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प्रेम मे सब आपने हो जाते हैं ...

जहाँ बसता है प्रेम सब अपने  हो जाते हैं 
जो आना नहीं चाहते वे भी चले आते हैं 
पशु पक्षि भी प्रेम के भूखे होते हैं 
अपने हाथों से खिलाओ तो 
मोर और कबूतर भी आ जाते हैं।।

जहाँ प्रेम होगा उसमें सबका वास होता है 
प्रेम रूपी नदी जहाँ बहती है 
वहां  सब उसमें हाथ धोना चाहते हैं 
बिना बुलाये ही वे पास चले आते हैं।।

जान न पहचान प्रेम का रोग निराला है 
शब्दो से पहचान प्रेम, पास चले आते हैं 
शब्द ही ऐसा जाल होता है 
जिसमें प्रेम के वशीभूत हो अपना हो जाते हैं।।

कुछ पास हो या न हो शब्दो के दीवाने होते हैं 
प्रेम की दुनियाँ ही निराली होती है 
प्रेम की इस नदी में जो फंस गया 
वह कभी बाहर निकलना नहीं चाह्ता है।।

प्रेम के इस संसार में भांति भांति के लोग
सबसे हिलमिल चलना होता है उनका रोग 
प्रेम लखन कहे जो प्रेम जाल में फंस जाता है 
वो कभी भी गलत काम नहीं करना चाहता है।।

- लखनलाल माहेशवरी
 पूर्व व्याख्या, अजमेर (राजस्थान)

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