प्रश्न चार धामों की पवित्रता एवं स्वच्छता का?
कुछ दिन पूर्व उत्तराखंड के चार धामों यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ व श्री बद्रीनाथ में से एक केदारनाथ में पर्यटकों की भारी भीड़ एवं वहां उनके द्वारा फैलाए गए कचरे का अंबार, पहाड़नुमा ढेर, उनसे फैलती बदबू के विभत्स्य दृश्य। एक न्यूज़ चैनल पर देखें और उसके पश्चात आज पुनः: एक समाचार पत्र में 'मंदाकिनी में फेंक रहे खच्चरों के शव, बिमारियों का खतरा बढा' समाचार विस्तार से पढ़ें।
ये समाचार पढ़, सुन देख कर मन दु:की हुआ, ग्लानि से भर गया ।विचार आया हमारे देश में ये चारों धाम अत्यंत ही पवित्र तीर्थ स्थल हैं ।हर हिंदु अपने जीवन में कमसे कम एक बारऐसे पवित्र तीर्थ। स्थलों में जाकर अपना जीवन धन्य कर लेना चाहता है। प्राचीन समय में इन तीर्थ स्तलों का मार्ग अत्यंत दुर्गम, दुरूह होने के कारण इच्छा होते हुए भी बहुत कम लोग वहां पहुंच पाते थे और जो श्रद्धालु भक्त जाते भी थे वे सकुशल वापस लौटकर आने की चिंता किए बिना ही जाते थे।
अपने बचपन में मैंने अपने कुछ रिश्तेदारों को इन तीर्थ स्थानों की यात्रा में जाते समय गले मिलकर रोते व हार पहनाकर चरण स्पर्श करते देखा है। कई श्रद्धालू तीर्थ यात्री तो सिरपर पोटली लेकर निकल पड़ते थे बिना साधन सुविधाओं के भी।राह में कहीं ईंटों का चूल्हा जला कुछ सादा भोजन तैयार कर चल पड़ते थे। इन यात्राओं के पीछे शुद्ध सात्विक भावना, श्रद्धा व विश्वास होता था यात्रियों का तो वैसा ही पावित्र्य भी वहां महसूस होता था।
किंतु समय बदलता है, बदलते समय के अनुसार अब इन तीर्थ स्थानैं पर जाने की अनेक सुविधाएं, वसाधन जुट गये हैं,तो मार्ग भी पहले से सुगम हो गये हैं। खच्चर, घोड़ें, डोलियों से लेकर अब चार पहिया वाहनों व हेलिकाप्टरों की भी सुविधाएं हों गई हैं। साथ ही ठहरने रुकने खाने पीने की भी उत्तम व्यवस्थाएं उपलब्ध हैं। अंत:अब इन दुर्गम तीर्थ स्थानों पर यात्रियों की, पर्यटकों की भारी भीड़ जमा होने लगी है। पिचले दो वर्षों से कोरोना के कारण रुकी भीड़ अब उमड़ पड़ीं है, जिसे नियंत्रित करना कठिन हो गया है। परिणामत:यात्रियों को बीच में ही रोकना पड़ा रहा है।
इतनी भारी संख्या में इन तीर्थ क्षेत्रों में यात्रियों की भीड़ कुछ प्रश्न खडे़ करती है। सर्व प्रथम क्या वास्तव में ये वे यात्री हैं जो अत्यंत श्रद्धा भक्ति से यहां आते हैं,पवित्रता की भावना से आते हैं? अथवा ये वे पर्यटक हैं जो अब अनेक सुविधाओं के चलते यहां घूमने, मौज मस्ती करने आते हैं ?
ठीक है,पर्यटक बनकर आते हैं तो भी कोई आपत्ती नहीं,बशर्ते इन अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थानों की स्वच्छता पावित्रता का पूरा ध्यान रखा जाय ।जिस तरह से इन पवित्र स्थानों में कूडा़ करकट, गंदगी, बदबू आदि फैलाई जाती है देखकर दु:ख होता है, ग्लानि होती है। भले ही पर्यटकों के मन में तीर्थ यात्रियों वाली पवित्र भावना न हो, कमसे कम सभ्य,सुसंस्कृत नागरिकों की कर्तव्य भावना तो हो। अन्यथा यदि ऐसा ही रहा तो हम कल्पना भी नहीं कर सकते क्या स्थाति होगी भविष्य मे इन तीर्थ स्थानों की!
दूसरी एक और बात जो प्रश्न खडा़ करती है उन मूक प्राणियों की सामर्थ्य से अधिक उनसे काम लेने की व अंतत: उनके शवों को मंदाकिनी में बहा देने की ।पैसा सभी के लिए आवश्यक है। वहां कार्य कर रहे खच्चरों, घोड़ों के मालिकों व हाथों के लिए भी, किंतु ऐसे मूक प्राणियों से जब सामर्थ्य से बहुत अधिक काम लिया जाय व बदले में भरपेट भोजन भी उपलब्ध न हो तो यह कैसा न्याय ? केदारनाथ में करीब करीब उन्नीस किमी. पैदल यात्रा के लिए श्रद्धालुओं को घोडों खच्चरों की मदद लेनी होती है, किंतु यात्रियों की अधिकता के कारण, हाकर अधिक कमाई की लालच में इन खच्चरों से दिन में तीन तीन चक्कर लगवाते हैं।
उन्नीस किमी. दिन में तीन बार। किंतु उस अनुपात में पर्याप्त भोजन नहीं ।बेचारे मूक प्राणी!उससे भी दयनीय स्थिति यह कि यदि आवश्यकता से अधिक बोझ ढोते ढोते वे मर जाते हैं तो मंदाकिनी सामने ही बह रही है, बहा दीजिए। हो गया काम ! कैसी निर्दयता ! बात यहीं नहीं थमती।अब इन खच्चरों के शवों से जो दुर्गंध व बिमारियां फैलती हैं, प्रदूषण, गंदगी, इसके लिए जिम्मेदार कौन?इन चार धामों की यात्रा में यात्रियों की मृत्यु संख्या भी बढ़ीं है।
प्रश्न अत्यंत गंभीर है, पहले तो बहुत अधिक संख्या में यात्रियों को यहां जाने ही न दिया जाय और सामर्थ्य अनुसार जितने भी जाते हैं किसी भी हालत में वहां गंदगी न फैलाएं। उन स्थानों का पावित्रय नष्ट न किया जाय और उन स्थानों का ही, क्यों किसी भी तीर्थ स्थान अथवा सार्वजनिक स्थल की स्वच्छता का पूरा ध्यान रखा जाय। स्वच्छता में ही ईश्वर का निवास है।
- प्रभा मेहता
नागपुर, महाराष्ट्र