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परिहार की रचनाओं में भाषाई प्रयोग की जादूगरी अद्भुत है...


  

नागपुर। परिहार जी की रचनाओं में भाषाई प्रयोग की जादूगरी अद्भुत है। यह बात व्यंग्यधारा द्वारा ऑनलाइन आयोजित 'महत्व कुंदनसिंह परिहार’ आयोजन के अवसर पर परिहार जी के कृतित्व और व्यक्तित्व पर दिल्ली से आलोचक डा. रमेश तिवारी ने कही। उन्होंने कहा कि कुंदन सिंह परिहार की रचनाओं से गुजरते हुए बहुत महीन धागे से बुनाई कर विभिन्न कोणों से विश्लेषण करने पर यह ज्ञात होता है कि परिहार जी बहुत खामोशी से अपने सूक्ष्म अवलोकन, सरोकार एवं दृष्टिसम्पन्नता के बलबूते व्यंग्य की बहुत महीन बुनावट वाले व्यंग्यकार हैं।


आरंभ में रमेश सैनी ने व्यंग्यधारा की गतिविधियों और आयोजन की संकल्पना रखी। बीकानेर से व्यंग्यकार बुलाकी शर्मा ने कुंदन सिंह परिहार का जीवन और लेखकीय यात्रा का परिचय दिया। जयपुर के व्यंग्यकार प्रभात गोस्वामी ने उनकी चर्चित रचना 'हमारी कालोनी के दो बाँके' का सम्मोहक स्वर में पाठ किया। डॉ. अरुण कुमार ने उनके व्यक्तित्व पर कहा कि उनकी सहजता - सरलता से लोग प्रभावित हैं। 

उनकी कहानियां में आग सी गर्मी भी है और प्रकाश भी। आज प्रेम को चटकाने की कोशिश की जा रही है। उनकी रचनाएँ अवांछित शक्तियों के सामने खड़े होकर रोकने का साहस दिखा रही हैं। लखनऊ के राजेन्द्र वर्मा ने पूरे आख्यान को केन्द्र में रखकर कहा कि परिहार जी की पूरी रचनाधर्मिता और  प्रतिबद्धता मानवीय संवेदना और सरोकार के पक्ष में दिखती है। 

वे मानवीय प्रवृत्तियों पर रचना रचते हैं। दिल्ली से वरिष्ठ व्यंग्यकार और व्यंग्ययात्रा पत्रिका के संपादक डॉ. प्रेम जनमेजय ने व्यंग्यधारा की प्रयोगधर्मिता और नवीन संकल्पनाओं के साथ किए जाने वाले आयोजनों के महत्व को रेखांकित करते हुए आयोजन की सार्थकता के लिए अपनी शुभकामनाएं प्रकट की। 

इस आयोजन में देश के विभिन्न प्रदेशों से भारी संख्या में आभासी सहभागिता उल्लेखनीय रही। संचालन और आभार प्रदर्शन रमेश सैनी ने किया।
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