स्कूलों में भावनात्मक बुद्धिमत्ता क्यों है आज की सबसे बड़ी ज़रूरत
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आज जब हम कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI), डेटा साइंस और टॉप रैंकिंग की होड़ में लगे हैं, तब एक सबसे अहम बुद्धिमत्ता को हम नजरअंदाज़ कर बैठे हैं - भावनात्मक बुद्धिमत्ता (Emotional Intelligence)। एक शिक्षक, अभिभावक और नीति-निर्माता के रूप में यह सवाल पूछना ज़रूरी है: क्या हमारे बच्चे भावनात्मक रूप से जीवन की चुनौतियों से लड़ने के लिए तैयार हैं? अफसोस, इसका जवाब है - नहीं।
भावनात्मक बुद्धिमत्ता क्या है?
भावनात्मक बुद्धिमत्ता का अर्थ है - अपनी और दूसरों की भावनाओं को पहचानना, समझना, नियंत्रित करना और सकारात्मक रूप से व्यक्त करना। इसमें आत्म-जागरूकता, सहानुभूति, आत्म- नियंत्रण, लचीलापन और सामाजिक कौशल शामिल हैं - जो न केवल मानसिक स्वास्थ्य के लिए, बल्कि जीवन की सफलता के लिए भी अत्यंत आवश्यक हैं। हमारा शैक्षणिक सिस्टम कठोर है। विद्यार्थी कम उम्र में ही परीक्षा, प्रतियोगिता और करियर की दौड़ में झोंक दिए जाते हैं। इस भागदौड़ में उनकी भावनाएं दबा दी जाती हैं।
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 5.6 करोड़ से अधिक लोग अवसाद (डिप्रेशन) से पीड़ित हैं — जिनमें बड़ी संख्या स्कूली और कॉलेज विद्यार्थी की है। 15– 29 वर्ष की आयु में आत्महत्या भारत में मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है। क्या ये आंकड़े हमें झकझोरने के लिए काफी नहीं?
स्कूलों में भावनात्मक बुद्धिमत्ता क्यों ज़रूरी है?
1. मानसिक स्वास्थ्य में सुधार : यह बच्चों को तनाव, असफलता और दबाव से निपटने की क्षमता देता है।
2. बेहतर रिश्तों का निर्माण : सहानुभूति और समझदारी से भरे विद्यार्थी स्कूल का माहौल और सामाजिक परिवेश बेहतर बनाते हैं।
3. शैक्षणिक प्रदर्शन में वृद्धि : भावनात्मक रूप से संतुलित विद्यार्थी ज्यादा केंद्रित, प्रेरित और आत्मविश्वासी होते हैं।
4. जीवन की तैयारी : इंटरव्यू, ऑफिस, विवाह, रिश्ते—हर जगह भावनात्मक बुद्धिमत्ता ही काम आती है।
5. बुलीइंग और हिंसा में कमी : भावनात्मक जागरूकता से झगड़े, तंज़ और मानसिक हिंसा जैसे मामलों में स्पष्ट गिरावट देखी गई है।
यह कोई विलासिता नहीं - ज़रूरत है
हम बच्चों को गणित और विज्ञान सिखाते हैं, लेकिन अस्वीकृति, असफलता और अकेलेपन से लड़ना नहीं सिखाते। हम उन्हें बोर्ड परीक्षा के लिए तैयार करते हैं, लेकिन ज़िंदगी की परीक्षा के लिए नहीं।
भावनात्मक बुद्धिमत्ता कोई ‘सॉफ्ट स्किल’ नहीं - यह जीवन कौशल है। इसे कहानियों, भूमिकाओं का अभिनय (role-play), जर्नल लेखन, समूह चर्चा और माइंडफुलनेस गतिविधियों के ज़रिए आसानी से कक्षा में शामिल किया जा सकता है।
स्कूल की भूमिका
हर स्कूल में एक काउंसलर, इमोशनल चेक- इन, और पीयर सपोर्ट ग्रुप होना चाहिए। नई शिक्षा नीति में हो सही क्रियान्वयन NEP 2020 में समग्र विकास की बात तो है, लेकिन उसे केवल कागज पर नहीं, जमीन पर लाना होगा। हमें ऐसे नागरिक तैयार करने हैं जो दिमाग से नहीं, दिल से भी सोच सकें।
कुछ प्रेरणादायक उद्धरण : ‘मन को शिक्षित करना ज़रूरी है, परंतु हृदय को बिना शिक्षित किए वह अधूरी शिक्षा है’। - अरस्तू
'भावनाएं कमजोरी नहीं, समझदारी की निशानी हैं'। ‘बुद्धिमत्ता वह है जो ज्ञान के साथ करुणा को भी जोड़ती है'। ‘अगर हम बच्चों को रोना सिखाए बिना सफलता सिखाएंगे, तो वे अंदर से टूट जाएंगे'।
आइए आज यह संकल्प लें -
बच्चों के मन के साथ उनके मनोबल को भी पढ़ाना शुरू करें। अंक के पीछे भागते भागते इंसानियत को ना खो दें। आज की शिक्षा को भावनाओं की ज़ुबान देना वक्त की मांग है।
- प्रणोंती बागडे
नागपुर, महाराष्ट्र