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गुड्डा!


रोज की तरह आज भी साइकिल रिक्शा मारोती  मंदिर के सामने आया, रिक्शा वाले ने भगवान मारुती को प्रणाम किया !, और हमेशा की तरह, भगवान मारुतिराय से एक ही बात के लिए प्रार्थना किया और  कहा, "भगवान मेरी छोटी "गुड्डी" (जो की उसकी बेटी थी।) उसको खुश रखें, हे भगवान ! मुझे पर्याप्त कमाने दो, ताकि मैं उसकी  मांग पूरी कर सकूं। ऐसा कहकर रिक्षे वालेने उसके रिक्षे के हँडल को प्रणाम किया, और रिक्षेके पैडल पे पैर "रखा और स्थिर दृष्टि से रिक्शा चलाने लगा ! खर्रखचक-खर्रकचक पैडल की आवाज आने लगी, सड़क पर गढ्ढे ,पत्थर और खांचे से उसका पुराना रिक्शा और ज्यादा शोर करके चलते चलते हिल रहा था! उस समय, रिक्शा चालक देखता है, कि एक छोटी लड़की सड़क पर खड़ी होकर रिक्शा का इंतजार कर रही है, अपने उम्रसे थके हुए पिता को साथ लेके अपना प्यारा "गुड्डा" जोकी उसके पिता ने लाड प्यार से उसके लिये खिलौना "गुड्डा" लाया था, उसे साथ लिये,  रास्ते पे खडी है । जिसे याने उस गुड्डे खिलौने को उसके पिता ने स्वेच्छा से बडे प्यार से उसके लिये खरीदा था। उस लड़की ने गुड्डे खिलौने को अपने गोदी मे लिये खडी थी | उन दोनो के सामने रिक्शा रुकता है, तो लड़की कहती है रिक्षेवालेसे, "रिक्शावाले चाचा, अस्पताल जाने के लिये कितना रुपया किराया होगा ? रिक्शा वाला कहता है 50 रुपये। लड़की के हथेली के मुठ्ठी मे बंद पसीने से तर पैसे को मुट्ठी खोल के गिनती है । और चेहरे पर सवालिया भाव लाती है, (शायद उसके पास पर्याप्त पैसे न हो) और फिर यह देख, रिक्शावाला लड़की से कहता है, बेटा तुम्हारे पास कितने पैसे हैं? उसी मे हम चलेंगे ! " रिक्शा वाले को लगता है, कि वह अस्पताल जाकर उसी जगह वापस आना चाहती है, इसलिए वह रिक्शावाला लड़कीसे कहता है, "बेटा ! अच्छा रहने दो!" बस मुझे 10 रुपये दे दो, मैं तुम्हें अस्पताल छोड़ दूंगा! बेठो मेरे रिक्षामे! 

रिक्षावाला उन दोनो बाप बेटीको अस्पताल मे जाने के लिये रिक्षामे बिठाता है ! लड़की और उसके पिता दोनों रिक्शा में बैठते हैं, और थोडीही देर में उन दोनो बाप बेटी को अस्पताल छोड देता है । रिक्शा वाला वहीं अस्पताल के सामने बैठता है, क्योंकि रिक्षावाला सोचता है की इस बेटी को मेरी तरह सोचने वाला रिक्षावाला नहीं मिला तो? ये बेटी क्या करेगी ? उसके पास पर्याप्त पैसे भी नही है । इसलिये वो रिक्षावाला  वह अस्पताल के बाहर अस्पताल की सीढ़ियों पर बैठ जाता है! बेटीको हॉस्पिटल का काम था, डॉक्टर को बाबा की तबीयत के बारे में दिखाना था, दवाई की दुकान से दवाई की गोलियां लेके अस्पताल का काम खत्म करके , लड़की अस्पताल के बाहर घर जाने के लीये अपने बाबा को लेके आई तब , वही रिक्शा वाला अपनेआप लड़की के पास आता है, और कहता है! " बैठो बेटा रिक्शा में, मैं तुम्हें तुम्हारी जगह पर  छोड़ देता हूँ!"  लड़की खुशी-खुशी अपने पिता को लेके उसी रिक्षामे बैठ जाती है ! और योजना के अनुसार अपने निवास पर उतर जाती है। लड़की किराए के आने जाने के 10 रुपये के हिसाबसे  20 रुपये देती है! वह रिक्शा वाला वही 20 रुपयों की नोट ।" उसके पसीने से लथपथ माथे पर लगा कर प्रणाम करके। वही पास में खडे दूर से मारुति मंदीर को 20 रुपये माथे को लगाकर प्रणाम करता है। और उसे अपनी जेब में रख लेता है! और वह जाने के लिए फिर से पैडल मारने वाला होता है, तभी लड़की रिक्शा चालक के पास दौडी चली आती है, और कहती है "रिक्शा वाले चाचा ! रिक्षावाले चाचा ! रुक जाओ!" रिक्षावाला रुक जाता है ,लड़की उस रिक्षेवाले के पास आती है और कहती है, चाचा! तुमने कहा था, पहले रिक्शे का किराया 50 रुपये, वो भी जानेका ! और वापसी का किराया 50 रूपये और 50 और 50 रुपये= 100 रुपये, होते है ! तो फिर इतने कम पैसो में महज एक 20 रुपयो के नोट मे कैसे हमे ले गये ? और ले आए? उसका सवाल सुनके वह रिक्शेवाला कहता है, बेटा ! तुम्हारी जैसे ही मेरे घर में गुडीया रानी "गुड्डी" है, बेटा तुम्हारे पास ज्यादा पैसा नही था ! तुम्हारे पास  बस 30 रुपये ही थे ।, लड़की कहती है,  लेकिन चाचा आपका तो बहूत बडा नुकसान हुआ है ! रीक्षेवाला कहता है," बेटा कोई बात नही फिर कभी कमा लुंगा !" लड़की कहती है," चाचाजी ! मेरे पास यह मेरा प्यारा "गुड्डा" है, मैंने इसे कभी अपने से अलग नहीं किया, यह हमेशा मेरे साथ है, मेरे पिताजी इसे बडे प्यार से मेरे लिये लाए थे! इसे देख मैं भी बहूत खुश हुयी थी! तुम इसे रख लो, तुम चाहो, तो इसे मेरी स्मृति के रूप में रख लो! वह रिक्शावाला उस गुड्डे को देखता है, उसे अपने हाथ में लेता है, रिक्शा वाले को धीरे-धीरे याद आता है कि उसके गुड्डी ने क्या कहा था !

 "रिक्शा वाला अपनी गुड्डी के बारे मे सोचने लगता है! रिक्षेवाला अपने ही मनमे सोचते, मनसेही बात करने लगता है की, गुड्डीने कहा  था !" पिताजी! जब आप बाहर जाते हैं या रिक्शा मे सवारीले जाते हैं, तो मैं घर पर अकेली होती हूं, मुझे डर लगता है, आप जल्दी घर आ जाते हैं, तो बहूत अच्छा लगता है, मेरा पूरा डर भाग जाता है। रिक्शा वाला खुद से कहता है एक बार गुड्डीने खिलौने वाली कार लेने के लिये कहा था,  तब भी उसके पास पर्याप्त पैसे नहीं थे। तब भी वो निराश ही था ! एक बार तो गुड्डीने मेले में लगे आकाश मे झुलने वाले पालने मे बैठने की बात की थी । और जिद्द भी की थी। लेकीन उस समय भी पर्याप्त पैसे नही होने के कारन उसकी मांग पुरी न कर सका, ऐसेही सोचते सोचते - जब रिक्शा चालक खुद से कहता है "अरे हाँ! एक बार गुड्डी ने गुड्डे खिलौने की मांग की थी, गुड्डा चाहती थी, और उस समय भी उसके पास पर्याप्त पैसे नहीं थे, इसलिए बेचारी गुड्डी को पीटा गया था, उसे ये "गुड्डा" पसंद आएगा! इसलीये   वह गुड्डा को रिक्शा चालक  ले जाता है, और घर आ जाता है, लेकिन मन ही मन वह सोचता है, कि वह गुड्डा तो छोटे लड़की का है क्यों ? और किसलिये मैने लाया ये गुड्डा ? उसका बेचारी का दिल टूट गया होगा । वो रिक्षावाला सोचता है, यह गुड्डा उस लड़की को लौटा देना चाहिए, घर पर अपने बच्ची (गुड्डी) को दिखाए बिना जेब में रख कर सो जाता है! जब सुबह रिक्शा चालक काम पर जाने की हड़बड़ी में उठकर  दीवार की कील से टंगी हुई पँट की जेब में गुड़िया को ढूंढता है, तो उसे वहाँ गुड़िया कहीं दिखाई नहीं देती! 

रिक्शावाला बेचैन हो जाता है, क्योंकि रिक्षेवाला वो गुड्डा जिसका है उसे लौटाना चाहता था , बहुत ढूँढ़ता है, पर कहीं नज़र नहीं आता! तो निराश हो कर  हमेशा की तरह जब सोते हुये अपने प्यारी गुडीयारानी "गुड्डी" के गाल को छूने जाता है, तब गुड्डी उसके बाबा के गले से कस कर लिपट जाती है, और कहती है "पिताजी! आप कितने अच्छे हैं! आप तो याद रखके मेरे लिए प्यारा सा गुड्डा ले आए!" अब, मैं कभी नहीं डरूंगी! वह रिक्शा वाला अपने गुड्डीसे कहता है, बेटा, "गुड्डी वो गुड्डा अपना न " - इतना कहते ही गुड्डी कहती है हाँ, पापा! हमारा अपना हां हां अपना! तो गुड्डी खुशी से "मेरा प्यारा गुड्डू"! "प्यारा मेरा गुड्डू"! ऐसा कहकर गुड्डी अपने छाती से कस कर लगाती है ! और वह बाबा से कहती है, "बाबा, आप मुझे अभी आकाश पालने मे बैठने के लिये नही ले जाते है, तो भी चलेगा !,! हां!" तुम मेरे लिए मेरा पसंदीदा खिलौना जो ले आए हो! पापा आप बडे अच्छे हो, ! मेरे अच्छे पापा !" ऐसा कहकर तभी गुड्डी उस खिल्लौने गुड्डे के मुँह का चुंबन लेने लगी ! वो रिक्षेवाला पापा खड़े-खड़े उस गुड्डी  को एकटक निगाहों से देख रहा था! रिक्शावाले ने उस के गुड्डी का चेहरा कभी इतना खुश नहीं देखा था ।  जब उसकी माँ भगवान के पास चली गई थी! उस दिन से गुड्डी चुप सी हो गयी थी ! वो रिक्शे वाला इसी खुशी को देखने के लिए ही जी तोड़ मेहनत कर रहा था ! वो रिक्शेवाला जो की उस गुड्डी का पिता था उसने  अपनी गुड्डी की ओर खुशी के आँसुओं से देखा, उसकी आँखों मे आसूं आ गये । और उसने मन ही मन कहा, “कल उस रास्ते पर ठहरे हुये उस बेटी से मुझे 20 रुपये ही नहीं मिले थे, बल्कि उसने मुझे 100 रुपये दिये थे। अपने स्वयं के जीवन की कीमती पुंजी, उसका प्यारा गुड्डा रुपये के रुप मे 100 रुपयों से ज्यादा" 100 फीसदी रुपये का भुगतान किया है मुझे। कल रास्ते में अपने पापा के पास खडी गुड्डा हाथ लिये वो बेटी बहूत ही रईस थी ! उस गुड्डे की कीमत उस रिक्षेवाले को बहूत बडी लगी। क्यो की उस रिक्षेवाले को अपनी प्यारी गुड्डी की खुशी की हसी जो मिलि थी! गुड्डी के चहरे की खुशी की दौलत को रिक्शावाला प्यार से निहारता रहा! और वैसे ही, पिता को और क्या चाहीये ? है ना ?

- डॉ. मिलिंद इंदूरकर ‘मनवा’
   नागपुर (महाराष्ट्र)
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