महिलाओं में कुछ कर गुजरने की चाहत!
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एक महिला होने के नाते, महिलाओं की मानवीय संवेदनाओं का अवलोकन करते हुए व महिलाओं की अपने अस्तित्व को सार्थक बनाने की जद्दोजहद को गहराई से समझते हुए अब बरसों हो चुके हैं। और फिर लेखनी, पत्रकारिता और सामाजिक कार्यो से जुड़े होने के कारण विभिन्न क्षेत्रों से संलग्न महिलाओं से निरंतर सामना भी होता रहता है। इन सबके दरमियान एक बात तो निश्चित है कि अधिकतर पढ़ी-लिखी महिलाओं को अपनी एक अलग पहचान बनाने की ख्वाहिश तो जरूर होती है। अब जो नौकरी पेशा होतीं हैं वे तो घर गृहस्थी और नौकरी में व्यस्त हो जातीं हैं और नौकरी चाहे कैसी भी हो उन्हें कामकाजी होने का एक गर्व होता है, वे घर की मासिक आय में अपना योगदान दे पातीं हैं इसलिए वे अपने पति से हर चीज में दावे के साथ बराबरी करने की क्षमता रखती हैं।
स्वाभाविक है कि उनका आत्मविश्वास भी ऊँचा रहता है। लेकिन जो महिलाएं गृहिणी या होम मेकर होतीं हैं उन्हें वैसे तो लोग कहने के लिए खूब प्रशंसा करते हैं कि गृहिणी होना तो अपने आप में त्याग व समर्पण की बात है हमें गृहिणियों को विशेष सम्मान देना चाहिए कि ऐसी महिलाएं अपनी प्रतिभाएं और तमाम बड़ी बड़ी डिग्रियों के बावज़ूद घर गृहस्थी संभाल रहे हैं। लेकिन ये हकीकत नहीं है। ऐसी सभी बहनें कहीं न कहीं अंदर से ये सोचती हैं कि काश वे खुद से मुखातिब हो पातीं, काश वे अपने अंदर के हुनर को तलाश पातीं, या वे जीवन में खुद को कैसे देखना चाहती हैं उन्हें सम्भव कर पातीं। और जब वे इस आंतरिक संघर्ष में रहती हैं और सच्चे दिल से किसी माध्यम की तलाश करती हैं तो निश्चित रूप से प्रभु कृपा से कुछ ऐसा दिव्य संयोग बनता है।
ये बातें उपदेशात्मक या देखा सुना ही नहीं बल्कि आप बीती बात है जिसमें पिछले दो महीनों के अंदर मेरी मुलाकात दो ऐसी महिलाओं से हुई जो पढ़ी लिखी, सम्पन्न व ऊंचे खानदान से ताल्लुक रखते हैं। एक मेरी कॉलेज की प्रिय मित्र जो मुझे 25 साल बाद दिल्ली में मिली और दूसरी मेरी अपनी बिल्डिंग की हैं जो कुछ महीनों से पहले धीरे धीरे दोस्ती बढ़ा रहीं थीं फिर अचानक मुझसे घनिष्टता बढ़ाने लगी। कॉलेज मित्र को मिलने के बहाने अपनी संस्था से संबंधित ऑफिशियल मीटिंग में ही बुलायी तो उसकी मुलाकात कुछ जाने माने बुद्धिजीवियों समाजसेवियों से करायी, तो वह बेहद आनंदित हुई बार-बार खुशी से उसके आंसूं छलक पड़ रहे थे, उसका मेरे कार्यों को सराहना, गौरवांवित महसूस करना और जानने की जिज्ञासा से साफ़ जाहिर हो रहा था कि वह अब कुछ अपने लिए करना चाहती है, जब उसके बच्चे बड़े हो गए हैं।
उसने दो दशक तक समर्पित गृहणी जीवन जी लिया है, उसे पैसों से कोई सरोकार नहीं पर्याप्त है लेकिन अपने भीतर से मुखातिब होना था इसलिए शायद ईश्वर ने एक संयोजन किया कि जो उसमें आंतरिक बदलाव ला सके। उसी प्रकार जो मेरी बिल्डिंग की मित्र घनिष्टता बढ़ते ही जिज्ञासा से भरी हुई थी, धीरे धीरे लेखनी में अपनी दिलचस्पी, मेरे कार्यों की सराहना के साथ साथ अत्यंत प्रेरणा लेते हुए सीखने की ख्वाहिश रखना उसकी आदत में शुमार हो गया। फिर मेरे एक ऑनलाइन कार्यक्रम में अवसर मिलते ही, कुछ और अपने इंटरेस्ट के क्षेत्रों में मुझसे कुछ सहयोग मिलते ही हो खुद से मुखातिब हो पायी और बेहद अभिभूत हुई।
दोनों ही दोस्तों के दिल में मैंने एक आंतरिक खुशी महसूस किया जैसे ईश्वर ने उनके अंदर के मोती को उनके सीप से बाहर निकालने के लिए मुझ नाचीज़ को चुना हो। जब हम किसी को उनके आंतरिक उलझनों से छुटकारा दिलवाने में सफ़ल होते हैं तो उनकी खुशी हमारी असीम खुशी बन जाती है।
उनके आंतरिक आनंद ने मुझे ईश्वर के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का एक स्वर्णिम अक्सर दिया, और आशा करती हूं प्रभु की कृपा यूँ ही हम सब पर बरकरार रहेगी। गौरतलब हो कि इन दोनों उदाहरणों में दोनों को ही धन कमाने की कोई जरूरत नहीं लेकिन मन में कुछ कर गुजरने की इच्छा शक्ति पायी गयी। ताकि उनकी खूबियां धरी की धरी न रह जाए।
- शशि दीप
विचारक/ द्विभाषी लेखिका, मुंबई
shashidip2001@gmail.com