कुछ तो शर्म करो...
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मातृभूमि की शान को,
इस तिरंगे की आन को,
मिट्टी में मिलाने वालो
कुछ शर्म करो !
कुछ शर्म करो||
आज़ादी यूं ही मिली नहीं !
बेशकीमत है, कोई भीख नहीं!
कतरा कतरा खून बहा और
बलिदान हुए सैनानी कई||
फॉंसी पर चढ़े वीर भगत सिंह
शहीद हो गए अशफकउल्ला|
वो खुदीराम, वो सुभाषचंद्र ,
जो अंगरेजों पे बोला हल्ला||
मंगल पांडे, आझाद, भगत्
क्या इसीलिए कुर्बान हुए ?
हर सांस थी देश की ख़ातिर जिनकी,
देश पे ज़ां निसार हुए !
नवजात शिशु को गोद ले
क्यों युद्ध किया झांसी रानी ने|
क्यों झोंक दिया मृत्यु मुख पे
पर सिर न झुकाया, मर्दानी ने||
क्या पागल था बिरसा मुंडा,
जो मातृभूमि पे ख़ाक हुआ|
सच कितना पागल था वो
जो तेरे लिए बर्बाद हुआ||
गले लगाया फांसी कुछ ने,
तो कुछ ने पाया काला पानी।
पहन बसंती चोला कुछ ने
निसार कर दी , अपनी जवानी||
सींचा माटी को लहू से
कितनों ने ही प्राण गवांये|
वीरगति को प्राप्त हुए
ढृढ़ संकल्प हृदय में समाये||
कांटों की शय्या चुनी,
जो सो सकते थे गुलाबों पे|
उनका भी दिल रोता होगा,
आज देश की हालातों पे||
है लाल किला भारत का दिल
फहरता तिरंगा इसकी धड़कन|
आजादी की गौरवगाथा
समाहित है जिसके कण-कण||
इस
लाल किले के शान को,
भारत के सम्मान को,
धुलिसात् करने वाले वहशी ....!
शर्म करो,
कुछ तो शर्म करो||
- डॉं . शिवनारायण आचार्य
नागपुर (महाराष्ट्र)