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नेत्र और कर्ण पर नियंत्रण प्राप्त कर लेने से मनुष्य बुरे विचारों से अलिप्त रहेगा – युगल शरणजी महाराज


बालाजी कथा के तीसरे दिन दीप उत्सव के साथ श्रद्धालुओं ने कथा अमृत का भक्तिभाव से श्रवण किया

नागपुर। भगवान ने हमें नेत्रों से देखने और कानों से सुनने की अलौकिक शक्ति प्रदान की है। परंतु नेत्रों से क्या देखना चाहिए और क्या नहीं देखना चाहिए, कानों से क्या सुनना चाहिए और क्या नहीं सुनना चाहिए, इसका निर्णय हमें स्वयं करना है। यदि हम अपने नेत्र और कानों पर नियंत्रण रखेंगे तो बुरे विचार हमारे शरीर और मन में प्रवेश नहीं कर पाएँगे। हमें दी गई इस देखने और सुनने की शक्ति से हमें समाज कल्याण के दृश्य एवं स्वप्न देखने चाहिए और सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार तथा संस्कृति को पोषित करने वाले मंत्र-पुष्प श्रवण करने चाहिए। ऐसे उपदेश श्री बालाजी कथा के माध्यम से कथा व्यास युगल शरणजी महाराज ने अपनी अमृतवाणी से तीसरे दिन श्रद्धालुओं को दिए।

तीसरे दिन की कथा का शुभारंभ राज्यसभा के पूर्व सांसद अजय संचेती के हस्ते ग्रंथ पूजन और आरती कर किया गया। इस अवसर पर पूर्व मंत्री रमेशचंद्र बंग, निमेश माहेश्वरी, वीरेंद्र प्रसाद धोका, भाजपा शहराध्यक्ष दयाशंकर तिवारी, पूर्व नगरसेवक संजय बंगाले, संपादक श्रीपाद अपराजित, संपादक रमेश कुलकर्णी, दीपेन अग्रवाल, हार्दिक पारेख, डॉ. निलेश अग्रवाल, मेघा वाकड़िया, मनीष तारावाला, पुखराज बंग, नारायण पालीवाल, तीसरे दिन के यजमान विश्वजीत मोहनकुमार जोशी, राधेश्याम चांडक, पुनमचंद पुरुषोत्तम मालू, संजय बंसीलाल पालीवाल प्रमुख रूप से उपस्थित थे।

बालाजी कथा के तीसरे दिन कथा व्यास युगल शरणजी महाराज ने कथामृत सुनाते हुए कहा कि संसार का कोई भी संबंध स्थायी नहीं है, वह परिस्थितियों और व्यक्तियों पर आधारित होता है। परंतु भगवान और भक्त का संबंध यह चिरस्थायी होता है। इसलिए किस संबंध को कितना समय देना है और अपने भगवान को कितना समय देना है, इसका संतुलन हमें जीवन में रखना चाहिए। इसी प्रकार संसार की प्रत्येक वस्तु को जीतने के लिए मनुष्य को प्रेम को अंगीकार करना पड़ता है। सेवा, समर्पण और त्याग से ही प्रेम प्रकट होता है। सेवा, समर्पण और त्याग का कोई विकल्प नहीं है। प्रेम की जननी सेवा है। इसलिए प्रत्येक मनुष्य को अपने प्रभु की नित्य सेवा करनी चाहिए।

भगवान को मनुष्य द्वारा बनाई गई भौगोलिक सीमाओं में सीमित न करके सृष्टि के प्रत्येक कण में भगवान का वास है। केवल उस परमेश्वर को देखने के लिए दृष्टि चाहिए और वह दृष्टि प्राप्त करने के लिए गुरु आवश्यक है। महाराष्ट्र की संत परंपरा में गुरु के आशीर्वाद और गुरु द्वारा प्रदान की गई शक्ति से ही संत नामदेव को स्वानंद में पांडुरंग के दर्शन हुए। इसीलिए गुरु के बिना जीवन का कोई अर्थ नहीं है। ऐसा गुरु महिमा का बखान करते हुए दीपोत्सव मनाया गया और आरती व महाप्रसाद के पश्चात तीसरे दिन की कथा का समापन किया गया।
समाचार 8295813545517948609
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