हमारे फुटपाथ...
आज एक नये मुद्दे पर कलम चलाने के लिये व्याकुल मन को रोके ना रोक पा रही थी। ये मुद्दा है हमारे भारत देश मे हर एक रास्ते पे बने फुटपाथों का। क्या कभी इस ओर नज़र किसी ने उठाकर देखी है?क्या प्रशासन का इस ओर ध्यान नहीं जाता ? क्या हमारे समाज मे कार्यरत बहुत सी सामाजिक संस्थानों का भी कभी हमारे फुटपाथों की ओर नज़र ना गई ? बहुत से ऐसे ही सवालों से घिरे मेरे मन की व्याकुलता को देख आज मैंने इसी मुद्दे पर कलम चलाने का ठाना ताकि सभी का ध्यान इन फुटपाथों की तरफ ला सकूं।
हमारे भारत देश मे फुटपाथों को इंसानों की सुरक्षा को ध्यान मे रख कर बनाया गया है,ताकि पैदल चलने वाले राहगीरों को किसी वाहनों से कोई भी खतरा ना हो और वो बिना खौफ़ के इन फुटपाथों का प्रयोग कर अपने गंतव्य तक सुरक्षित पहुंच सके।परंतु ये क्या जो फुटपाथ इंसानों की सुरक्षा के लिये थे उन्हीं फुटपाथों पे कितने ही अनगिनत गरीब लोगों ने अपने बसर करना का घर बना लिया है चौराहों पर ही पन्नी,चादरों आदि का प्रयोग कर एक छोटा सा ही कमरे जैसा आकार दे घर बना दिया जाता है और वो उसमें अपने परिवार संग रह रहे होते हैं। वहीं खाना बनाना आदि वो सभी काम वो फुटपाथ पे ही करने लगते हैं।ये घुमकड़ या पलायन कर्ता होते हैं जो कहीं भी फुटपाथ पर जगह मिल गयी तो वहीं डेरा डाल देते हैं। इससे फुटपाथ जिस उद्देश्य से जिनके लिये बनाया गया वही इसके प्रयोग से वंचित रह जाते हैं।
ये आलम सिर्फ़ छोटे शहरों मे ही नहीं महानगरों मे भी देखने को मिलता है। इन फुटपाथों पे बसर करने वालों की दयनीय स्थिति गरीबी रेखा से भी नीचे की स्थति होती है जो कि रोज़ कमाओ रोज़ खाओ जैसी दयनीय दशा का शिकार होते हैं या तो एक समय का ही खाना नसीब मे मिलता है।साथ ही ओढ़ने को भी वस्त्र बराबर उपलब्ध नहीं हो पाते हैं। ऐसे ही फुटपाथों पे बसर कर रहे लोग सभी की कुदृष्टि या घृणा की दृष्टि पाके अपराध जगत मे भी शामिल हो जाते हैं,हमारे फुटपाथों पे रह रहे गरीबों की ओर प्रशासन, सामाजिक संस्थाओं और आम जनता को भी विचार करना चाहिये ताकि इस ओर सबकी नज़र जा सके और हमारे शहरों मे बढ़ रहे फुटपाथ वासियों की बढ़ोतरी पर वक्त पर लगाम लगाया जा सके ताकि किसी भी अप्रिय घटना से पूर्व ही उसपे रोक लगाई जा सके।
जो लोग फुटपाथ पे रह रहें हैं उसके लिये प्रशासन को एक कमरे सुविधा वाली ऐसी इमारतों का बंदोबस्त करना चाहिये जहां एक ही जमीन पे कई मंजिला मकान बनवाकर इन्हें मुफ्त मे या रोज़ के एवज़ मे बी, पच्चीस या पचास रुपया किराया रखा जाऐ ताकि गरीब लोग उस मकान के किराये कि चिंता मे बेकार ना बैठेंगे इससे वो कोई ना कोई कार्य करने मे भी मन लगाऐंगे। जिससे धीरेधीरे वो आत्मनिर्भर भी बन सकते हैं। उन्हीं इमारतों मे रह रहे परिवार के बच्चों को वहीं या आस पास छोटा सा विद्यालय भी उपलब्ध करवाऐ ताकि यदि मां बाप दोनों ही काम पर जाते हैं तो पीछे से उनके बच्चों की सुरक्षा का ध्यान रखा जा सके और वो निश्चिंत होकर आत्मनिर्भर बन सकें।
उस इमारत के पास ही एक ऐसा कारखाना या कोई भी छोटा सा लघु उद्योग जैसा ही खोला जाऐ जिससे वहां सभी काम कर दिन भर के एवज़ मे मज़दूरी प्राप्त कर सकें। जिससे वो दो वक्त का भोजन और किराऐ की राशि दे सकें, इन फुटपाथ वासियों के लिये ही समय समय पर ज्ञान वर्धक परिचर्चा का आयोजन भी किया जाऐ ताकि उनका मार्गदर्शन भी हो सके।यदि प्रशासन के साथ-साथ सामाजिक संस्थाऐं और साथ ही दानदाता भी इस ओर हाथ बढ़ाऐं तो हमारे देश के फुटपाथों को फुटपाथ पे बसर कर रहें लोगों से मुक्त कराया जा सकता है।
फुटपाथ जो की पथिक के लिये हैं वो उन्हीं पथिकों से सुसर्जित हों तो ये हमारे लिये गौरव की बात होगी।साथ ही हमारे भारत देश मे रह रहें गरीबी रेखा से नीचे लोगों के जीवन मे भी बदलाव नज़र आऐगा।वो आत्मनिर्भर बन खुद पे खुद ही गौरवान्वित महसूस करेंगे और इस तरह वो घिन और घृणा का पात्र ना बन के समाज के लिये एक मिसाल भी बन सकते हैं।समाज व्दारा अपने घरों मे जो कपड़े उपयोग मे ना आ रहे वह कपड़े इन फुटपाथ वासियों को दान कर दिये जाऐं ताकि कम से कम उनके पास तन को पूरी तरह ढकने के लिये कपड़े हो सकें
जानति हूं कलम चलाना सरल है जो काम मैं कर सकती हूं वो लेखनी के माध्यम से कर फुटपाथ वासियों के लिये कर रही हूं मात्र जागरूकता लाना और समाज, प्रशासन, सामाजिक संस्थाओं का ध्यान इन फुटपाथ वासियों की ओर लाना है। यदि इस लेख के माध्यम से एक भी सामाजिक संस्था का इस ओर ध्यान गया और किसी ने इन फुटपाथ वासियों के बेहतर जीवन के लिये थोड़ा भी प्रयास किया तो ये छोटी सी लेखनी के व्दारा मेरा सामाजिक कार्य होगा। तो आइये और इन गरीबों कि दयनीय अवस्था पे विचार कर इन्हें बेहतर जीवन देने का निश्चय करें।
इससे पहले भी लेखनी के माध्यम से संस्थाओ़ व्दारा गरीबों के हितों की ओर ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की थी कि समाज सेवा केवल दिखावे औय अखबार की सुर्खियों को बटोरने के लिये न करते हुए पैसे का सही प्रयोग गरीब, असहाय, गरीबी रेखा के नीचे गुज़र कर रहे लोगों के लिये किया जाऐ और साथ ही उनकी बच्चों की शिक्षा के लिये भी ना जाने इन जरूरत मंदों की जरूरत पूरी होने पर इनमें से ही कोई एक डा. आंबेडकर जी कि छवि की तरह निकले,या कोई विवेकानंद जी,या ऐसे बहुचर्चित लोगों की तरह बन जाऐ जिन्होंने देश के गौरव मे अपना नाम स्वर्णिम अक्षरों की तरह लिखवा देश को गौरव प्रदान करें।
साथ ही हमारे देश के फुटपाथ भी इन प्रवासी वासियों से मुक्त हो जाऐंगे और हमारे देश के रास्ते भी साथ सुथरे नज़र आऐंगे। पथिकों को भी फुटपाथ पर चलने की जगह मिल जाऐगी। जिससे वाहनों से टकराके होने वाली घटनाओं पर भी कुछ हद तक लगाम तो लग ही जाऐगी।
- वीना आडवानी
नागपुर, महाराष्ट्र