्या करना है। उन्होंने सलाह दी कि पुरस्कार के लिए न लिखें। ऐसा लिखें कि पुरस्कार आपके पीछे आएंगे। युवा व्यंग्यकार लिखने पर ज्यादा ध्यान दें, छपने पर नहीं। व्यंग्य लिखने की जल्दबाजी नहीं होनी चाहिए। रातोरात स्टार बनने की कोशिश न करें। साहित्य में कोई सुपरस्टार नहीं होता। साहित्य में रोज उदय और अस्त होता है।
आरंभ में विषय प्रवर्तन करते हुए वरिष्ठ व्यंग्यकार रमेश सैनी (जबलपुर ) ने कहा कि व्यंग्य के वर्तमान परिदृश्य में हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, रवींद्रनाथ त्यागी, लतीफ घोंघी, अजातशत्रु आदि की पीढ़ी ने साहित्य में व्यंग्य को हंसी-ठहाका से बाहर निकाल कर जीवन और मानवीय सरोकार से जोड़कर व्यंग्य को विधा के रूप स्थापित करने के लिए जद्दोजहद और जो श्रम किया, उस योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता है। उसके बाद वाली पीढ़ी ज्ञान चतुर्वेदी, प्रेम जनमेजय, हरीश नवल, अंजनी चौहान, रमेश सैनी और उनके समवर्ती व्यंग्यकारों ने स्थापित व्यंग्य की अवधारणा को सुदृढ़, पवित्रता और धार को बनाए रखा और व्यंग्य को विधा के रूप में स्थापित करने में योगदान दिया। इनमें ज्ञान चतुर्वेदी के नरक यात्रा, बारहमासी, मरीचिका, पागलखाना, स्वांग, एक तानाशाह की प्रेमकथा आदि उपन्यास पाठकों के दिलो- दिमाग छाए हुए हैं और आज का व्यंग्य विमर्श भी उनकी रचनात्मकता पर केंद्रित है।
विशिष्ट वक्ता व वरिष्ठ व्यंग्यकार सुभाष चंदर ने कहा कि 'मॉर्निंग वॉक पर अफसर' व्यंग्य में विट और आयरनी का बेहतरीन प्रयोग किया गया है। बहुत बढ़िया व्यंग्य रचना है, जो अफसरशाही और लालफीताशाही को बेनकाब करती है। बहुत कम रचनाएं अभिधा में लिखी गई हैं। अभिधा में प्रसंगवक्रता लाकर व्यंग्य लिखा है। व्यंग्य में बताया गया है कि चलते-फिरते अफसर की रगों में अफसरी बहती है। संकेतों और प्रतीकों के माध्यम से बात कही गई है।
विशिष्ट वक्ता व वरिष्ठ व्यंग्यकार राजेंद्र वर्मा ने डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी के व्यंग्य 'इतिहास की आड़' का विश्लेषण करते हुए कहा कि यह वैचारिक रूप से एक मुकम्मल रचना है। यह रचना गंभीर विमर्श की मांग करती है। इस व्यंग्य में छुपा हुआ प्रहार है। इतिहास पुरुष का सत्ता कैसे इस्तेमाल करती है यह दर्शाया गया है। आजकल इतिहास का कैसे लाभ उठा सकें यह चल रहा है। व्यंग्य की एक-एक पंक्ति पाठक को उद्वेलित करती है। इस व्यंग्य में जनपक्षधरता स्पष्ट है। बहुत वेरिएशन है। पठनीयता भी बनी रहती है। आज राष्ट्रवाद सत्ता काबिज करने का एक हथियार बन गया है। उन्होंने कहा कि परसाई जी के सरोकार और शरद जोशी के भाषाई चमत्कार को मिला दिया जाए तो चतुर्वेदी बन जाएंगे।
विशिष्ट वक्ता व वरिष्ठ व्यंग्यकार विनोद साव (दुर्ग) ने 'मलबे के मालिक' रचना का विश्लेषण करते हुए कहा कि इस व्यंग्य में डॉ. ज्ञान चतुर्वेदी ने छद्म को उद्घाटित किया है। छठमुखी कला को पकड़ा है- अपने आदमी के लिए टेंडर निकलेंगे। लेखक व्यवस्था की छाती पर सवार होकर बघनखे से कुरेद रहा है। व्यंग्य के केंद्र में राजनेताओं की जुमलेबाजी है-नया भारत बनाना है। इसमें दर्शाया गया है कि किस तरह राजनीति नारेबाजी को उठाती है। बिना नारा कोई पार्टी या नेता नहीं चल सकता। इस व्यंग्य से उन्होंने सिद्ध किया है कि लक्षणा और व्यंजना के बिना भी अभिधा में शक्तिशाली व्यंग्य लिखा जा सकता है। भाषा सरल, लेकिन पूरी तरह सेंध मारी है नया भारत बनाने वालों पर। समकालीनों में परसाई जी छोटी, लेकिन प्रभावी रचना लिखा करते थे। चतुर्वेदी जी ने प्रतिबद्धता को लेकर लेखन किया है। देशद्रोह और देशभक्ति अब महत्वपूर्ण नहीं है देशद्रोह के आरोपी को पाला बदलने पर देशभक्ति का पुरस्कार मिलेगा। अब युद्ध और शिक्षा को भी निवेश की तरह देखा जाता है। नागरिकों को मुख्यधारा से काट दिया जाता है। व्यंग्य लेखक की चिर-परिचित भाषा नहीं है। पहले की तरह खुरदरापन नहीं है।
गोष्ठी में तकनीकी सहयोग और संचालन सहभागिता डॉ. रमेश तिवारी (दिल्ली) की रही। संचालन रमेश सैनी (जबलपुर) तथा आभार प्रदर्शन टीकाराम साहू 'आजाद' (नागपुर) ने किया।
व्यंग्यधारा की गोष्ठी में सेवाराम त्रिपाठी, रामस्वरूप दीक्षित, राजशेखर चौबे, विवेक रंजन श्रीवास्तव, डॉ. महेंद्र कुमार ठाकुर, अरुण अर्णव खरे, रेणु देवपुरा, प्रमोद तांबट, डॉ. तीरथसिंह खरबंदा, डॉ. किशोर अग्रवाल, डॉ. प्रमोद कुमार चमोली, मधुर कुलश्रेष्ठ, परवेश जैन, डॉ. मुकेश असीमित, अभिजीत दुबे, मुकेश राठौर, सुमित प्रताप सिंह, ऋषभ जैन, सूर्यदीप कुशवाहा आदि की उपस्थिति उल्लेखनीय रही।