वैश्वीकरण और सोशल मीडिया के प्रभाव से हो रही भारतीय भाषाओं की उपेक्षा : प्राचार्य डॉ. शेख
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नागपुर/पुणे। वैश्वीकरण और सोशल मीडिया के प्रभाव से दिन-ब-दिन भारतीय भाषाओं की उपेक्षा बढ़ती जा रही हैं।इस आशय का प्रतिपादन प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे ने किया।मराठी राजभाषा दिवस के अवसर पर राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के तत्वावधान में आयोजित आभासी गोष्ठी में मुख्य अतिथि के रूप में वे अपना मंतव्य दे रहे थे।
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने समारोह की अध्यक्षता की।मंच पर राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के संरक्षक तथा विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन के कुलानुशासक डॉ. शैलेन्द्र कुमार शर्मा,श्री सुरेश चंद्र शुक्ल,ओस्लो नॉर्वे, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना की मुख्य कार्यकारी अध्यक्षा श्रीमती सुवर्णा जाधव, डॉ.दतात्रय गंधारे,( राजूर)डॉ.मिलिंद कसबे (नारायणगांव),डॉ.सुजाता पाटिल, डॉ. भरत शेणकर,डॉ.रजिया शेख की प्रमुख उपस्थिति थी।
प्राचार्य डॉ.शहाबुद्दीन शेख ने अपने भाषण में आगे कहा कि,मराठी भाषा के पास अपना गौरवशाली इतिहास व सुदीर्घ परम्परा हैं।देश की कुल जनसंख्या का सोलह प्रतिशत जन समुदाय महाराष्ट्र का निवासी है।जिनकी अपनी मातृ भाषा मराठी हैं।देश में मराठी भाषाओंकी संख्या तेरह करोड़ के आसपास है। महाराष्ट्र से बाहर अन्य प्रदेशों एवं विदेशों मे भी मराठी भाषिकों की संख्या दो करोड़ तक है।मराठी माणूस मायबोली मराठी के बल पर ही प्रगति पथ पर आगे बढ रहा हैं।
कोंढवा,पुणे की मनसुख भाई कोठारी नेशनल स्कूल की सातवीं कक्षा की छात्रा कु. जिया खान ने कहा कि मराठी को सम्मान प्रदान कराने मे कुसमाग्रज का बहुत बड़ा योगदान है। संस्कृत भाषा से निर्मित एवं विकसित मराठी भाषा नवीं सदी से प्रचलन में हैं। भारत में तीसरे व वैश्विक स्तर पन्द्रहवें क्रमांक पर ब़ोली जाने वाली मराठी एक समृद्ध व सरल भाषा है।
डॉ.मिलिंद कसबे, नारायणगांव,ने कहा कि अति शुद्धता के दुराग्रह से मराठी भाषा की हानि हो रही है।भाषा वही ज़ो बाजारवाद मे अपने अस्तित्व को बनाये रखें। डॉ.सुजाता ने कहा कि हर भाषा की अपनी विशिष्टता होती हैं। मराठी को ज्ञान भाषा बनाने मे कुसमाग्रज जी का कार्य अत्यंत सराहनीय हैं।
श्रीमती सुवर्णा जाधव ने कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी के युग में मराठी भाषा के विद्यार्थी भी अग्रक्रम पर हैं। यह बड़े गौरव की बात हैं।डॉ. दत्तात्रय गंधारे ने कहा कि मराठी भाषा के विकास में संस्कृत, प्राकृत, अरबी, फ्रेंच, पर्शियन, तुर्की,स्पेनिश,अंग्रेजी, गुजराती,कन्नड़, कोंकणी आदि भाषाओं का भी योगदान हैं। श्रीमती लता ज़़ोशी मुंबई ने कहा कि, भारतीय संविधान की अष्टम अनुसूची मे सम्मिलित बाइस भाषाओं में मराठी का भी समावेश हैं।
राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना के राष्ट्रीय महासचिव डॉ. प्रभु चौधरी ने अपने अध्यक्षीय समापन में कहा कि वर्तमान डीजिटल युग में भारतीय भाषाओं का प्रयोग तो हो रहा है पर उनकी अपनी लिपि की उपेक्षा हो रही हैं। रोमन लिपि के बढ़ते वर्चस्व के कारण देवनागरी तथा अन्य भारतीय लिपियों का अस्तित्व संकट में हैंI
प्रारंभ में प्रा.पूर्णिमा कौशिक, (रायपुर छ.ग.) ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना, महाराष्ट्र इकाई के अध्यक्ष प्रा. डॉ. भरत शेणकर ने स्वागत भाषण दिया। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना, महिला इकाई की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. रजिया शहनाज शेख ने संस्था परिचय दिया।
इस संगोष्ठी के वेब पटल पर प्राचार्य डॉ.विश्वासराव काळे, अहमदनगर, डॉ. रश्मि चौबे, गाज़ियाबाद, डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, राष्ट्रीय प्रवक्ता, राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना, डॉ. समीर सय्यद, अशोकनगर, उपस्थित थे। डॉ. कामिनी बल्लाळ, औरंगाबाद ने गोष्ठी का आभार प्रदर्शन किया। राष्ट्रीय शिक्षक संचेतना,ट महिला इकाई महाराष्ट्र की अध्यक्ष प्रा. रोहिणी डावरे, अकोले ने गोष्ठी का संचालन किया।