स्वयं की आत्मशक्ति को जानना ही सर्वोच्च उपलब्धि है : संत श्री विकास साहेब
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सत्संग समारोह में मंत्री सुनील केदार सहित अन्य को कबीर सम्मान
नागपुर। सत्संग में संत - गुरुजन रामायण के जामवंत की तरह हनुमान रूपी श्रोता समाज को उनकी शक्ति और सामर्थ्य की याद दिलाते हैं। अपनी सर्वोच्च शक्ति को जानने का अर्थ होता है जगत के शाश्वत सत्य और स्वयं की चैतन्यता को बोध पूर्वक जानना। इसीलिए सत्संग को चलता फिरता तीर्थराज प्रयाग कहा जाता है, जिसके संगम में डुबकी लगाने से अनंत शांति और मुक्ति का फल मिलता है।सभा को संबोधित करते हुए उक्त प्रवचन कबीर आश्रम बैगवां (कौशांबी) उत्तर प्रदेश से आए पूज्य संत श्री विकास साहेब ने दिए।
वे सेमिनरी हिल्स स्थित कबीर मंदिर आश्रम में हाल ही में आयोजित कबीर सत्संग समारोह में पधारे थे।साथ ही पूज्य संत श्री राम साहेब और फतेहपुर से पूज्य संत श्री शंकर साहेब भी पधारे थे। इस अवसर पर महाराष्ट्र शासन के पशुपालन, दुग्धविकास, खेल व युवा कल्याण मंत्री सुनील केदार बतौर सत्कार मूर्ति उपस्थित थे। श्री केदार को सम्मनपत्र, शाल व विशाल तैलचित्र प्रदान करके कबीर सम्मान से विभूषित किया गया। साथ ही पारख खेल महर्षि हेमंत कुमार डोनगांवकर एवं अशोक कष्टी को कबीर सम्मान से तथा प्रभाग १४ के नगरसेवक कमलेश चौधरी, भीमाशंकर को भी सम्मानित किया गया। विशेष रूप से रमेश वानोडे, ज्ञानेश्वर बोरकर, बिल्डर मोहनीश कोठारी, विप्लव गुप्ता उपस्थित थे।
सत्संग समारोह में कबीर आश्रम चकबसवा (फतेहपुर) उत्तर प्रदेश से आए पूज्य संत श्री शंकर साहेब ने मानव के खान - पान और रहन - सहन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जिस तरह से समाज में राक्षसी प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है और जिसके परिणाम स्वरूप पाप कर्मा बढ़ रहे हैं, यह पूरे समाज के लिए चिंता नहीं बल्कि चिंतन का विषय है, तभी हम स्वस्थ समाज में जीवनयापन कर सकते हैं। इससे पूर्व सत्संग समारोह की शुरुआत शालिनी भगत और शिवानी भगत के गाए स्वागत गीत सज्जनों स्वागतम गाओ, संत मेहमान आए हैं... से शुरू हुई।
पूज्य संत श्री राम साहेब जी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि "जीवन यौवन राजमद, अविचल रहे न कोए। जा दिन जाए सत्संग में, जीवन का फल सोए।। सारा संसार क्षणभंगुरता की धारा में बहा जा रहा है और मौत निरंतर हमारी ओर चली आ रही है। सद्गुरु के चरणों और सत्संग में बैठने से ही स्थिरता और शांति मिलेगी। मंच संचालन कर रहे कबीर आश्रम, नागपुर के प्रमुख संत यतींद्र साहेब ने सभा को संबोधित करते हुए कहा कि मन में उबड़ - खाबड़ और नॉन स्टॉप चलने वाले विचार आज मानव के लिए बड़ी समस्या बन गया है। आज लोगों को मन की धारा में बहना तो आ रहा है मगर रुकना नहीं, मन जैसे बिना ब्रेक की गाड़ी हो गई है। जबकि कहीं भी, कभी भी मन को साक्षी होकर देखने मात्र से माइंड कंट्रोल की समस्या को खत्म किया जा सकता है, इसके लिए योग्य साधक के संरक्षण में साधना अभ्यास करना चाहिए।
संत श्री गुरुशील साहेब ने साहेब के नाम कर दो अपनी जिंदगी, बोलो साहेब बंदगी, साहेब बंदगी.... गा कर सभा को सुई पटक सन्नाटे में तब्दील कर दिया। कबीर आश्रम राजोद (धार) मध्य प्रदेश से आए संत श्री असीम साहेब, संत श्री कृष्णा साहेब और संत श्री राम साहेब, संत श्री तुलादास, संत योगेन्द्र ने भी अपने भजन - प्रवचन से सभा को लाभान्वित किया। सत्संग समारोह के समापन पर भंडारा का आयोजन भी किया गया।
संचालन राधेश्याम भगत, डॉ.नंदकिशोर भगत, राहुल भगत ने किया। इस अवसर पर विशेष रूप से परिश्रम करने वालों में आश्रम के पदाधिकारी अध्यक्ष घनश्याम भगत, सुंदरलाल साहू, भानूप्रकाश साहू, धनराज साहू, श्रीराम भगत, सतबोध दाहिया, लालजी भगत, भरत गोमासे, श्यामलाल साहू, राजेश कोसरे, अद्वैत धोटे, राधेश्याम भगत, रमेश साहू, स्वर्णजीत सिंह सपरा, देवेंद्र साहू, जितेंद्र साहू, संजय भोंसले, लखन सूर्यवंशी, विजय कुर्यवंशी, प्रभाकर फुके, श्यामसुंदर भगत, संतोष पांडे 'बादल', दयानंद भगत, महेन्द्र बिस्ने, राहुल भगत, सुनील बंदेवार, राजा गौतम, दयानंद भगत, अशोक वानखेडे, सीताराम साहू, उत्तमदस वर्मा, गणेश भड, बाबूलाल साहू, अकलेश बारस्कर, देवेंद्र जयसवाल, दीपक,अमित, प्रदीप यादव, रोहन भगत, प्रियंका,काजल, कंचन, समीक्षा, पायल आदि का अथक सहयोग रहा।