बहुभाषिक समाज में अनुवाद अपरिहार्य है : प्रो. जयचन्द्रन
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नागपुर। मीडिया का क्षेत्र बहुत व्यापक है और इसका विस्तार समाज के प्रत्येक वर्ग तक है। समाचार-पत्रों, इलेक्ट्रॉनिक मीडिया, रेडियो की पहुँच समाज के हर तबके तक है। बहुभाषिक समाज में जनसंवाद के माध्यमों के लिए अनुवाद आधार है। उक्त विचार केरल विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो. आर. जयचन्द्रन ने व्यक्त किए।
वे राष्ट्रसंत तुकड़ोजी महाराज नागपुर विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित 'कौशलपरक हिन्दी - विविध आयाम' विषयक राष्ट्रीय कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे।
प्रो. जयचन्द्रन ने कहा कि सत्य और तथ्य की कसौटी पर मीडिया को खरा उतरना चाहिए, किन्तु इस प्रतिस्पर्धा के दौर में अपने को टिकाए रखने के लिए यह जरूरी है कि समय की मांग के अनुरूप उन्हें प्रस्तुत किया जाय।
उन्होंने कहा कि भारत एक बहुभाषी राष्ट्र है। देशभर के विचारों को सर्व सम्प्रेषणीय बनाने के लिए सभी भाषाओं में समाचार को लाना जरूरी है। इसलिए मीडिया में अनुवाद का सहारा लिया जाता है। खबरों के विविध पक्षों, भाषा की वर्तनी और व्याकरण, विज्ञापन तथा लेखन के अनेक सन्दर्भों पर उन्होंने उदाहरण सहित विचार किया।
कार्यालयीन पत्राचार के लिए तकनीकी शब्दों की समझ आवश्यक : संजीव निगम
हिंदुस्तानी प्रचार सभा, मुम्बई के निदेशक डॉ. संजीव निगम ने कहा कि पत्राचार कार्यालयीन कामकाज का अभिन्न अंग है। पत्रों में तथ्य होते हैं। अनावश्यक या फालतू बातों का कार्यालयीन पत्राचार में कोई स्थान नहीं होता। इसलिए कार्यालयीन हिन्दी में तकनीकी शब्दों के निहितार्थ को समझना आवश्यक है।
शब्दों के मर्म को समझे बिना हम उसका प्रयोग सही ढंग से नहीं कर सकते। अपने व्यक्तिगत अनुभवों को साझा करते हुए उन्होंने पत्राचार के विविध पक्षों पर प्रकाश डाला।
डॉ. संजीव निगम ने कहा कि प्रत्येक पत्र का एक आशय होता है, इसलिए पत्रों के वैधानिक पक्ष और उसकी संरचना को समझना चाहिए। उन्होंने शासकीय, अर्धशासकीय पत्र के प्रारूपण, टिप्पण,संक्षेपण आदि लेखन के अनेक पक्षों से अवगत कराया।
स्वागत उद्बोधन देते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. मनोज पाण्डेय ने कहा कि मीडिया लेखन और शासकीय पत्राचार दोनों की संरचना और प्रकृति को समझना बहुत जरूरी है। कार्यक्रम का संयोजन विभाग के प्राध्यापक डॉ. गजानन कदम ने किया।