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परिवार के विघटन की समस्या भारतीय संस्कृति के लिए घातक : हरेराम बाजपेयी



नागपुर/पुणे। पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण के कारण परिवार के विघटन की समस्या भारतीय संस्कृति के लिए घातक सिद्ध हो रही है। यह प्रतिपादन हिंदी परिवार, इंदौर के संस्थापक, अध्यक्ष श्री हरेराम बाजपेयी ने किया। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज के तत्वावधान में "टूटते परिवार - कारण व निवारण' विषय  पर आयोजित राष्ट्रीय आभासी संगोष्ठी में वे अपना उद्बोधन दे रहे थे। 

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान,प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। श्री बाजपेयी ने आगे कहा कि परिवार को टूटने से बचाने के लिए हर परिवार में आपसी सामंजस्य, निजी स्वार्थ व सुख का त्याग, कर्तव्य परायणता, प्रेम, विश्वास और संस्कारों का होना बहुत जरूरी है।

विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के सचिव डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने अपने प्रास्तविक भाषण में कहा कि परिवार के टूटने में एक अहम कारण मैके का बेटी के ससुराल में आवश्यकता से अधिक दखल भी हैं। परिणामत: टूटते परिवार के कारणों पर विचार करें तो मुख्यता: संयुक्त परिवारों का विघटन, अहम एवं समझौता वादी दृष्टिकोण का अभाव तथा संस्कारों की कमी भी अत्यधिक मात्रा में खटकती है।

डॉ. नजमा बानू मलिक, नवसारी, गुजरात ने कहा कि टूटते परिवार आज के दौर की एक बड़ी चुनौती है। आजीविका, उच्च शिक्षा, भौतिकता वादी अभिमुखता, व्यक्तिगत अहंकार, पारिवारिक मूल्यों का ह्रास, स्त्रियों की आर्थिक स्वतंत्रता आदि परिवार के टूटने का कारण माने जा सकते हैं। सद्भभाव, समर्पण, स्नेह,सहनशीलता आपसी सौहार्द और सहयोग से परिवार को टूटने से बचाया जा सकता है।
प्रा. मधु भंभानी, नागपुर, महाराष्ट्र ने अपने मंतव्य में कहा कि वैचारिक मतभेद, बेमेल आयु, रूढियों, परंपराएं, दहेज, पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव,अहं, सहनशीलता की कमी, आपसी तालमेल का अभाव इत्यादि कारण हो सकते हैं परिवार टूटने के। परंतु इसका निवारण हम पर निर्भर करता है।

श्री ओम प्रकाश त्रिपाठी, सोनभद्र, उत्तर प्रदेश ने कहा कि आज परिवार की संरचना में आंच आ गई है। अपनों के बीच  परायेपन का एहसास पसरा हुआ है। विश्वास की जगह संदेह स्थापित है। कोई किसी को समझने की कोशिश नहीं करता और मर्यादाओं संस्कारों से अलग होकर जीवन दर्शन को भी बदल दिया। जिससे मानवता  तार तार हो रही है।
श्रीमती वंदना शुक्ला, प्रयागराज ने कहा कि  महत्वकांक्षाये, अंह, संवाद का ना होना, मोबाइल,  रोजगार, शहरी आकर्षण भी टूटते परिवार के कारण है।

डॉ. अर्चना चतुर्वेदी, इंदौर, मध्य प्रदेश ने अपने उद्बोधन में कहा कि टूटते परिवार का प्रमुख कारण है बढ़ती हुई आधुनिकता, दिखावा, असहिष्णुता, आजीविका आदि।

डॉ रामनिवास साहू, बिलासपुर, छत्तीसगढ़ ने कहा कि फिल्म व मीडिया परिवार टूटने के प्रमुख कारण है

डॉ. शहाबुद्दीन  नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि, परिवार का बिखराव बहुत बड़ी आपदा के समान है, जिसमें लोगों के साथ रिश्तों में भी बिखराव आता है। परिवार टूटने के पीछे कोई एक कारण नहीं, अपितु परिस्थिति जन्य अनेक कारणों से परिवार टूटने लगते हैं। परिवार झुकने से चलता है अकड़ने से कदापि नहीं। आज की पीढी  केवल पति पत्नी और अपने बच्चे को ही परिवार मानने लगी है।

कार्यक्रम का प्रारंभ डॉ. सरस्वती वर्मा की सरस्वती वंदना से हुआ। श्रीमती भुवनेश्वरी जायसवाल, रायपुर ने स्वागत भाषण दिया।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज, छत्तीसगढ़ राज्य प्रभारी तथा हिंदी सांसद, संयोजक, डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक रायपुर ने आभासी संगोष्ठी का सुंदर व सफल संचालन किया तथा प्रा. लक्ष्मीकांत वैष्णव, चांपा, जांजगीर ने धन्यवाद ज्ञापन किया।
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