Loading...

ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया का 45 वां राष्ट्रीय अधिवेशन रायपुर में संपन्न


नागपुर/रायपुर। भारतीय साहित्य, पत्रकारिता और स्वतंत्रता आंदोलन विषय को केंद्र में रखकर उदघाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए डॉक्टर के एल वर्मा (पंडित रविशंकर विश्वविद्यालय के कुलपति) ने कहा भारतीय भाषाओं का संकट दौर चल रहा है। प्रकाशक लेखकों के बल पर टिका है। लेखक लाभ से वंचित हो रहा है। हिंदी के विकास में, देश की स्वतंत्रता में, लेखक पत्रकारों की अहम भूमिका रही है। उन्होंने ऑथर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और इंडियन रिप्रोग्राफिक्स रायटर ऑर्गेनाइजेशन की भूमिका की सराहना करते हुए कहा ,"देश के उच्च कोटि के विद्वानों से उन्हें आज सानिध्य मिला ।आज हमें भाषीय संकट से उबारने के लिए भाषाओं के प्रचार, प्रसार, संवाद पर ध्यान देना होगा ।डॉक्टर वर्मा रायपुर में दो दिवसीय अधिवेशन के उदघाटन के अवसर पर 4 और 5 जून 2022 को अपना मत रख रहे थे। सर्वप्रथम केरला से पधारे यजुर्वेद के ज्ञाता जय प्रकाश शर्मा द्वारा संस्कृत में वंदना एवं स्वागत गीत हुआ। तत्पश्चात ब्रह्मविद  द ग्लोबल स्कूल के शिक्षकों द्वारा संगीत पर सरस्वती वंदना एवं मां दंतेश्वरी की आराधना 
'हे शारदे मां, हे शारदे मां
 अज्ञानता से हमें तार दे मां 
तू स्वर की देवी संगीत तुझसे, हर शब्द तेरा है, हर गीत तुझसे।
       

इस अवसर पर अतिथियों द्वारा दीप प्रज्वलन किया गया और अतिथियों का स्वागत शॉल, स्मृति चिन्ह व पुष्प गुच्छ द्वारा डॉ सत्यनारायण शर्मा (मुख्यअतिथि ), कुलपति डॉक्टर के एल वर्मा (अध्यक्ष ) डॉक्टर सुशील त्रिवेदी (वरिष्ठ साहित्यकार ) डॉक्टर गिरीश पंकज (पत्रकार, साहित्यकार) ,डॉ अहिल्या मिश्रा ,श्री नवीन गुप्ता I I R O का क्रमशः डॉक्टर सुधीर शर्मा, डॉ ढींगरा, डा थे पी डांगर , विजय कुमार गुप्त, नरेंद्र परिहार डॉ अनुसया अग्रवाल द्वारा किया गया ।संस्था के महासचिव डॉक्टर शिव शंकर अवस्थी द्वारा संस्था की गतिविधियों उद्देश्य व आयोजनों का ब्यौरा अपनी प्रस्तावना में किया।  डॉ अवस्थी ने बताया संस्थान भारतीय भाषाओं के विकास में सन 1974 से सतत प्रगति पथ पर है । लेखक तथा प्रकाशकों के मध्य सेतु का निर्माण करने का प्रयास किया जा रहा है।
         

प्रमुख अतिथि डॉ सत्यनारायण शर्मा ने कहा कि आज के समय में वर्तमान पीढ़ी में साहित्य के प्रति रुझान बढ़ाकर उन्हें पाठकीय परंपरा की और लाना ही होगा ।भारतीय संस्कृति का ज्ञान भी देना होगा। यह जिम्मेदारी लेखकों की है उनका लिखा ऐतिहासिक दस्तावेज बनेगा ।जैसे हमारे पूर्वजों ने लेखन को हथियार बना देश को स्वतंत्र कराने में अहम भूमिका निभाई थी। अतिथि छत्तीसगढ़ मित्र के संपादक डॉ सुशील त्रिवेदी ने कहा स्वतंत्रता आंदोलन में पत्रकारों ने हिंदी नवजागरण की भूमिका भी निभाई। बंगाल महाराष्ट्र में भारतीय नवजागरण को प्रवाहित किया आपने माधव स्प्रे, पं हजारी प्रसाद द्विवेदी, गजानन मुक्तिबोध आदि के लेखन व कार्य को प्रस्तुत करते हुए उपनिवेश विरोधी भावना के लिए आत्म अवलोकन करने पर जोर दिया और कहा अतीत के बोध को आगे ले जाकर जाति, धर्म, लिंग संकीर्णता को दूर करने का भारतीय समाज में प्रयास करना होगा । 


यूरोपीय के अंधा अनुकरण से समाज को मुक्त दिलाना होगा। अतिथि गिरीश पंकज संपादक सद्भावना दर्पण ने कहा कौन भूल सकता है पं माखनलाल चतुर्वेदी की बिलासपुर जेल में 1922 में लिखी "पुष्प की अभिलाषा"। भारत देश को नवजागरण की ओर ले जाने वाले गांधीजी का योगदान महत्वपूर्ण है ।भाषिय अनुवाद देश को जोड़ने का काम करता है । I I R O  के प्रतिनिधि श्री नवीन गुप्ता ने संस्था की गतिविधियों पर विस्तार डालते हुए कहा लेखक पत्रकार मिलकर ही परिवर्तन की धुरी बनते हैं ।उन्होंने स्वराज के संपादक की "संपादक चाहिए " विज्ञप्ति पर प्रकाश डाला, जहां लिखा रहता था संपादक चाहिए पर तनखा मिलेगी 
दो सूखे थिक्कड़( रोटी)
 एक गिलास ठंडा पानी
 हर संपादकीय  के लिए 10 साल का काला पानी।
          
इस की तुलना आज का संपादक कर रहा है, क्या? आत्म अवलोकन का विषय है। उन्होंने छत्तीसगढ़ मित्र के दूसरे दौर याने माधव सप्रे के कार्य को आगे चलाने वाले डॉक्टर सुधीर शर्मा की प्रशंसा की साथ ही लेखकों की रॉयल्टी का जो नुकसान हो रहा है उस पर चैतन्यता होना जरूरी है । इस अवसर पर AGI के नए चैप्टर्स छत्तीसगढ़ के संयोजक डा सुधीर शर्मा ने अतिथियों का परिचय कराया और संस्था के वरिष्ठ सदस्य डॉ अहिल्या मिश्रा ने सबका आभार व्यक्त किया। आभार के पूर्व एशियाई के 22 सदस्यों की नवीन कृतियों का लोकार्पण अतिथियों द्वारा किया गया 

1.श्रीमती नेहा भंडारकर 'लोक हितैषी राजश्री देवी अहिल्याबाई'
2. जमील अंसारी कामठी ,'फिक्र ए जमील'( उर्दू )
3.चित्रा चिंचघरे ( मुंबई)  'विविधा' 
4.गुरु प्रताप शर्मा आग (उमरेड) 'काली दीवारों का पसीना'
5. प्रभा मेहता ,नागपुर 'पुष्प पारिजात', 'मुदित मन' (दो कृतियां)
6. नरेंद्र परिहार ,'दिवान मेरा' हिंदी दिउमासिक पत्रिका का अंक 91 जून-जुलाई 2022, एवं 'हिमांशु' ,'मायरा', 'कठपुतलियां', 'हूल है हाइकु धूल है कायकू,' 'जलता सूरज,' 'विक्रमादित्य की नजर',(छ: कृतियां) 
7.कृष्ण कुमार द्विवेदी 'स्नेहल की प्रतिभा'
8. डॉ रेखा कक्कड़, आगरा 'मनोदिशा' ,'नि:सृत प्रेम' विशेषांक एवं पोस्टर कलर्स पेंटिंग भेंट स्वरूप  दी
9. डॉ शैलबाला अग्रवाल ,आगरा 'मुक्ति पर्व '
10.प्रो अनुसिया  अग्रवाल ,महासमुंद ,' कोरोना काल के विविध परिदृश्य'
11. डॉ अरुण कुमार पासवान ,दिल्ली 'जुहू बीच '
12.डॉ कृष्णी कृष्णा वालके ,गोवा 'अंतरंगातील  कवड़से' ( मराठी)
13. डॉ शशि गोयल आगरा ,'छलकती आंखों की दहक,' ' स्वच्छता सुंदरी', 'सींग वाले शैतान',' छोटा सा दाना' (चार कृतियां )
14.श्रीमती अरुणा गुप्ता आगारा ,'हमारी साहित्यिक धरोहर ','अंतर ध्वनि मन वीणा के स्वर ','उदगार' (चार कृतियां)
15. डॉ अशोक कुमार ज्योति ,बनारस 'ढाई आखर प्रेम का'
16. डॉ प्रभा मेहरा, आगरा 'सुंदरवन की छवि',' लाल चिड़िया',' चलते जाना', 'भारत के गौरव', 'मेरी दुनिया',  'उपवन', ' नन्हा पौधा', 'थिरकता जीवन', 'फुलवारी', 'बादल' , (10 कृतियां)
 17.संपत देवी मुरारका हैदराबाद,' यात्रा क्रम' चतुर्थ भाग 
18.डॉ हरिसिंह पाल, दिल्ली,' नारी संगम पत्रिका' का अप्रैल-जून 2022 अंक एवं 'डॉक्टर दाऊजी गुप्त स्मृति ग्रंथ'
19. डॉ जे के डागर रायपुर ,100 श्रेष्ठ कविताएं 
20.दिलशाद सैफी, रायपुर,' अपने-अपने उजाले'
21. डॉ सलमा जमाल, जबलपुर,' में हूं महोबा'
22. डॉक्टर अशोक अश्रु, 'संगम पत्रिका' का नया अंक मई 2022,' चिड़िया चालीसा' और 'तंबाकू छोड़ो चालीसा' (दो कृतियां)
23. टीका राम साहू आजाद नागपुर 
         
इसके पश्चात दूसरे सत्र में आई आई आर ओ की गतिविधियों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उपाध्यक्ष आई आर आर ओ व महासचिव एजीआई के डॉक्टर शिव शंकर अवस्थी ने दिल्ली की यूनिवर्सिटी की प्रशंसा की ,जिन्होंने पब्लिक लैंडिंग राइट्स को शुरू किया ।जो विश्व के 35 देशों में सुचारू रूप से कार्य कर रहा है। लेखकों को दूसरे संस्करण पर प्रकाशक लायल्टी प्रदान नहीं करते। झेरॉक्स पाठ्यक्रम की पुस्तकें सस्ते में दी जा रही हैं। जो लेखक के साथ अन्याय है ।श्रीमान सुरेश ढींगरा ने बताया भारत सरकार की संस्थाएं ही लेखक के अधिकार व प्रकाशक के अधिकारों का उल्लंघन करती हैं। लेखक की कृति के प्रकाशक तीन एडिशन निकाल सूचना भी नहीं देते ,जो उन्होंने देखा है, रॉयल्टी की बात तो बाद की है। 

मां श्वेता देवी की बंगला कहानी का अनुवाद प्रकाशित हो गया तो लेखिका स्वयं कहती हैं उन्होंने बंगाली में यह कहानी लिखी ही नहीं ।नाट्य विद्यालय की एक पुस्तक का उन्होंने स्वयं अनुवाद किया तो मूल लेखक एक से 84 नाम निकले। सरकारें स्वयं उल्लंघन ना करें और प्रकाशक को फेडरेशन का मेंबर बनाने का सरकार को प्रक्रिया करनी चाहिए। डॉ हरिसिंह पाल संपादक नागरी प्रचारिणी दिल्ली ने कहा कि लोक साहित्य में और किसी भी कृति के 60 साल पूरे होने पर दूसरे कोई भी प्रकाशक ,लेखक उस कृति का  प्रकाशन करवा सकते हैं ।लोक साहित्य में तो यूं ही पूरी छूट है ।गलत तो तब है जब किसी और लेखक की कृति ,पांडुलिपि का दूसरा कोई अपने नाम से प्रकाशन करवा लेता है। इस पर रोक कानूनी रूप से लगनी चाहिए।
       
प्रपत्र पठान का तीसरा सत्र डॉक्टर युवराज सिंह युवा की अध्यक्षता में डॉ अशोक ज्योति के सू संचालन में शुरू हुआ। विषय था "भारतीय साहित्य, पत्रकारिता और स्वतंत्रता आंदोलन"
 
प्रथम वक्ता डॉ अरुण पासवान ने साहित्यकारों की भूमिका स्वतंत्रता आंदोलन में क्या थी पर सुभद्रा कुमारी चौहान व नवाब राय से मुंशी प्रेमचंद के सफर तक का प्रकाश डाला ।डॉ जयप्रकाश शर्मा ,केरल ने गांधीजी के अहिंसात्मक आंदोलन और जमींदारों के खिलाफ किए गए आंदोलन के साथ जलियांवाला बाग कांड को क्रांति का जनक माना ।प्रो ऊषा दुबे, जबलपुर ने राष्ट्रीय स्वाधीनता आंदोलन के परिपेक्ष में राष्ट्रीय जागरण और सुभद्रा कुमारी चौहान की भूमिका के साथ उस काल को साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद के खिलाफ जन जागरण का काल निरूपित किया। "झंडा सत्याग्रह" को राष्ट्रीय झंडे के प्रति प्रेम और राष्ट्रीय भावना के जागृत का बिम्ब माना । साथ ही कहा भाषा और साहित्य अवसर प्रदान करते हैं। डा कृष्ण कुमार द्विवेदी  ने अट्ठारह सौ सत्तावन से 1947 तक स्वाधीनता संग्राम में साहित्यकारों की लेखनी पर प्रकाश डाला ।वीरों से मिलने वाली संघर्ष प्रेरणा को प्रस्तुत किया। 

श्री ज बी एस राणा कंचन ,दिल्ली ने हिंदी भाषा में बदलाव और उसके स्वरूप के बारह सौ साल के प्रेरणादाई इतिहास पर भक्ति काल से आधुनिक काल तक का प्रकाश डाला ।रायपुर से जे के डांगर ने अपने आतिथ्य भाषण में साहित्य भाषा के बदलते परिवेश के साथ नए देश की नई सोच मिली है ।यह कहा जा सकता है भले भारतीय भाषा रोमन में लिखी जा रही हो भाशा को तो प्रचार हो ही रहा है ।अध्यक्ष युवराज सिंह युवा ने सभी प्रपत्र वाचकों के लेख पर संक्षिप्त टिप्पणी करते हुए कहा साहित्य पत्रकारिता व स्वतंत्रता आंदोलन सब एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। पाठकों को गूगल ने पुस्तकों से दूर कर दिया है ,यह चिंता का विषय है। अंत में आभार डॉ अनुसया अग्रवाल  ने माना ।
        
चोथे सत्र में डॉ अहिल्या मिश्र हैदराबाद की अध्यक्षता और नरेंद्र परिहार नागपुर के संचालन में कवि सम्मेलन हुआ ।इसमें अलवर ,नागपुर ,आगरा, ग्वालियर, जबलपुर, रीवा ,दिल्ली ,कर्नाटक, केरल ,रायपुर ,महासमुंद, भिलाई ,भुनेश्वर ,गोवा, छिंदवाड़ा, बनारस, बागबहारा,  भिलाई, दुर्ग, मुंबई से आए प्रतिनिधियों ने अपने गीत ,ग़ज़ल ,मुक्त कविताओं के माध्यम से समा बांध दिया ।इसमें देश के जाने-माने कवियों ने भाग लिया। प्रमुख रूप से डॉ अशोक अश्रु ,अंजलि अवस्थी, सुश्री भगवती चौमार, स्वर्ण ज्योति , लक्ष्मण डेहरिया , प्रदीप गौतम सुमन ,मैडम दिल्ली, अजीथन मेनौथ, डॉ उषा रानी राव ,देवीदास इंदा पवार ,पदम श्री उषा चौमार, श्रुति सिन्हा, जमील अंसारी ,आरजू पाटोदिया, डॉ वर्गिस, जेबीएस राणा, रमेश कटारिया पारस, डॉ जे के डांगर, डॉ कृष्णी कृष्ण वालके, किसान दीवान ,अनीता करडे,  किरण पोपकर, सुश्री दिलशाद सैफी ,डॉ  ज्योति कुलकर्णी आदि। इस कवि सम्मेलन की खासियत थी कि इसमें हिंदी के साथ छत्तीसगढ़ी , मराठी मलयालम भाषा में भी काव्य प्रस्तुति हुई। अध्यक्ष डॉ अहिल्या मिश्रा ने सभी कवियों की प्रशंसा की और कौमी एकता, अखंडता का, इसे महत्वपूर्ण सत्र माना। सलमा जमाल की कविता थी 
'मारा मारा सच फिरता है बीच भंवर में' 
वहीं स्वर्ण ज्योति बेंगलुरु की कविता के बोल थे
" कभी कभी यूं ही मन कहता है, कुछ ऐसे भी प्रश्न हों।
 तुम्हारे मन को कुरेदुं।
 आभार छत्तीसगढ़ चैप्टर के संयोजक डॉ सुधीर शर्मा ने माना।
        
चतुर्थ सत्र 5 जून को सुबह 9 बजे पुनः प्रपत्र पठन से हुआ। इस सत्र का संचालन बेंगलुरु की डॉ उषा रानी राव ने तथा अध्यक्षता गोवा की किरण पोपकर ने की।
 
मीरा रायकवार ने बोलियों वा छत्तीसगढ़ी अंचल की भूमिका का आन्दोलन पर विस्तृत प्रकाश डाला।छिंदवाड़ा के लक्ष्मण प्रसाद डेहरिया ने लेखकों के इतिहास की स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भूमिका की पड़ताल की। आगरा की डॉ श्रुति सिन्हा ने हिंदी को दूसरे राज्यों के मध्य सेतु का काम करने के साथ इसे राष्ट्रभाषा न बन पाने के षड्यंत्र पर प्रकाश डाला। गोवा से पधारे डॉक्टर कृष्णी कृष्ण वालके ने नए भारत के अतीत के अंतर्गत गोवा के योगदान के महत्व को समझाते हुए बताया जब बंगाल ,आसाम ,उड़ीसा आदि राज्य अपनी क्षेत्रीय भाषा के महत्व को समझा रहे थे, तो गोवा राज्य हिंदी के पक्ष में खड़ा हुआ। उन्होंने छत्तीसगढ़ अंचल की भूमिका की आजादी आंदोलन में योगदान पर विस्तृत प्रकाश डाला और सराहा ।
    
डॉ प्रदीप गौतम ने विदेशों में हिंदी को रोजगार की भाषा बनने पर हर्ष व्यक्त किया । देश में इसके सिकुड़ने पर सिंहावलोकन करने का मत भी रखा और कहा हिंदी के साथ भेदभाव किया जा रहा है। यथा उचित कदम इसके प्रचार-प्रसार के लिए नहीं उठाए जा रहे हैं ।केरल के डॉ वर्गीश ने अंग्रेजी में बताया भारत एक प्राकृतिक बहुभाषी , बहु धर्मों का देश है। हिंदी निश्चित इसे एकजुट रखने की प्रथम भाषा है।  परंतु सभी हिंदी नहीं जानते उन्होंने सोलवीं सदी की मलयालम में लिखी रामायण के साथ मलयालम भाषियों का स्वतंत्रता आंदोलन में किए गए प्रमुख प्रसंग व योगदान का जिक्र भी किया । गुरु प्रताप शर्मा आग ने सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव को दुखद व्यक्त किया। नीमच की घटित घटना का उल्लेख कर कहा नई पीढ़ी सीधे सपाट रास्ते पर चल निकली है उसे घाटियों पर से गुजरने का टेढ़ा मेढ़ा अनुभव नहीं रहेगा ।तो निश्चित देश निर्माण में उनकी सक्रियता कम हो जाएगी ।प्रभा मेहता ने गांधीजी का व्यक्तिमत्व कितना अनुपम था कि पूरे संसार को आकर्षित उन्होंने कर लिया था। 

 वे सभी संप्रदाय जाति से ऊपर खड़े होकर सब की स्वतंत्रता के लिए लड़े । व्यक्ति मरता है विचार नहीं यह आज चरितार्थ हो रहा है। मधु पाटोदिया ने एक दशक की कहानियों को आज के परिपेक्ष में रख कहा साहित्य विमर्श का धरातल बना है ।उसका अपना असर है । डा अनुसया अग्रवाल ने  छत्तीसगढ़ी साहित्यकारों की भूमिका रखते हुए कहा उनके योगदान को राख में दबे अंगार सा कहा जा सकता है । जो कहीं भी, कभी भी अपना प्रभाव रखती ही है । वे सभी देशवासियों के साथ खड़े रहे ।नरेंद्र परिहार ने अपनी ओजस्वी वाणी में लेखकों की बिकाऊ होती कलम और पुरस्कारों के कटोरा पकड़ अभियान पर प्रहार कर उन्हें नई दिशा देने का सही रास्ता सुझाया और आन्दोलन के मर्म और प्रभाव का विवरण दे प्रपत्र को पटल पर रखा। अध्यक्षता करते हुए डॉ किरण पोपकर ने बताया सेतु निर्माण में गिलहरी के योगदान को आज भी याद किया जाता है ।आज आर्थिक क्षेत्र कंगाल हो रहा है ।भारत की स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास का संरक्षण जरूरी है ।डॉ उषा रानी राव ने कुशल संचालन के साथ आभार मानते हुए कहा
'शान बने भारत की , ऐसी भाषा हिंदी हो । खोलेगी द्वार विकास के ऐसी भाषा हिंदी हो।
          
अंतिम सत्र समापन समारोह के प्रमुख अतिथि डॉ बलदेव भाई शर्मा ने कहा यह आनंद का अवसर है, मेरे लिए ।अगर प्रपत्र की प्रस्तुति का श्रोता बनने का सौभाग्य नहीं मिलता तो गंगा स्नान से वंचित हो जाता ।साहित्य और पत्रकारिता को लेखक और पत्रकार की दृष्टि से समझना होगा ।भारत की स्वतंत्रता पूरे विश्व के लिए मानव जाति के पोषक के लिए जरूरी थी। विश्व भारत से बहुत उम्मीद करता है ।आज परमाणु युग में पूरी दुनिया विनाश की धुरी पर है तब भारतीय परिवार संकल्पना विश्व की रक्षक बन खड़ी हो सकती है। भारत कभी भी गुलाम नहीं हुआ मात्र आक्रांताओं ने भारत पर राज्य किया। 

खुदीराम बोस की राख ताबीज बनाने के लिए लोगों की भागमभाग क्या भूली जा सकती है ।भारत में पुनर्जागरण भावना ऋग्वेद में ऋषियों की संकल्पना है ।उन्होंने लेखकों को आग्रह किया कि उनका लेखन भारत केंद्रित हो ।लोकहित में हो। मानव की समृद्धि के लिए हो। हमें भारत को भारत कहना सीखना चाहिए। प्रमुख अतिथि और छत्तीसगढ़ के प्रेमचंद से विख्यात डॉ परदेशी राम वर्मा ने राजेंद्र अवस्थी के साथ स्मृति क्षणों को उकेरा और कहा साहित्य में प्रतियोगिता नहीं होती। आगे कहा छत्तीसगढ़ किसी से कम नहीं ।बस यहां स्वाभिमान की कमी है ।उन्होंने माधव सप्रे को पहला कथाकार माना और छत्तीसगढ़ी में 'टोकर दाई की कहानी' का उल्लेख किया। अतिथि स्वदेश चैनल के प्रधान संपादक सुभाष मिश्र के व्यंग्यात्मक तेवर थे,
 जो मेरे घर कभी नहीं आएंगे। मैं उनके घर खुद चला जाऊंगा।।
 
उन्होंने हबीब तनवीर, मुक्तिबोध, शंकर, श्रीकांत वर्मा ,मालती जोशी के साहित्यिक योगदान का जिक्र करते हुए कहा साहित्य को बांधा नहीं जा सकता। लोकहित ही इसका उद्देश्य होता है। पत्रकारिता आज मिशन नहीं कमीशन बन गई है। साहित्य में नई सोच नए लेखक नहीं आ रहे हैं। आज पीत पत्रकारिता का दौर है । धूमिल का उल्लेख करते हुए आज के परिवेश को उन्होंने ऐसे व्यक्त किया,
'जैसे खेतों में सूअर, वैसे ही दिमाग में पैसा'
 
आगे कहा मैं व्यक्ति से नहीं मिलने जा रहा हूं, मैं अपनी हताशा से मिलना चाहता हूं । सबसे अंत में चैप्टर्स के सदस्यों को स्मृति चिन्ह, दुपट्टा प्रदान कर फोटोग्राफी हुई। आभार डॉ अहिल्या मिश्र ने अपने अध्यक्षीय भाषण के साथ माना। और रायपुर अधिवेशन   कोरोना काल के बाद नवजागरण का दृश्य प्रस्तुत कर कहा, अब लेखक अमृत की बूंदों को जगह जगह ले जाकर अपनी लेखनी से समाज हित में भारतवर्ष के हर अंचल में मिलाए तो समझो अधिवेशन सार्थक हो गया। 


- नरेंद्र परिहार 
नागपुर, महाराष्ट्र 
समाचार 7100662475449533199
मुख्यपृष्ठ item

ADS

Popular Posts

Random Posts

3/random/post-list

Flickr Photo

3/Sports/post-list