वीर सपूत सिंधूपति महाराजा दाहिर सेन का स्मारक हर शहर में बनवाएं जाएं : महेंद्र तीर्थानी
भारतीय सिंधू सभा नागपुर द्वारा महाराजा दाहिर सेन बलिदान दिवस पर वेबिनार
नागपुर। सिन्धी समाज का प्रतिनिधित्व करनेवाली राष्ट्रीय संस्था भारतीय सिन्धु सभा की नागपुर शाखा द्वारा अखंड भारत के मुख्य प्रवेश द्वार के सजग प्रहरी वीर सपूत सिंधूपति महाराजा दाहिरसेन के बलिदान दिवस के निमित्त वेबिनार का आयोजन किया गया।
राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद, नई दिल्ली के उपाध्यक्ष घनश्याम कुकरेजा के मार्गदर्शन में आयोजित वेबिनार के प्रमुख वक्ता स्थाई समिति, नागपुर महानगरपालिका के पूर्व अध्यक्ष व नगरसेवक वीरेंद्र कुकरेजा तथा भारतीय सिंधू सभा के राष्ट्रीय महामंत्री अजमेर के महेंद्र तीर्थानी थे।
सर्वप्रथम भारतीय सिंधू सभा का ध्येय गीत प्रस्तुत किया गया।
तत्पश्चात् राष्ट्रीय सिंधी भाषा विकास परिषद, नई दिल्ली के उपाध्यक्ष घनश्याम कुकरेजा ने प्रस्तावना रखते हुए कहा कि सिंध प्रदेश का इतिहास गौरवशाली रहा है। लगभग आठवीं शताब्दी में जब सिंधू प्रदेश में सिंध के अंतिम सम्प्रट शूरवीर दाहिरसेन का शासन था तब अरबों ने कई आक्रमण किये। किन्तु सिंधू देश के वीरों ने उनके प्रत्येक आक्रमण को वीरता से विफल कर दिया। अंत में दाहिरसेन को अरब सिपाहियों द्वारा महिलाओं का भेष बदलकर सिंधूपति से इज्जत की गुहार लगाकर उन्हें युद्ध के मैदान में एकांत वाली जगह पर थोखे से लाकर मारा गया। मरते मरते भी उसने अपनी तलवार से दुश्मन के कई सिपाहियों के सिरों को काट डाला।
भारतीय सिंधू सभा के राष्ट्रीय महामंत्री अजमेर के महेंद्र तीर्थानी ने कहा कि पुण्य सलिला सिंध की सुजला-सुफला शस्य श्यामला भूमि, समृद्ध संस्कृति और उदात्त सभ्यता विदेशियों के लिए हमेशा ही ईर्ष्या का विषय रही। सिंधु के खैबर के दर्रे से भारत पर विदेशी हमलावरों के कई आक्रमण हुए। हर बार आक्रमणकारी सिंध के शूरवीरों से मात खाकर या तो मारे गए या फिर वापस भाग गए।ऐसी विषम परिस्थितियों में भी भारतवर्ष के वीर सेनानियों ने धैर्य पूर्वक बड़ी गंभीरता से अपनी जाति की सुरक्षा की तथा अपने धर्म और संस्कृति को बचाए रखा।
अजमेर शहर में महाराजा दाहिरसेन का स्मारक बनाया गया है। इस तरह के स्मारक हर शहर में बनवाएं जाएं यही भारत माता के वीर सपूत को सच्ची श्रद्धांजलि होगी। नागपुर महानगरपालिका स्थाई समिति के पूर्व अध्यक्ष व नगरसेवक वीरेंद्र कुकरेजा ने दाहिरसेन के जीवन का परिचय देते हुए कहा कि भारतीय सिंधू सभा की ओर से चेट्री चंद्र के अवसर पर दाहिरसेन के इतिहास पर आधारित किशोर लालवाणी द्वारा लिखित एवं तुलसी सेतिया द्वारा निर्देशित नाटक प्रस्तुत कर चुकी है जिसकी बहुत सराहना हुई।
खासकर युवा पीढ़ी को इस नाटक से बहुत सटीक जानकारी प्राप्त हुई। आज समय की ज़रूरत है कि इस नाटक को हिंदी में भी पेश किया जाए ताकि महाराजा दाहिर की बहादुरी के किस्सों की जानकारी सिंधी समाज के सिवाय अन्य लोगों को भी मिल सके। भारत के इस इतिहास को पाठ्कम में शामिल करवाने के लिए भी हम भरसक प्रयास करेंगे जिससे आने वाली पीढ़ी भारत का सही इतिहास जान सकेगी। सिंधी नाटकों के निर्माता निर्देशक व भारतीय सिन्धू सभा अमरावती के अध्यक्ष तुलसी सेतिया ने दाहिरसेन का जीवन वृत बयान करते हुए बताया कि सिंध के अंतिम सम्राट दाहिरसेन की बहादुरी, उनकी धर्मपत्नी लाडीबाई के जौहर तथा पुत्रियों सूरज एवं परमाल का दुश्मनों से अपने पिता के बलिदान की तथा इस वीर परिवार की अपनी मातृभूमि पर बलिदान की यह गाथा इतिहास के पन्नों में स्वर्णिम अक्षरों में अंकित होनी चाहिये। हमारी युवा पीढ़ी को हमारे गौरवशाली इतिहास से अवगत कराया जाए।
भारतीय सिन्धू सभा महिला मंच, नागपुर की सचिव श्रीमती कोमल खूबचंदानी ने अपनी बात रखते हुए कहा कि दाहिरसेन की मृत्यू के पश्चात् दाहिरसेन की खून से सनी तलवार लेकर उसकी धर्मपत्नी लादीबाई युद्ध मैदान में कूद पड़ी थी पर दुश्मन की भारी सेना का मुकाबला न कर सकी। दुश्मनों के हाथ आने की बजाय वीरांगनाओं के साथ मिलकर आग में छलांग लगाकर जौहर किया। यहीं से जौहर प्रथा आरंभ हुई। तत्पश्चात उनकी दोनों पुत्रियों ने भी अपने माता पिता की मौत का बदला लिया।
कार्यक्रम का संचालन भारतीय सिन्धू सभा सांस्कृतिक मंच, नागपुर के अध्यक्ष किशोर लालवानी ने किया। कार्यक्रम को सफल बनाने के लिए भारतीय सिन्धू सभा, नागपुर के महासचिव गोपाल खेमानी, भारतीय सिन्धू सभा युवा मंच के अध्यक्ष जगदीश वंजानी, राजकुमार कोडवानी, दिलीप बीखानी तथा मोहनिश वाधवाणी ने अथक प्रयास किया।
विनीत : घनश्याम कुकरेजा