गुरु बिन ज्ञान कहाँ से लाऊ...
गुरुपोर्णिमा विशेष लेख
गुरु ज्ञान का सागर है, जैसे जलाशय मे पानी प्रचुर मात्रा में होता है, लेकिन आपको पानी तब तकनहीं मिल सकता जब तक कि आप अपनी गर्दन को मुंह से नीचे न करें. उसी तरह, गुरु के पास विनम्र हुए बिना ज्ञान प्राप्त नही होता. 'गुरु बिन ज्ञान कहासे लाऊ' यही सच है.
गुरु शब्द का प्रयोग संस्कृत भाषा में 'अंधेरे को दूर करने' के लिए किया जाता है, पूर्णिमा का अर्थ है प्रकाश, गुरु साधक के अज्ञान को दूर कर उसके भीतर सृष्टि के स्त्रोत का अनुभव करने की क्षमता पैदा करता है, इसलिए गुरुपूर्णिमा को सदगुरु की पूर्णिमा माना जाता है, योग साधना और ध्यान का अभ्यास करने के लिए गुरुपूर्णिमा का दिन विशेष रुप से लाभकारी माना जाता है.
गुरु पूर्णिमा के दिन, साधक पारंपरिक रुप से अपने गुरु के प्रति आभार व्यक्त करते है. और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते है. एक गुरु ही है जो जीवन भर अच्छे से पढाते है. और अंधकार का नाश कर ज्ञान का प्रकाश देते है. गुरु संस्कार देते है.
आषाढ शुल्क पक्ष पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा कहा जाता है. इस दिन गुरु की पूजा की जाती है. यह त्यौहार पूरे देश में बहुत ही श्रध्दा और उल्लास के साथ मनाया जाता है. प्राचीन काल में छात्र आश्रम में शिक्षा लेते समय अपने गुरु के प्रति श्रध्दाभाव अर्पण कर गुरु दक्षिणा देते थे.
चारों वेदों का सर्वप्रथम भाष्य करने वाले व्यास ऋषि की आज पूजा की जाती है. व्यास ही थे जिन्होने लोगों को वेदों का ज्ञान दिया, इसलिए गुरुपूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है. और इस दिन हम व्यास के अंश के रुप में अपने गुरु की पूजा करते है.
भारतीय गुरु परंपरा में गुरु - शिष्य की जोडी प्रसिध्द है. प्राचीन काल से ही गुरु शिष्य की पंरपरा है जेसे जनक - याज्ञवल्क्य, शुक्राचार्य - जनक, कृष्ण - सुदामा, विश्वामित्र - राम, लक्ष्मण, परशुराम - कर्ण, द्रोणाचार्य - अर्जुन यह गुरु - शिष्य की जोडिया प्रसिध्द है. मात्र एकलव्य की गुरुनिष्ठा से तो सबका मस्तक नम्र से झुक जाता है.
भारतीय संस्कृति में गुरु हमेशा पूजनीय रहे है. माता प्रथम गुरु है. वह अपने बच्चों का पालन - पोषण करती है, उन्हें सही इंसान बनने में मदत करती है. दूसरे गुरु स्कूल के शिक्षक है. सबके जीवन मे और एक महत्त्वपूर्ण गुरु है वह है प्रकृति.
हम सभी को इन सभी गुरुओं का सम्मान करना चाहिए. जब हमारा मन गुरु के आशीर्वाद के लिए कृतज्ञता से भर जाता है, तो यह श्लोक याद आता है.
गुरुर्ब्रम्हा गुरुर्विष्णु गुरुर्देवो महेश्वरा
गुरु साक्षात परब्रम्ह तस्मै श्री गुरुवे नम:
- कविता फाले - बोरीकर
माहिती व जनसंपर्क कार्यालय,
नागपुर, महाराष्ट्र