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साहित्य अर्पण मंच से काव्य गोष्ठी का आयोजन


                                    

नागपुर/दुबई। साहित्य अर्पण मंच का निर्माण नेहा शर्मा ने 4 वर्ष पूर्व दुबई से किया था, इसे देश-विदेश में ख्याति मिल रही है। साहित्य अर्पण में अनगिनत साहित्य कार्य समय समय पर होते रहते हैं ।ऐसे ही साहित्यकार्य की श्रृखलां में छंद कार्यशाला के समापन में काव्य गोष्ठी का आयोजन 29 मई को रखा गया। जिसमें विभिन्न प्रांत के विभिन्न कवि और कवित्रीयों ने प्रतिभागीता कि सभी रचनाकारों ने अपने बेहतरीन काव्य पाठ कर अनेक विधाओं में रचना पाठ कर मंच पर अनेक रंग बिखेरे। 

कार्यक्रम के आयोजनकर्ता नेहा शर्मा ने दुबई से बेहतर और बहुत सुंदर ढंग से कार्यक्रम की रूपरेखा रखी। मंच संचालिका का कार्य विभा सिंह और स्मिता सिंह ने बहुत ही सुंदर ढंग से किया। आयोजन का आरंभ नेहा ने मुख्य अतिथि डॉ अनिल कुमार वाजपई को आमंत्रित करके किया जिन्होंने गुरुवर राजेश पांडे के जीवन पथ के बारे अपनी वाणी में बताया तत्पश्चात जैसा कि मांँ शारदे की बिना हर कलम अधूरी रहती है माँ की वंदना सपना यशोवर्धन व्यास जी ने 'मांँ शारदे आन बसों' के द्वारा करके मंच से मांँ की आह्वान कर आशीर्वाद प्राप्त किया। मंच संचालिका विभा सिंह ने सभी अतिथियों का मनहगुलदस्ता देकर स्वागत किया, मंच संचालिका स्मिता सिंह ने गुरुवर शंकर कुमार पांडे भूषण को उद्बोधन के लिए आमंत्रित किया, जिन्होंने छंद शाला में शिक्षा प्रदान की गुरुवर ने अपने उद्बोधन में साहित्य सुधा अर्पण का महत्व बताया और सभी छात्रों के उज्जवल भविष्य की कामना करते हुए आशीष प्रदान किया। 

विभा सिंह ने मुख्य गुरुवर राजेश पांडे का धन्यवाद बोधन किया और स्मिता सिंह ने गुरुवर का उद्बोधन किया जिन्होंने संस्कृत भाषा में अपने वचन प्रस्तुत किए और अपने बड़प्पन दिखाते हुए स्वयं को जामवंत बताकर सभी शिष्यों की मंगल कामना के साथ में उज्जवल भविष्य की आशीर्वाद प्रदान किया। काव्य पाठ की श्रृखलां का आरंभ हुआ और सर्वप्रथम मालिनी द्विवेदी गुजरात से जुड़ी जिन्होंने अपने घनाक्षरी गुरुदेव 'ज्ञान देत इत परम' गुरुवर के चरणों में अर्पित करें और हे वीर द्वारा आज के नौजवान पीढ़ी को धर्म पथ पर चलने का पथ दिखलाया। डॉ किरण जैन ने मंच पर अपनी ग़ज़ल 'पांव शबनम में जिनके जलते हैं। जाने क्यों घर से वो निकलते हैं' आज के परिवेश को बयां करती ग़ज़ल प्रस्तुत की। डॉ अनिल कुमार वाजपेई ने पुलवामा के शहीदों को नमन कर श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए वर्तमान में प्रेम दिवस 14 फरवरी पर कटाक्ष करती अपनी रचना 'यह प्रेम दिवस कैसे मनाऊं', 'कटे पड़े थे अंग जमी पर तड़प रहे थे वीर हमारे' प्रस्तुत की, प्रमोद दहिया ने मनहरण घनाक्षरी मांँ शारदे को वंदन करते हुए अपने काव्य पाठ का आरंभ किया और मांँ घनाक्षरी गाकर मंच को मार्मिकता की ओर मोड़ दिया। 

आराधना उपाध्याय ने अपने रचना विधाता छंद 'खुशी गम का हुआ संगम घड़ी अभी चली आई बरसती प्रेम की धारा बही संगीत की पुरवाई' प्रस्तुत कर मंच को प्रेम से भर दिया 'तुम बसंत बन जाओ तुम स्वाति बन जाओ' सुना कर एक प्रियसी की भावनाओं को व्यक्त करते हुए मंच में समा बांध दिया। इंजीनियर हेमंत कुमार जैन ने मांँ पर कविता 'मांँ के बारे में कहना मुश्किल है' कहना सब कुछ कह कर भी कुछ ना कह पाना मांँ के बारे में सब कुछ कह दिया। मंच अब पहुंँचा रंगीले राजस्थान की ओर जहाँ से आदरणीया सपना यशोवर्धन व्यास जी ने अपनी मधुर आवाज में घनाक्षरी 'हिंदी दिवस हिंदी हमें प्यारी है' सुमधुर घनाक्षरी प्रस्तुत कर  छंदशाला का सार प्रदान किया। तत्पश्चात मुख्य अतिथि आदरणीय डॉ प्रदीप मिश्रा जी ने जो कि रसायन शास्त्र के ज्ञाता होने के साथ हिंदी साहित्य में भी अपनी अनोखी पकड़ रखते हैं, जिन्होंने गांधीजी पर 'बापू की गांठ' गद्यरूपी संवाद जो कि वर्तमान की स्मार्ट सिटी पर कटाक्ष व्यंग प्रस्तुत की। 

मनु रमण चेतना जी अपनी रचना 'मेरी माँ' 'जिससे बंधके खुशियां मेरी जिससे महक के सारे जहां सबसे प्यारी मेरी मांँ' प्रस्तुत की। अरविंद जी ने मंच पर अपनी रचना अपने मधुर भाव गुरुवर को नमन करते हुए प्रस्तुत करें और 'भारत की भव संस्कृति को संसार में पूजा जाता है' भारत भूमि का गुणगान किया और मंच से माँ भारती का मान गा कर मंच का मान बढ़ाया और नारी के अस्तित्व की यथार्थता को दिखाती रचना प्रस्तुत कर नारी का सम्मान और भ्रूण हत्या तथा बालिका शिक्षा पर प्रकाश  डालती अपनी रचना।                            
बबीता जी ने मंच पर अपनी रचना मांँ शारदे को नमन करते हुए 'हे वीणा वादिनी इतना वर देना वाणी में शीतलता भर देना' के साथ अपनी रचना 'मन की उड़ान हवा से तेज नित नए सपने रखती सहेज और यादों के बादल जब बरसे मन रिता तरसे जीवन में बुराई हो सकती है बुराई जीवन नहीं हो सकती' मुक्तक सुनाएं और हाइकु जैसी विधा 'बेटी है परी भरने दो उड़ान पंख ना काटो' मुक्तक और हायकू प्रस्तुत कर मंच को नई विधा प्रदान की। 

मंच संचालिका स्मिता सिंह जी ने मंच पर गणेश जी की वंदना 'पार्वती नंदन आशीष वंदन रुप गजानन सुशोभित है' अपने काव्य पाठ का आरंभ किया और 'कविता करे जो व्यक्त भावों को वह मेरे शब्द थोड़े हैं' मंच के काव्य पाठ को चरम पर पहुंँचा दिया। आदरणीय चंचल हरेंद्र वशिष्ठ वशिष्ठ जी ने दिल्ली से अपने चंचल वाणी से घनाक्षरी भाषा की कोमल 'कोयल की कुहू कुहू' गाकर वाणी की मधुरता का ज्ञान दिया, एक रचना प्रश्न शैली में 'जन्म न देते दुनिया में दिखलाता कौन' जीवन में माता-पिता और गुरु के महत्व को बताया।साधना जी ने अपनी रचना पूर्वज 'आया प्रभात हुए नयन उन्मूलित' ह्रदय स्पर्शी रचना प्रस्तुत की मीडिया रिपोर्टर स्वाति सिंह साहिबा  द्वारा 'चांँद पुरा लगता है और सौदेबाजी मैं जीवन हार' दिया कविता मंच पर प्रस्तुत की. मंच संचालिका विभासिंह जी ने अपने पारंगत विधा घनाक्षरी 'समस्त सृष्टि में व्याप्त ओंकार है' प्रस्तुत कर मंच पर श्रृगांर रस की रचना 'कितनी शामें गई रात भी चुप रही' अपने मधुर गायन से मंच को अनुराग से भर दिया है। 

काव्य पाठ की श्रृंखला में गुरुवर शंकर कुमार पांडे भूषण जी ने अभिव्यंजना वीर रस में सारसी छंद में 'बता कौन किस पर भारी जीवन के दिन सात' जीवन की सत्यता को स्पष्ट किया और गजलनुमा रचना 'मुझे मार डाला किसी की बेवफाई' ने प्रस्तुत करी ।मंच की समीक्षा आदरणीय डॉ प्रदीप शर्मा जी के द्वारा की गई और कविगणों को नया ज्ञान प्रदान किया। मंच का समापन साहित्य अर्पण ‍संस्थापिका नेहा जी अपने प्रोत्साहन वाणी से और अपनी रचना 'कौन कहता है विदेशों में जाकर बस जाते हैं अपने वतन की मिट्टी की खुशबू विदेशों तक ले जाते हैं' प्रस्तुत कर दुबई में भी भारत भूमि के रंग और खुशबू बिखेरी तथा नारी की रूह कांपती रचना और नारी के दुखांत को बयां करती 'निशा तुम चबा रहे हो मुझे अपने पतले नुकिलें‌‌ जबडो से' बयां कर मंच पर करुण स्वर से भर दिया। कार्यक्रम का समापन नेहा जी ने अपने धन्यवाद ज्ञापन किया।
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