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कैसे हो?


अल्लाह की मेहरबानी, 
गुरूजी का आशीर्वाद, 
ईश्वर की दया,
आपकी दुआएं,
भौतिक खुशीयां,
मन की भ्रांतियां, 

इन्हें शिल बट्टे 
पर कूटकर  
दो दो चम्मच 
दिन में चार बार 
ले रहे हैं,

अच्छे हैं।

रात और दिन 
अथक परिश्रम 
से बहते
पसीने की बूंदें
कर्मकांड की
सिगड़ी में डाल 
हाथ सेंक रहे हैं,
अच्छे हैं ।

खाली बरतन 
सामने ले 
हलवा पूरी के 
सपने संजोए 
भूखे पेट 
मुस्कुरा रहे हैं, 
अच्छे हैं।

आसमान के
कोरे क्षितिज पे
मन की 
कलम दवात से 
पागल जैसे 
लिख रहे हैं,
सोचकर कि
लिखा सब कुछ
अमिट है, 

जी रहे हैं 

सच में
बहुत अच्छे हैं।।

- डॉ. शिवनारायण आचार्य ‘शिव’
 नागपुर, महाराष्ट्र
काव्य 3956687447536743181
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