यही हे परम सार...
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बाह्य आडम्बर होता नही
कभी भी सुखकार
अंतर आत्मिक शक्ति ही हे
जीवन का आधार
यही हे परम सार
स्वयं के स्वरूप बोध से
स्वमं ही हे अनजान
कई नाम से कई जनम तक
बदलती रही पहचान
निर्मल भाव से ऐसे बहो
जेसे निर्मल धार
यही हे परम सार
सत्य से अनभिज्ञ, मनुज
रहता सदा भय युक्त
सत्य को पहचाना जिसने
होता हे वो भय मुक्त
सत्यं शिवम सुंदरम से
रखो सदा सरोकार
यहीं हे परम सार
भौतिक साधनो की होड़ में
कर रहे संसार का विस्तार
कर्म के करोबार से
हुये जन्म अनंत बार
निष्काम कर्म के प्रवर्तन से
कर लो एकाकार
यहीं हे परम सार
सार्थक करो मानव भव को
नही मिलता यह बार बार
जब जागो तब सवेरा
इस सूत्र को करो स्वीकार
अलिप्त रहकर जग से
ढूंढो सुखद अभिसार
यही हे परम सार
यशवंत भंडारी 'यश'
झाबुआ म. प्र.