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भगवान के स्वरूप को भगवान के दृष्टिकोण से देखने के लिए भगवान कथा का महत्व अद्वितीय है :- युगल शरणजी महाराज


बालाजी कथा के दूसरे दिन कल्याण उत्सव (विवाह) बड़े भक्ति भाव से सम्पन्न

नागपुर/हिंगणा। हम पूजा, पाठ, कथा, प्रवचन, भागवत बड़े उत्साह और भक्ति भाव से करते हैं, परंतु कई बार अनजाने में हमारे हाथों से भगवान के स्वरूप का अपमान हो जाता है। यह जरूर ध्यान रखना चाहिए कि किसी भी प्रकार से भगवान का अपमान न हो। क्योंकि भगवान हर स्वरूप में भक्तों पर कृपा-प्रसाद बरसाते हैं, परंतु असली भगवान पूरी तरह से भक्तों पर निर्भर होते हैं। और यदि यह सब जीवन में पाना हो, अभी उनकी उपासना न करनी हो, तो भगवान की कथाओं का श्रवण करना आवश्यक है। 

जगद्गुरु श्री भाष्यकार श्रीपाद रामानुजाचार्य ने नारायण स्वरूप भगवान बालाजी की उपासना की और शंख-चक्र प्रदान करके उनके गुरु भी बने। और यह सब केवल और केवल उनकी निर्मल भक्ति के कारण ही संभव हुआ। इसलिए भगवान की उपासना करने के लिए निर्मलता अंगीकार करनी होगी, उसके बिना भगवान की प्राप्ति नहीं हो सकती।

मनुष्य को इस जीवन में कुछ पाना हो तो कुछ त्यागना पड़ेगा। अध्यात्म की प्राप्ति के लिए संसार के मोह से बाहर आना पड़ेगा, तभी भगवान के असली स्वरूप का दर्शन होगा। सुख-दुःख आते ही रहते हैं। जैसे सुख आते हैं, वैसे ही दुःख भी मनुष्य के जीवन में आते ही हैं और उनसे बचने का कोई मार्ग भी नहीं है। कर्म के अनुसार दुःख भोगने ही पड़ते हैं। केवल इतना फर्क है कि अपनी भक्ति और सेवा से दुःख के समय भगवान हमारे साथ होते हैं और इसी कारण हम अपने दुःखों को पार करके सुख का मार्ग प्राप्त करते हैं।

कई बार तिरुपति बालाजी के दर्शन करने वाले भक्त कहते हैं कि पंद्रह घंटे लाइन में खड़े रहे, दस घंटे लाइन में खड़े रहे, फिर भी व्यंकटेश्वर के सामने एक क्षण भी खड़े हो पाए, मिलना नहीं हुआ। यह आपकी भावना बिल्कुल गलत है। आपने क्षणभर भगवान के सामने जाने के लिए निर्मल श्रद्धा से जो प्रतीक्षा की, वही भगवान की नजर में आनी चाहिए। इसके लिए तीर्थस्थान जाना आवश्यक है। आज तीर्थस्थानों का महत्व कम कर उन्हें पर्यटन स्थलों में बदलने की कोशिश की जा रही है। यह धर्म और संस्कृति के विपरीत है। हमें अपने धर्म और संस्कृति की रक्षा सदैव करनी चाहिए — ऐसा कथाकार युगल चिरंजी महाराज ने अपनी मधुर वाणी से उद्बोधित किया।

दूसरे दिन की कथा की शुरुआत राज्य के पूर्व मंत्री सुनील केदार के हाथों ग्रंथ पूजन कर की गई। इस अवसर पर पूर्व मंत्री रमेशचंद्र बंग, अश्विन पालीवाल, संतोष चिपड़ा, प्रकाश जाजू, कमल तापड़िया, नारायणदास रामेश्वर, दिलीप कुमार राठी, शंकरलाल बंग, पुष्पादेवी मथुरादास मंत्री, जगदीशप्रसाद, हेमंत शर्मा आदि यजमान मुख्य रूप से उपस्थित थे।

दूसरे दिन की कथा कल्याण उत्सव अर्थात भगवान व्यंकटेश्वर और देवी पद्मावती के विवाह की कथा थी। कथा व्यास ने इसे श्रोताओं को सुनाया और विवाह की मनमोहक झांकी प्रस्तुत कर आरती और के बाद बधाई,महाप्रसाद के साथ कथा का विश्राम किया गया।
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