इह लोक में विघ्नहर्ता
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सुनकर भक्तों की पुकार,
लंबोदर हुए कुछ ऐसे विचलित
बोले भक्तों, “न होओ भयभीत।”
उमाशंकर को किया प्रणाम ,
जंबूदिप को किया प्रस्थान।
वाहन मुषक को साथ लिए,
इंडिया गेट से प्रवेश हुए।
यत्र तत्र विचित्र व्यवस्था थी,
व्यवस्था क्या, अव्यवस्था थी,
भीड़, धूल और जंजाल
एकदंत का हुआ बुरा हाल
देखा शहर टहल- टहल,
धक्का- मुक्की, चहल-पहल।
विघ्न मिला जो कदम- कदम
विघ्नहर्ता का भर आया दम,
आख़िर बहुत सोच विचार
बोले भक्त घबराकर ,
गजानन का देख यूँ हाल
ले आए उन्हें अस्पताल।
डाक्टर बोले मिस्टेरियस है,
मामला बहुत सिरीयस है ,
दिल धड़क रहा, है कुछ ऐसे,
टूटी पटरी पर रेल चले जैसे।
पल्स बहुत ही है नाज़ुक,
सुन भक्तजन हुए भावुक।
डोनेशन वाले डॉक्टर थे,
बड़े बाप के बेटे थे,
आया कुछ ना मर्ज़ समझ में,
परची लिखा, आया जो मन में।
केमिस्ट ने जो देखी परची,
गुम हुई उसकी सिट्टी पिट्टी
बोला, “बाप्पा, कुछ पढ़ने न आवे,
दवा क्या दूँ , आखर समझ न आवे।
फिर भी दे दूँ दो खुराक,
आगे जो हो , आपका भाग।”
फिर जस तस
देदी कुछ गोली
कुछ सफेद, कुछ काली
हरी पीली, रंग -बिरंगी।
गणाधिपति सत् बुद्धि दाता,
पल में समझ गए विधाता,
“नहीं मुझे अब इक पल रहना,
हो सके तो स्वयं सम्हलना,
यहाँ क़ानून क़ायदे ताक़ पर हैं,
इहलोक से स्वर्ग बेहतर है।”
तब से गणपति
इहलोक न आए,
स्वर्ग से ही आशीष बरसाये।
- डॉ. शिवनारायण आचार्य
नागपुर, महाराष्ट्र