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हरा भरा अषाड़ आया...


मैं पहला, मैं पहला करते
चैत्र आया चैत्र आया।
अपने साथ गुनगुनी हवा के झोंके लाया,
पीछे पीछे बैशाख, जेठ ने भी

लू के थपेडों सेसबको तड़फाया।
तीनों ने सूरज से मिलकर
धरती को खूब तरसाया, तपाया जलाया।
तपिष से व्याकुल झुलसती, जलती,

धरती का हृदय अकुलाया, मुरझाया
तड़फते, तड़फते, फटने को आया
माँ को तड़फते, जलते देख
पुत्र वृक्षों का भी दिल भर आया

बेटी नदियों का मन सिकुडा़या, सकुचाया.
सबको जलते देख मेघ पिता का
दिल घबराया, मचलाया।
धक्के दे दे कर सूरज को

पीछे खसकाया, सरकाया
नभ में अपना डेरा डाला
कभी शंख तो, कभी नगाडा़ बजाया,
बादलों की महफिल ने

अषाड़ को खूब ललचाया
नभ में नाचते, झूमते नडाडे़ बजाते,
बादलों को देख, अषाड़ खूब हर्षाया,
तपती धरती को अषाड़ की फुआरों ने

खूब नहलाया, धुलाया।
सबने खुशी का जश्न मनाया
अषाड़ आया, अषाड़ आया
खुशियां लाया, खुशियां लाया।

           
- प्रभा मेहता,
नागपुर

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