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केन्द्रित अखिल भारतीय काव्य संध्या का हुआ आयोजन



नागपुर। अखिल भारतीय साहित्य परिषद, महाराष्ट्र और माध्यम त्रैमासिक पत्रिका के तत्वावधान में दीप पर्व पर 'आओ दीप जलाएं' विषय केन्द्रित अखिल भारतीय काव्य संध्या का आयोजन किया गया।

चांदनी समर ने, जब अंधियारा घनघोर हो, सन्नाटा चारों ओर हो, तुम पहला कदम उठाना, खुशियों के दीप जलाना, पढ़ कर कार्यक्रम का आगाज किया। 

कृष्ण कुमार द्विवेदी ने, 'संवर जाएगा मेरा घर धीरे धीरे, मै पाऊंगा मंजिल मगर धीरे धीरे' गजल पढ़ कर समां बांध दिया। 

अविनाश बागडे ने कहा, मुहब्बत के तुमने दिए जो जलाए, हमें रोशनी के वो ख्वाब आ रहे हैं, 

संजय द्विवेदी ने, विजय पर्व का अभिनंदन है, राष्ट्र पर्व का अभिनंदन है, के माध्यम से अयोध्या का स्मरण किया। 

डॉ उषा कनक पाठक ने, इस बार दिवाली के दीयों में एक दीप ऐसा भी जले, जो दूर करे सनतापों को सबके उर में प्रेम भरे, के द्वारा विषय को सार्थकता प्रदान की। 

डॉ प्रमोद भृगुवंशी ने, दीप पर्व पर बात एक अब ले आओ संज्ञान में, गद्दारों को गिन गिन कर फांसी दे दो हिंदुस्तान में, कहकर ऊंचाई प्रदान की।

मृदुल तिवारी महक ने, कहां हो चली आओ मां, के माध्यम से मां की ममता को चित्रित किया।

छगन लाल गर्ग ने कहा, दिव्य प्रभा अब आंगन शोभित, दीप जले उर में दिन- राती,

डॉ श्री निवास शुक्ल सरस जी ने कहा,
'सिर्फ इसी में जीत  ,बचायें अपना दीपक।
साथ न देंगे मीत,बचायें अपना दीपक।'
अन्दर अन्दर आग सुलगती लेकिन बाहर-
छलक रही है प्रीत,बचायें अपना दीपक।।

इसके अतिरिक्त ठा भरत सिंह, पूनम मिश्रा पूर्णिमा, साहू ने भी काव्य पाठ किया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ रचनाकार श्री निवास शुक्ल सरस (सीधी) ने की। मुख्य अतिथि के रूप में बंगलुरू से श्री ज्ञानचंद मर्मज्ञ और विशिष्ट अतिथि के रूप में राजस्थान से श्री छगनलाल गर्ग उपस्थित थे। 

कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों और कवियों का परिषद के महासचिव डॉ चंद्रिका प्रसाद मिश्र ने स्वागत किया। संचालन रामकृष्ण वि सहस्रबुद्धे ने तथा आभार प्रदर्शन स्वप्निल कुलकर्णी ने किया जबकि सरस्वती वंदना डॉ प्रमोद भृगुवंशी ने प्रस्तुत की।
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