अदृश्य
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फॉरेस्ट आफिसर विनोद को देवलगंज वनक्षेत्र मे नियुक्ति मिली.मुश्किल से छै: माह ही बीते थे कि अचानक एक रात उनकी तबीयत बहुत ख़राब हो गयी.ठंड़ से सारा बदन कांप रहा था.तड़के ही उनके अधिनसत कम॔चारियों ने पांच कि.मी.दूर स्थित सरकारी अस्पताल में दाखिल कराने जीप से निकल पड़े.वाहन चालक सहित कुल तीन और कम॔चारी साहाब को संभालकर बैठ़ गये.सरकारी अस्पताल के नाम से ही वे सारे कम॔चारी कुछ सहमे सहमे से दिखाई देने लगे.अस्पताल मे सुनसान सा माहौल दिखाई दिया.एक कम॔चारी ने आवाज़ दी-"कोई है,डॉक्टर या नस॔ ?.मरीज को लाये है."सुनकर एक नस॔ और कंपाऊंड अंदर से दौड़ते हुए आए. स्ट्रेचर पर मरीज को लिटाकर कमरा नं.3 में ले जाया गया.
अस्पताल में कहने को सिफ॔ तीन ही कमरें थे.वहां मरीजों का दूरों तक कोई अता पता नही था.विनोद जी को बीच के कमरे के बेड़ पर लिटा दिया गया.भाग्य से उस दिन डॉक्टर साहाब हाजिर थे.उन्होंने जरूरी दवाइयां व इंजेक्शन की व्यवस्था की. विनोद जी को कुछ आराम महसूस होने पर वे सो गये.डॉक्टर ने नस॔ को हिदायत देते हुए कहने लगे-"देखो, मैने सारी दवाइयां व इंजेक्शन दे दी है.मुझे इसी वक्त सरकारी काम से मुख्यालय जाना है. तुम और कंपाऊंडर दोनों मिलकर मरीज का ध्यान रखना.शाम होते ही कहीं भाग मत जाना."इतना कहकर डॉक्टर साहाब मुख्यालय के लिए निकल पड़े.नस॔ हां मे हां मिला तो दिया.पर शाम के नाम से कांप गयी. शाम होने के पहले पहले सभी कम॔चारी वहां से खिसकने लगे.विनोद जी अभी भी गहरी नींद मे ही सो रहे थे.अंधेरा छा चुका था.सारा इंतेजाम करने के बाद .नस॔ और कंपाऊंडर अस्पताल के बाहर स्थित अपने अपने क्वार्टर में चले गये.रात्र का सन्नाटा छा चुका था.
विनोद जी अपने कमरे में सो रहे थे.अचानक उन्हें लगा कि बाजू के कमरे से किसी महिला के रोने की धीमी धीमी आवाज़ आ रही है.पहले तो उन्होंने अनसुना किया.पर रोने की आवाज़ बढ़ने लगी. तो वे हिम्मत कर के कांपते पैरों से उस कमरे की ओर बढ़ने लगे.बाजू के कमरे में हलकी सी रोशनी दिखाई दे रही थी.अंदर झांककर देखा तो एक सुंदर महिला सफेद साड़ी में लिपटी हुई दिखाई दी.विनोद जी साहस कर के अंदर गये.उस अकेली महिला को देखकर मन ही मन में डर गये.उस महिला की गहरी नीली आंखों की तरफ देखने की हिम्मत करते हुए पूछने लगे-" तुम कौन हो? रो क्यो रही हो?"उस महिला ने उनकी ओर अजीब मुस्कान भरी नजरों से देखा और रोना बंद कर दिया. उनकी ओर देखते हुए कहने लगी-"राजन!, तुम आ गये." यह सुनकर विनोद जी का पूरा शरीर पसीने से तर तर होने लगा.
उन्हें ऐसा लगा कि शायद यह रात उनकी आख़री हो.इतने में उस महिला ने कहा-"मुझे मालूम था.तुम एक दिन जरूर आओंगे." "तुम यह क्या कह रही हो"विनोद जी कांपते हुए स्वर मे पूछा.
"तुम ने अभी तक मुझे पहचाना नहीं, स्वामी" विनोद जी कुछ कहते.इसके पहले वह महिला आगे बढ़ी और विनोद जी को अपनी बांहों मे समेट लिया. उसके बाद विनोद जी के मुंह से एक दद॔ भरी भयानक चीख निकली. एकदम से कमरे में गहरा अंधेरा छा गया.
इस घटना के एक साल बाद भी विनोद जी का कहीं कोई पता नहीं चल सका.कहां ग़ायब हो गये ?पुलिस भी उन्हें आज तक खोज नहीं पायी.अस्पताल के आसपास के आदिवासी बहुल क्षेत्र में रहने वाले लोगों का कहना है कि हमने कई बार अंधेरी रातों में उन दोनों को अक्सर अस्पताल के आस पास धूमते हुए देखा है.
- मोहम्मद जिलानी
चंद्रपुर (महाराष्ट्र)
9850362698.