शादी-विवाह में अपनेपन की जगह वैभव प्रदर्शन कराया जाता है : हरेराम वाजपेयी
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नागपुर/पुणे। भारतीय संस्कृति में विवाह एक महत्वपूर्ण संस्कार होता है। पर अब स्नेह निमंत्रण नहीं, वैभव दर्शन का आमंत्रण होता है। परिणामत: अपनेपन के स्थान पर वैभव प्रदर्शन करने पर जोर दिया जाता है। यह विचार हिंदी परिवार इंदौर, मध्य प्रदेश के संस्थापक अध्यक्ष हरेराम वाजपेयी ने व्यक्त किये। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के तत्वावधान में 'शादी-ब्याह: बढ़ता दिखावा, घटता अपनापन' विषय पर शुक्रवार 15 दिसंबर, 2023 को आयोजित 183 (25) वीं राष्ट्रीय आभासी गोष्ठी में विशिष्ट वक्ता के रूप में वे उद्बोधन दे रहे थे। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। वाजपेयी ने आगे कहा कि आमंत्रण में नेह और अपनापन पर अब शादी विवाह मेला हो गया है। सम्मान की जगह मिलते हैं धक्के, विशेष कर प्रीतिभोज के नाम पर। वाजपेयी ने इस विषय में अपनी व्यथा-कथा के साथ अनुभव भी सुनाएं। दीनबंधु आर्य, लखनऊ, उत्तर प्रदेश ने कहा कि समय के साथ विवाह कार्यक्रमों का बाजारीकारण शुरू हो गया है। शहरों में स्थान की कमी, मधुर संबंध का अभाव एवं पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव ने विवाह को दो प्राणियों का मिलन के स्थान पर बाजारीकारण के आगोश में ले लिया। यहीं से दिखावे की होड़ शुरू हो गई। परिणामत: परिवारों में प्रेम व सहयोग की भावना समाप्त हो गयी। सभी सुविधाओं की चाह रखने लगे, जिससे व्यय में वृद्धि हो गयी। करोना काल में प्राकृतिक आपदा के चलते खर्चे पर अंकुश लग गया था। परंतु स्थिति से उभरते ही पुन: वैभव प्रदर्शन आरंभ हो गया।
श्रीमती अपराजिता शर्मा, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने कहा कि प्राचीन काल में वर और वधु को नई गृहस्थी की शुरुआत के लिए दिया जाने वाला उपहार दहेज कहलाता था पर वह दहेज शब्द धीरे-धीरे दानव का रूप लेते चला गया। फिर इसमें दिखावा और बनावटी पन का समावेश होता चला गया। हर घरेलू अब इवेंट के नाम पर भोंडे प्रदर्शन, दिखावा बनकर रह गए है। बिदाई तक में आजकल फिल्मों का प्रभाव दिखने लगा है। फेर लेते हुए आधे रिश्तेदार यूं भाग निकलते हैं।श्रीमती फरहत उन्नीसा खान, सिंरोज, विदिशा,मध्य प्रदेश ने कहा कि शादी-विवाह में मध्य वर्ग एवं निम्न वर्ग पानी की तरह पैसा बहाने में नहीं हिचकिचाते। शादी में अपना स्तर, रुतबा और झूठी शान दर्शा रहे हैं। परिणामत: आत्मीयता का भाव लुप्त हो गया है। प्रारंभ में विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान ,प्रयागराज ,उत्तर प्रदेश के सचिव डॉ. गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी ने विषय की प्रस्तावना में पूर्व स्थितयों आवभगत, आत्मीयता के संदर्भ में बताया कि पहले जब गांव में किसी एक घर में शादी होती थी तो सारा गांव उसे अपने घर की शादी समझ कर हर प्रकार के सहयोग में जुड़ जाता था। भारतीय सुरुचि भोज होता था। अब खड़-खाना हो गया है। सजावट-दिखावट में लाखों खर्च होते हैं। कुछ लोग यह खर्च कर्ज लेकर भी करते हैं। आपके स्वागत के लिए अब कोई भी दरवाजे पर खड़ा नहीं होता है।
संस्थान के अध्यक्ष प्राचार्य डॉ. शहाबुद्दीन नियाज मुहम्मद शेख, पुणे, महाराष्ट्र ने अध्यक्षीय समापन में कहा कि भारतीय संस्कृति के 16 संस्कारों में विवाह एक अत्यंत महत्वपूर्ण संस्कार है, जिसे सात जन्मों का बंधन माना गया है। विवाह एक ऐसा बंधन है,जो प्रेम,विश्वास, समर्पण पर आधारित होता है, पर आज शादी-ब्याह ने आधुनिकता, फैशन व वैभव प्रदर्शन के नाम अलग ही रूप धारण किया है। विवाह समारोहों में अत्यधिक व्यय की प्रवृत्ति मानव समाज को दरिद्रता की ओर ले जाती है। आजकल विवाह तय होने के पश्चात वर्ष भर विविध आयोजन चलते रहते हैं। 1000 से लेकर 2500 रुपए की प्रति भोज थाली अपनेपन को घटाकर बढ़ते दिखावे का प्रदर्शन करती है। ग्रेसियस कॉलेज आफ एज्युकेशन, अभनपुर, रायपुर, छत्तीसगढ़ की एसोसिएट प्रोफेसर तथा विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश की छत्तीसगढ़ प्रभारी डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने गोष्ठी का सुंदर व सफल संचालन करते हुए अपनी अभिव्यक्ति में कहा कि शादी-ब्याह में बढ़ता दिखावा और घटता अपनापन वर्तमान समाज की बड़ी समस्या हो गई है। लाखों-करोड़ों रुपए मात्र दिखावे में गंवा देते हैं, जिससे वर और वधु दोनों पक्षों की जेब ढीली हो रही है। इस स्थिति को मानव समाज ही रोक सकता है। गोष्ठी का शुभारंभ संस्थान के युवा संसद राष्ट्रीय प्रभारी श्री लक्ष्मीकांत वैष्णव, शक्ति, छत्तीसगढ़ द्वारा प्रस्तुत सरस्वती वंदना से हुआ। प्रा. नम्रता ध्रुव, रायपुर, छत्तीसगढ़ ने स्वागत भाषण प्रस्तुत किया तथा श्रीमती प्रतिमा चंद्राकर ने सभी के प्रति आभार ज्ञापन किया। इस गोष्ठी में प्रो. डॉ. प्रतिभा येरेकार, प्रो.डॉ. शहनाज शेख, जयवीर सिंह, श्रीमती उपमा आर्य, रतिराम गढ़ेवाल, डॉ सरस्वती वर्मा, प्रा. पूर्णिमा झेंडे सहित अनेक गणमान्यों की सक्रिय उपस्थिति रही।