मनोरंजन यह मानव जीवन की अपरिहार्य आवश्यकता : डॉ. कामना श्रीवास्तव
नागपुर/पुणे। कला का उद्देश्य मनोरंजन है और यह मानव जीवन की अपरिहार्य आवश्यकता है। अतः रीतिकाल का मूल्यांकन कला के उद्देश्य मनोरंजन को ध्यान में रखकर करना चाहिए। यह विचार डॉ. कामना श्रीवास्तव, इंदौर ने अपने उद्बोधन में व्यक्त किए। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज के तत्वावधान में आयोजित रीतिकाल के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएं विषय पर आयोजित राष्ट्रीय आभासीय 108 वीं गोष्ठी में वे अपना उद्बोधन दे रही थीं।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उ. प्र. के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ शाहाबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने समारोह की अध्यक्षता की। डॉ. कामना श्रीवास्तव ने आगे कहा कि, - हिंदी साहित्य के इतिहास संवत 1700 से 1900 तक के समय को रीतिकाल नाम से संबोधित किया गया है। इस काल में प्राय: तीन प्रकार की रचनाएं लिखी गईं। श्रंगार रस संबंधी, रीति संबंधी तथा नायिका भेद संबंधी। इसी आधार पर विद्वानों ने इन कवियों को तीन वर्गों - रीतिवद्ध , रीतिमुक्त तथा रीति सिद्ध मैं विभाजित किया है। रीति सिद्ध काव्य का उद्देश्य परांत सुखाय रहा। जबकि रीतिमुक्त काव्य का उद्देश्य स्वांत सुखाय है।
पूना कॉलेज, पुणे, महाराष्ट्र के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ.मोहम्मद शाकिर शेख ने इस अवसर पर कहा कि, - रीतिकाल के श्रृंगारी कवि बिहारी शाहजहां के कृपा पात्र थे। बिहारी सतसई के ग्रंथ में 726 दोहे हैं। बिहारी सतसई में श्रृंगार, नीति, भक्ति, वैराग्य, गणित, ज्योतिषी जैसे अनेक विषयों का आस्वाद पाठकों को मिलता है।
विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उ. प्र. के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शाहबुद्दीन नियाज मोहम्मद शेख ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि, - इतिहास की दृष्टि से रीतिकाल के समय में मुगलों का राज्य था। परिणामत: उनके वैभव, विलास और विजय के अनेक वृतांत मिलते हैं। प्रारंभ में सुनीता जौहरी ने सरस्वती वंदना प्रस्तुत की। कुमारी चित्रांशी श्रीवास्तव ने स्वागत भाषण दिया। संस्थान के सचिव डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी की विशेष उपस्थिति रही। गोष्ठी का आयोजन संयोजन श्रीमती पुष्पलता श्रीवास्तव, रायबरेली ने किया। सफल संचालन व नियंत्रण डॉ. रश्मि चौबे, प्रतिनिधि गाजियाबाद ने किया तथा डॉ. वंदना श्रीवास्तव, लखनऊ ने आभार ज्ञापन ने किया।