दिव्यांगो को भी समाज की मुख्यधारा में लाया जाए : दीक्षित
विश्व दिव्यांग दिवस पर दिव्यांगों की समस्याएं
अमरावती। महाराष्ट्र राज्य अपंग कर्मचारी संघटना मुंबई की शाखा अमरावती के जिलाध्यक्ष राजेंद्र दीक्षित ने अपने विचार व्यक्त करते हुए बताया कि विश्व अपंग (दिव्यांग) दिवस के रूप में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 3 दिसंबर को मनाया जाता है।
इस दिन दिव्यांग की समस्याओं, कठिनाइयों और प्रशंसाओं को गाया जाता है, लेकिन दिव्यांग की प्रगती अभी भी दिखाई नहीं दे रही है। आज भी दिव्यांग समाज में संघर्ष कर रहे हैं, और उम्मीद यह है की तस्वीर आज नही तो कल नहीं बदलेगी ऐसी झुठी आशा दिव्यांगो के मन मे है लेकीन साल मे एक बार आने वाले ३ डिसेंबर को दिव्यांग दिन, दिव्यांग बहनो और भाईयो के लिए निराशाजनक होता है इसके कोई दोमत नही है।
पाश्चिमात्त्य देशो मे दिव्यांगो के लिए आधुनिक तंञज्ञान के मुलभुत साधन उपलब्ध कराये जाते है। उसी प्रकार उनको मान - सम्मान और सार्वजनिक स्थानो पर प्रधानता दि जाती है परंतु इसके विपरित परिस्थिती यहा है दिव्यांग व्यक्तियों में से 70 से 100 प्रतिशत लोगों के पास एक साधारण व्हीलचेयर भी उपलब्ध नहीं होती।
केंद्र सरकार ने दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम 2016 को लागू किया है, जिसमें दिव्यांग व्यक्तियों को समाज की मुख्यधारा में लाया जाए और उन्हें समान अवसर और उनके अधिकार और पुनर्वास भी दिया जाए। सुविधाएं और अधिकार बहाल किए गए हैं और इस तरह के निर्देश सभी राज्यों को परिपत्र जारी करके जारी किए गए हैं। हालाँकि इस कानून के बारे अनजान अज्ञानता है।
अतीत में दिव्यांग वाले व्यक्ति को अपंग वाले व्यक्ति के रूप में संभोधित किया जाता था, लेकिन अब केंद्र सरकार ने शब्दांकन को दिव्यांग में बदल दिया है, लेकिन केवल नाम बदलने से दिव्यांग की समस्या का समाधान नहीं होता है। सबसे बड़ी समस्या रोजगार है, इसके बारे में कहीं भी कोई ठोस चर्चा नहीं है, इसके लिए सरकार को हर दिव्यांग व्यक्ति को एक निजी, सरकारी जगह पर सही रोजगार प्रदान करने के लिए 'अपंग (दिव्यांग) रोजगार अधिनियम' बनाने की आवश्यकता है।
सरकार द्वारा प्रदान की गई 5 प्रतिशत आरक्षित दिव्यांग निधि अल्प है, और इसके लिए दिव्यांगो को बहुत संघर्ष करना पड़ता है। इसके अलावा, संजय गांधी निराधार योजना का अनुदान चार से पांच महीने के बाद भी प्राप्त नहीं होता है, और उसके बाद केवल एक या दो बार अनुदान दिया जाता है। दिव्यागो के वेतन का भुगतान उसी तरह किया जाना चाहिए जैसा कि हर महीने दिया जाता है।
इस योजना के लिए एक वर्ष के अनुदान की राशि बजट में आरक्षित है, लेकिन यह समय पर प्राप्त नहीं होती है। दिव्यांगो के लिए कई रियायतें और उनके कल्याण के लिए कई योजनाएं हैं। इस पर ध्यान दिया जाना चाहिए कि दिव्यांग अधिकार अधिनियम के तहत उन पर होने वाला अत्याचार अपराध है।
दिव्यांग के आधार स्तंभ बच्चू भाऊ कडू ने आरक्षित दिव्यांग निधि के लिए हड़ताल करके राज्य में दिव्यांग को पुनर्जीवित किया है और तब से आरक्षित दिव्यांग निधि खर्च की जा रही है। शारीरिक चुनौतियों के बावजूद, 'रोने के लिए नहीं बल्कि लड़ने के लिए' दिव्यांगो में आत्मविश्वास होता है। उन्हें केवल प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
हालांकि,अनेक दिव्यांग उदर निर्वाह के लिए रास्ते या फुटपाँथ पर छोटे छोटे सामान बेचते है परंतु अतिक्रमण विभाग द्वारा उनका सामान जप्त किया जाता है। दिव्यांग होने के कारण वह जगह से जल्दी नहीं उठ पाते हैं और सामग्री एकत्र होने तक जब्त कर ली जाती है। अन्य विक्रेता सदृढ होने के कारण भाग जाते हैं, लेकिन जो विकलांग दैवीय और प्राकृतिक अत्याचारों से पीड़ित होते हैं, वे प्रशासन द्वारा मानव उत्पीड़न के शिकार होते हैं।
दिव्यांग लोगों को स्वरोजगार की उम्मीद है और बिना कीसी के साहरे के वे अपने परिवारों का पालन - पोषण करे ऐसी ईच्छा होती हैं, लेकिन दिव्यांग वर्ग को अंतहीन कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। कई दिव्यांग पति और पत्नी दोनों दिव्यांग हैं, लेकिन ऐसे दिव्यांग तत्वों को प्रोत्साहित करने के बजाय, वे समाज में जीवित रहने के लिए संघर्ष करते हैं। उन्हे उनके अधिकारों से वंचित किया जा रहा है।
इस संबंध में, सरकार से उम्मीद है कि वह सड़कों पर खुदरा सामान बेचने वाले अंधे और विकलांगों के लिए मानवता के दृष्टिकोण से राज्य में महानगर पालिकाओ, नगर पालिकाओं, ग्राम पंचायतों को सूचित करे तभी सही मायने मे ३ डिसेंबर यह शुभ विश्व दिव्यांग दिवस माना जाएगा।