देश के वीर सैनिकों के बलिदान की तुलना में हम कहा है?
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कारगिल विजय दिवस विशेष 26 जुलाई
देश के वीर सैनिक देश का गौरव हैं, जो देश की रक्षा के लिए सदैव कर्तव्य पथ पर तैनात रहते हैं। चाहे कैसी भी आपदा या संकट हो, वे डरते नहीं हैं; चाहे चिलचिलाती धूप हो या खून जमा देने वाली ठंड, घने जंगल हो, ऊँचे पहाड़ हो या मानसूनी तूफान, देश का सैनिक अपनी भूमिका बखूबी निभाता है। कई स्थितियों में भूखे-प्यासे रहकर, असुविधाओं से जूझकर, मौत को आगे देखकर भी वह जवान कभी पीछे नहीं हटते, बहादुर सैनिक अपने कर्तव्य और देश की रक्षा के लिए शहीद हो जाते हैं। देश के वीर सैनिकों के प्रति जो सम्मान, आदर और गर्व हमारे मन में है, क्या उतना ही सम्मान देश के वीर सैनिकों के मन में हमारे लिए है? देश में हर दिन नए विवाद और नई समस्याएँ उत्पन्न होती नजर आती है। संगीन अपराधो का ग्राफ तो ऐसा तेजी से बढ़ रहा है कि, छोटे-छोटे बच्चे भी उनमें सक्रीय नजर आते है। रिश्तों को कलंकित करने वाली घटनाएं तो अब रोजाना ही देखने-सुनने मिलती है। लोगों के लिए मर्यादा, पवित्रता, सत्यनिष्ठा, कर्तव्यपरायणता, विश्वसनीयता, सहनशीलता, स्वाभिमान, आत्मसन्मान जैसे शब्दों का मोल खत्म होकर लालच, द्वेष, उग्रता, धोखाधड़ी, झूठ, दिखावा, भ्रष्टाचार, अश्लीलता, चापलूसी, जालसाजी, कथनी-करनी में अंतर और स्वार्थ आ गया है। हर कोई अपने स्वार्थ के लिए पर्यावरण, समाज और देश को अनावश्यक रूप से खोखला करने का प्रयास कर रहा है। देश में लोगों की ऐसी परिस्थिति को देखकर वीर जवान को क्या महसूस होता होगा? क्या कभी लोगों के मन में वीर जवानों की भांति जीने का ख्याल नहीं आता।
1999 के कारगिल युद्ध में पाकिस्तान पर भारत की विजय के उपलक्ष्य में कारगिल विजय दिवस हर साल 26 जुलाई को मनाया जाता है। यह दिवस उन भारतीय सैनिकों की बहादुरी और बलिदान का सम्मान करता है जिन्होंने पाकिस्तानी सेना द्वारा कब्जाए गए भारतीय क्षेत्र को पुनः प्राप्त करने के लिए लड़ाई लड़ी थी। कारगिल विजय दिवस चुनौतीपूर्ण ऊँचाई वाली परिस्थितियों में लड़ने वाले जांबाज भारतीय सैनिकों के साहस, वीरता और बलिदान को दर्शाता है। यह दिवस भारत की अपनी संप्रभुता और अखंडता की रक्षा के दृढ़ संकल्प का प्रतीक है। कारगिल विजय दिवस राष्ट्रीय गौरव और स्मरण का दिवस है, जो वीरता और बलिदान की कहानियों से भावी पीढ़ियों को प्रेरित करता है। देश में ऐसे विजय दिवस हमें हर पल प्रेरित करते है, साथ ही यह भी गौरव होता है कि देश की सुरक्षा भारतीय सैनिकों के हाथों में महफूज है। लेकिन उनकी तुलना में जब हम अपने आसपास का वातावरण देखते है तो लगता है कि क्या, हम जैसे स्वार्थी लोगों के लिए देश का जवान सरहद पर इतनी तकलीफे सहता है।
नेता चुनाव के बाद 5 साल होते ही फिर जनता के बीच जाकर अभिनय कला शुरू कर देते है और चुनाव खत्म होते ही पूर्व की भांति हो जाते है, कई नेता तो चुनाव के प्रचार के वक्त आम जनता के घर, खेत और कार्यस्थल में जाकर भी लोगों के काम में हाथ बटाते हुए मीडिया में छाए नजर आते है। जनता को भोला कहे या मूर्ख, जनता जिस नेता को जनप्रतिनिधि चुनकर जनकल्याण के लिए 5 साल के कार्यकाल के लिए ऊंचे-ऊंचे पद पर विराजमान करती है, अगर वह नेता योग्य नीति से जनकल्याण कार्य करने में असफल होता है तो, उस नेता से जवाब पूछने में चुनकर देनेवाली जनता खुद ही डरती है। कितने लोग अपने नेता, सांसद, विधायक, पार्षद या अपने इलाके के संबंधित जनप्रतिनिधियों से सवाल पूछते हैं या जवाब मांगते हैं? एक नेता जितना ऊंचा पद धारण करता है, वह जनता के प्रति उतना ही अधिक जिम्मेदार और जवाबदेह होता है। अगर देश के नेता अपनी जिम्मेदारी और फर्ज को पूरी सत्यनिष्ठा और देशप्रेम से वीर जवानों की भांति निभाए, तब देश में कोई समस्या ही नहीं रहेगी।
मैं अपने जीवन के छोटेसे अनुभव को आप सभी के साथ सांझा कर रहा हूँ, मैं महाविद्यालयीन शिक्षा प्राप्त करने के दौरान राष्ट्रीय कैडेट कॉर्प्स का भी छात्र रहा, तब हम छात्र सैन्य कैंप में जाकर बहुत कुछ सीखते थे, दिसंबर की ठंड में जंगल के उस एनसीसी कैंप में रात भर हर छात्र की ड्यूटी 2 घंटे के लिए टेंट के बाहर सुरक्षा के तौर पर लगायी जाती थी, रात के 1 बजे या 3 बजे हो छात्र को नींद से जागकर, पूरी वर्दी पहनकर, तैयार होकर टेंट के बाहर हमें संत्री की ड्यूटी करनी पड़ती थी। 25 किलोमीटर लगातार जंगल ट्रैकिंग करना, अपने-अपने टेंट की जमीन को रोज गोबर से पोतना, विविध स्पर्धाओं में भाग लेना। सुबह 5 बजे उठकर, तैयार होकर रिपोर्टिंग करना, रोज बिना शिकायत के अपना पूरा काम खुद करना, तय समय पर नास्ता, दोपहर और रात का खाना खुले घास के मैदानों में बैठकर करना। दिनभर के काम से शरीर इतना थक जाता था कि लेटते ही गहरी नींद लग जाती थी, थोडीसी भी गलती पर सख्त सजा मिलती थी। देश के कोने-कोने से आने वाले छात्र अपनी विविध कला-कौशल का बेहतर प्रदर्शन करते थे। सामूहिक कार्य, सद्भावना, देशप्रेम, तत्परता, निष्ठा, लगन, मेहनत, समर्पण भाव का एक अनूठा संगम देखने मिलता था और उसका एक भाग बनकर गर्व होता था। वो दिन मुझे जीवन में बहुत कुछ सीखा गए, जीवन में नियम और अनुशासन बेहद जरुरी है।
समस्याओं की जड़ को समझने के बजाय लोग बाहरी आवरण को देखकर या झूठे दिखावे का शिकार होकर अपनी धारणाएं बनाकर समस्याओं को अधिक बढ़ा देते हैं। प्रत्येक के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा, उन्नत स्वास्थ्य सुविधाएँ और योग्यता के अनुसार रोज़गार या व्यवसाय सेवा, एक मज़बूत देश की पहचान हैं। अपने जीवन की मूलभूत आवश्यकताओं से जुड़ी समस्याओं के प्रति जागरूक हुए बिना हम बेकार की चीजों पर ध्यान केंद्रित करते हैं और आपस में लड़ते-झगड़ते हैं, जिनका हमारे जीवन से कोई संबंध नहीं होता। विश्वास नहीं होता लेकिन, समाज में 8-11 साल के बच्चे 4-5 साल की बालिका के बलात्कार में दोषी होने की घटनाएं हो रही है। अभिभावकों को बच्चों के साथ या उनके सामने कैसा व्यवहार करना है, यह तक पता नहीं है। मोबाइल, सोशल मीडिया, फैशन ने बच्चों से उनका बचपन, मासूमियत छीन ली है। वीर शहीद जवानों, महापुरुषों, क्रांतिकारी देश भक्त, समाज सुधारकों, पराक्रमी राजा-महाराजाओं की प्रेरणात्मक गाथा को जानने के लिए बजाएं आजकल फिल्मी सितारों, ऑनलाइन गेम्स, टाइम-पास मनोरंजन, फूहड़ता को देखने-जानने के लिए अपना कीमती समय गवांते हैं। लोग सिर्फ़ जीभ के स्वाद के लालच के कारण अस्वास्थ्यकर भोजन पसंद करते हैं। मानवीय आलस्य, नशाखोरी, प्रदूषण और मिलावट ने शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को कमज़ोर कर दिया है, लेकिन लोग स्वास्थ्य महत्व नहीं देते, जो सबसे ज़रूरी बात है।
स्वतंत्रता दिवस, गणतंत्र दिवस जैसे एक दिन के लिए हम आम लोगों में देशभक्ति जागती है, खूब तिरंगे खरीदकर घूमते-फिरते, रैली निकालते है, देशभक्ति के गानों में सराबोर हो जाते है, खूब इंजॉय करते है और दूसरे दिन हमारे आसपास सड़कों पर, कूड़े में, जहा-तहा वे तिरंगे ध्वज खराब अवस्था में पड़े हुए होते है। देश के तिरंगे ध्वज को इतना सस्ता ना बनाओ कि खिलौने की भांति खेलकर दूसरे दिन वह कूड़े में मिलें। ध्वज की कीमत पैसे से नहीं अपितु देश के सम्मान से है, जिसकी कोई कीमत नहीं हो सकती। इसी तिरंगे की रक्षा और सम्मान की खातिर वीर जवान बलिदान देता है, फिर उस जवान की तुलना में हम लोग कहा है। आजादी का यह पर्व हमें किन स्थितियों में, कितने त्याग, संघर्ष और बलिदानों के बाद मिला, क्या कभी इसका एहसास हमारे मन-मस्तिष्क को झंझोड़ता है? आजादी के लिए असंख्यों ने अपना सब कुछ खो दिया ताकि हम लोग यह दिन देख सकें। देश के प्रत्येक नागरिक, नेता हो या मामूली कर्मचारी, मालिक हो या नौकर, व्यवसायी हो या मजदूर सबने अपने जीवन के कुछ साल देश सेवा के लिए सैनिक के रूप में जरूर देना चाहिए, ताकि अनुशासन, देशभक्ति और कर्तव्यपरायणता का असल मतलब जान पाएं।
लेखक - डॉ. प्रितम भि. गेडाम
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