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पहली बारिश की पहली फूहार


तपतपाती कड़कती धूप से 
हो जाता बेचैन मन।
ऐसे में बरस जाए बारिश की 
बूंदे कर देती तन मन को खुश।
नहीं रुकते कदम मेरे बढ़ जाते
आंगन की ओर।

भीग जाती मै पहली बारिश में
मन हो जाता भाव विभोर।
मन खुशी से नाच  उठता जब
भीग जाती मैं पहली बारिश में।
बारिश में कई अठखेलिया करता
ये मन।

मन हो जाता मस्त मौला खो जाती
बारिश के अनछुए स्पर्श से।
घने बादलों की घनघोर घटा देख
नाच उठता मोर भी।
देख ऐसा अलौकिक दृश्य मन में
कर लेती  कैद।

बड़ा सुहाना लगता है घर में नहीं रूकते
कदम।
लंबी सैर पर निकल पड़ता ये मतवाला मन।
बारिश की पहली बूंदें कर देती मुझे भाव विभोर।
मानो मुझसे कह रही है भीग जाने को।
पर मैं खड़े देखती रहती जैसे किसी का

मेरे जीवन में आने का संकेत हो।
आसमान भी मुझे निहार रहा यूं मुस्कुराकर
जैसे कोई तारा टूटेगा और बारिश की पहली
फूहार में मेरे मन की इच्छा पूरी हो जाएगी।

- सविता शर्मा, मुंबई
काव्य 2370114341398944725
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