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रामभरोसे


हो गये थे,
गल्ली में बोर।
लगाकर,
धन-बल का ज़ोर।
हम भी चले,
दिल्ली की ओर।
हैलो -हाय,
बाय -बाय टाटा।
वहां खाएंगे,
शुद्ध घी का परांठा।
मेहरबान है,
हम पर,
आज विधाता।
आपसे नहीं,
अब कोई नाता।
ईश्वर करे,
आपकी रक्षा,
प्रिय मतदाता।

- जमील अंसारी, हिन्दी मराठी उर्दू कवि,
   हास्य व्यंग्य शिल्पी, कामठी, नागपुर
काव्य 7482839820639150763
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