आखिर क्यों लोग जवानी का परचम हाथ से जाने नहीं देना चाहते ?
आखिर क्या वज़ह होती है कि ज़्यादातर लोग बुढ़ापे की दहलीज पर खड़े होने के बावजूद कृत्रिम उपायों को अपनाकर भी जवान दिखने की तमन्ना दिल में पालते हैं ? कपड़ों के चुनाव से लेकर सौंदर्य प्रसाधनों के अतिरंजित उपयोग तक के तरह-तरह के तरीके आजमाकर लोग जवानी का परचम हाथ से जाने नहीं देना चाहते। जबकि जवानी असल में कब की विदा हो चुकी होती है, और बुढ़ापा अपनी लाठी के साथ उम्र का दरवाजा लगातार खटखटा रहा होता है।
अचरज यह भी है कि ऐसे लोग बचपन का कुछ नहीं अपनाना चाहते जबकि वह भी गुजरे जमाने का ख़ूबसूरत और यादगार कालखण्ड होता है। हालांकि ऐसे बूढ़े होते लोग जवान दिखने की चाहत में इतनी बचपने की हरकतें करते हुये हंसी का पात्र बनते रहते हैं कि क्या कहें। लेकिन जवान दिखने की ख़्वाहिश ऐसी जोरदार होती है कि बालों में खिजाब लगाने से शुरू होकर चेहरे की झुर्रियां गायब करने वाली क्रीम के इस्तेमाल तक ऐसे बूढ़ों से जबरदस्त वर्जिश करवाती है। इतना सब करने के बाद भी शरीर बार-बार धोखा देता है, और जरा सी चाल में तेजी पकड़ी कि सांसों में हंफनी ऐसी शुरू होती है कि बस पूछिये मत। ये ही वे लोग होते हैं जो फर्जी इश्तेहारी का झूठा जोर बांधे रहते हैं कि 'उम्र एक गिनती से ज्यादा कुछ नहीं है'।
अरे भाई पकी उम्र का और बूढ़ी देह का भी अपना एक अलग खूबसूरती भरा मुकाम होता है जो जिन्दगी की बचपन और जवानी की उम्र से किसी भी मायने में कमतर नहीं होता। उसे स्वीकार करके हम खुद को कितनी इज्जत दे सकते हैं, हमें इसका असल में अंदाजा ही नहीं है।
- प्रभाकर सिंह
प्रयागराज (उ. प्र.)