समन्वय साहित्य महोत्सव मेरे जीवन का सबसे बड़ा उत्सव : डॉ. बलराम
नागपुर/मुंबई : 14 नवंबर 2021, रविवार का दिन बिलासा नगरी के इतिहास में स्वर्णाक्षरों में दर्ज हो गया। संस्कार भवन, सरकंडा बिलासपुर (छत्तीसगढ) में समन्वय साहित्य परिवार छत्तीसगढ की स्थापना एवं 'समन्वय' वार्षिकांक के 25 वें पुष्प खिलने के उपलक्ष्य में आयोजित रजत जयंती महोत्सव भव्य और ऐतिहासिक बन पड़ा। इस प्रतिष्ठा आयोजन को 'समन्वय' के संस्थापक डा. बलराम, मुख्य अभ्यागत डा. विनय पाठक, विशिष्ट अभ्यागत डा. सुरेश माहेश्वरी अमलनेर, डा. मनीष श्रीवास्तव रायपुर एवं शशि दीप मुंबई ने संबोधित किया। अंत में डा. देवधर महंत ने अध्यक्षीय उद्बोधन दिया।
इन मधुरिम पलों के साक्षी बनने हेतु देश के विभिन्न नगरों से और छत्तीसगढ के कोने-कोने से साहित्य, संगीत और कला के हस्ताक्षर पधारे थे। प्रमुख रूप से अमलनेर (महाराष्ट्र) से डा. सुरेश माहेश्वरी, मुंबई से द्विभाषी लेखिका शशि दीप जी, दिल्ली से धल्ली जी, जबलपुर से ओंकारनाथ चतुर्वेदी और बिलासपुर के डॉ अजय पाठक, कृष्णकुमार भट्ट 'पथिक', अमृतलाल पाठक, केवलकृष्ण पाठक, राजेन्द्र मौर्य, डा. मंतराम यादव, बुधराम यादव 'प्रबुद्ध' व डा. अजीज रफीक, देवेन्द्र परिहार मुंगेली, रमाकांत सोनी चाम्पा, मीनकेतनदास, मनोज मिश्रा सांकरा, महासमुंद, रामकुमार साहू पलारी, इंदुभूषण पडवार बिलाईगढ, ज्योतिलता मानिकपुरी, सूरज मानिकपुरी लवन, सरिता तिवारी, बलौदाबाजार प्रभृति की आत्मिक सहभागिता उल्लेखनीय रही।
ज्ञातव्य है कि वसंत पंचमी 4 फरवरी 1995 को बिलासपुर में डा. बलराम ने समन्वय साहित्य परिवार का बीजारोपण किया था। वर्तमान में इसके 15 केन्द्र संचालित हैं। रजत जयंती महोत्सव विगत वर्ष आयोजित था, लेकिन कोरोना आपदा के कारण स्थगित किया गया। इस मंच के समानांतर एक वैश्विक मंच 'विश्व समन्वय साहित्य परिवार' को मूर्त रूप दिया। जिसके तत्वावधान में वेब पेज प्रभारी विचारक/ समाजसेवी शशि दीप, मुंबई के संयोजन से अनेक ऑनलाइन गोष्ठियां संपन्न की गई।
अप्रैल 1995 को प्रथम वार्षिकात्सव आयोजित हुआ। तब से प्रतिवर्ष धूमधाम से वार्षिकोत्सव मनाया जाता है। 1996 से 'समन्वय' के वार्षिकांक का प्रकाशन शुरू हुआ। इस बीच छत्तीसगढ़ की साहित्यिक विभूतियों लोचनप्रसाद पांडेय, मुकुटधर पांडेय, जगन्नाथप्रसाद 'भानु', प्यारेलाल गुप्त, डा. शंकर शेष, सत्यदेव दुबे, अमृतलाल दुबे, डा. विमल पाठक पर केन्द्रित 'समन्वय' का प्रकाशन किया गया।
समन्वय के 25 वें अंक को संस्था के शिल्पी डा. बलराम पर केन्द्रित किया गया। जिसका संपादन डा. देवधर महंत द्वारा किया गया। 1996 से ही 'समन्वय रत्न' अलंकरण के बहाने प्रतिभाओं के अभिनंदन का सिलसिला शुरू हुआ। अब तक विभिन्न क्षेत्रों के 137 हस्ताक्षरों को 'समन्वय रत्न' से अलंकृत किया जा चुका है।
रजत जयंती वर्ष में स्व. वसंत शर्मा (मरणोपरांत), आनंदप्रकाश गुप्त, डा. सुनीता मिश्रा, डा.अनन्या सेन एवं सतीश धल्ली को अलंकृत किया गया। वहीं प्रतिवर्ष समाज सेवा के क्षेत्र में दिया जानेवाला सम्मान श्री भागवतप्रसाद स्मृति समन्वय सेवा सम्मान शायर एवं समाजसेवी राज मल्कापुरी को दिया गया। गीता तिवारी की कृति 'पिरीत के पीरा' का लोकार्पण किया गया। विभिन्नसाहित्य समितियों और समन्वय केन्द्रों को भी इस अवसर पर सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम का सफल संचालन महेश श्रीवास ने किया। विवेक तिवारी ने आभार माना। आयोजन को सफल बनाने में बिलासपुर केन्द्र के अध्यक्ष राघवेन्द्र दुबे , महासचिव सनत तिवारी, सचिव तथा कोषाध्यक्ष महेश श्रीवास एवं विवेक तिवारी प्रभृति की भूमिका उल्लेखनीय रही।
भोजनावकाश के उपरांत द्वितीय सत्र में आनंद कश्यप के उपन्यास 'गांधी चौक' पर चर्चा हुई एवं कवि सम्मेलन संपन्न हुआ। अत्यंत आत्मिक और मीठे अनुभवों के साथ कार्यक्रम संपन्न हुआ।
अंत में डॉ बलराम व संस्था के सभी निष्ठावान पदाधिकारियों की पूरी टीम को चरितार्थ करती विचारक शशि दीप के हृदय से उद्धृत इन पंक्तियों के साथ....
"नेक विचार की पहल करना तभी सम्भव है,
यदि पहल का नेतृत्व कर पाने का जज़्बा हो;
नेतृत्व कर पाना तभी संभव है,
यदि बात रखने का सहज व विनम्र तरीका हो;
सहज व विनम्र तरीका तभी संभव है,
यदि अंदर न "मैं" की भावना हो;
"मैं" की अनुपस्थिति तभी संभव है,
यदि पहल का उद्देश्य नि:स्वार्थ कर्म करना हो;
नि:स्वार्थ कर्म का निष्पादन तभी संभव है,
यदि मन में किसी प्रलोभन की न कोई लालसा हो,
प्रलोभन के आकर्षण का अभाव तभी संभव है,
यदि मनुष्य के अंदर सच्ची निष्ठा व समन्वय हो!"
समन्वय की भावना को आत्मसात कर पाने की कामना करते हुए, संस्था के उज्जवल भविष्य की नेक शुभकामनाएँ।