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भारत की संस्कृती


आज के दौर में टी. वी. और मोबाइल के विना किसीका दिन पूरा नहीं होता। लेकिन हर परिस्थीतीमें दो पहलु होते हैं। कुछ पहल् अच्छे होते हैं। तो कुछ उसके विपरीत हात है। टी. वी. की अच्छाई और बुराईयां, वैसे ही मोबाईल जितना काम का हैं। उतनी बुराई भी उसमें हैं। हमे उसी बुराई पर विजय पाना हैं। बुरी चिज़ों को निकाल कर बाहर करना

सुबह साढ़े पांच का वक्त था। पक्षियों की किलबील की आवाज सृखे पतों की सरसराहट, पवन पेडों के पतों को सहलाकर आगे बढ़ रहा था। जैसे हारमोनियम बजा रहा हो, ऐसे प्रतित हो रहा था। निसरग शारदा देवी को गाने की लिए मजबूर कर रहा हो, ऐसे खुशमिजाज माहोल में एक आवाज गुंजती हैं। बच्चों उठ जावो स्कुल के लिए तैयार होना हैं। मधू अपनी मिठी आवाज से घर के लोगों को जगाती थी। मधू के घर में उसके तीन बच्चे ममता, राजीव ओर रोहन, पति महेश और माँ समान सत्तर साल की सास थी खुशाल परिवार सुख समृद्धी से भरा हुआ उस घर में किसी चीज की कमी नहीं थी। क्योंकी उस परिवार में मधू थी। सुबह ईश्वर के भजन से घर का वातावरण शुद्ध हो जाता था। मधू के नियम थे पढ़ाई के वक्त सिर्फ पढ़ाई खेलने के वक्त कोई दुसरा काम नहीं। चाहे धूप हो सर्दी हो या बारीश हो, मधू बच्चों को खेलने के लिए मना नहीं करती थी। मधू का मानना था बच्चों के शरीर को सब मौसम की आदत होनी चाहिये। इसी कारण मधू के बच्चे निरोगी थे। कभी कभार मामूली सा जुकाम हो जाता था। खेलने के बाद शाम को बच्चे जैसे घर में आते थे। हाथ पैर धोकर पढ़ाई करने बैठ जाते थे। मधु ने टी. व्ही. देखने निर्देशीत किया था। 

जब पढ़ाई खत्म होने के बाद हाथ धोकर का वक्त खाना खाने बेठते तब टिक्ही में डिसकव्हरी चॅनल या कोई ऐतीहासीक सिरीयल जैसे रानी लक्ष्मीबाई, पेशवा बाजीराव, या सम्राट अशोक जैसे कार्यक्रम एक घंटे के मनोरेंजन के वक्त देखे जाते थे। उसके बाद रात दस बजे तक सब सो जाते थे। मधू के घर दो मोबाईल थे। एक मधु के पति के पास और एक मधू के पास, मोबाईल के बारे में मधुने बच्चोंको समझााया था की माबाईल बहुत काम की चिज हैं। मोबाईल से में सुबह अलार्म लगाकर उठती हूँ किसी का फान करना हैं तो नंबर ढुंढने की जरूरत नहीं पड़ती उसमें नंबर डाल कर रख सकते हैं दुसरा भाषा सव करना, हमे कहीं जाना हैं और यदि हमे रास्तो का पता नहीं हो तो हम GPRS एक्टॉव करके इसका पता लगा सकते हैं। अगर हमारे साथ कोई दृर्घटना हो जाए तो हम एम्बुलंस बुला सकते हैं। या पुलीस को फोन कर कर बता सकतेहैं। आप लोगों को कभी कभी नई चिजे बनाकर खिलाती हूँ। वह सब मोबाईल में देखकर करती हैं। कोई अपना कितने भी दूर रहें। परदेश में भी रहे फिर भी उनसे मोबाईल से बात करके जुड़े रह सकते हैं। कोई घर में अकेला हैं तो मोबाईल उसका सच्चा साथी बना रहता हैं। मोबाईल से उसे अकेलापन महसूस नहीं होता। अकेला इन्सान मोबाईल से अपने मन पसंद गाने सुनना मन पसंद पिक्चर देख सकता हैं। किसी के पास टिक्ही नहीं हैं। तो वह इन्सान मोबाईल से अपना पूरा मनोरंजन अपने टाईम में कर सकता हैं। टाईम की कोई पाबंदी नहीं हैं। अपने सेहत के लिए जानकारी चाहिये या अपने पेड पांधो की जानकारी हमे हमारे मोबाईल से मिलती हैं। हम अपने फोटो खींच सकते हैं। विडिओ के जरीये अपनी सारी इच्छाये पूरी कर सकते हैं। 

पिछे मैने तुम्हारे लिए स्वेटर बुने उसकी डिझाईन भी मोबाईल से ही लि थी मेंने, याने हमारे जीवन में मोबाईल की एक अहंम भूमिका हैं। आजकल अमीर हो या गरीब सभी मोबाईल फोन से जुड़े हं। बच्चों में आप लोगों को किसी जानकारी से वंचीत नहीं रखना चाहती, ता्की किसी के सामने आपको शर्मन्दगी या किसी तरहेका खाली पन महसूस ना हो, मेरे बच्चों को आज के दौर की सारी जानकारी होनी चाहिए किसीने मोबाईल के बारे में पूछा तो अपको जानकारी होनी चाहीए। लकेन बच्चीं मोबाईल बच्चों के लिए बिल्कुल अच्छा नहीं हैं बड़ों के लिए भी मोबाईल का ज्यादा इस्तेमाल ठीक नहीं होता। मोबाईल का साथ जितना अच्छा होता हैं। उतने ही मोबाईल के दुष्यपरिणाम भी होते हैं। इससे निकलनेवाली रेडिएशन से स्वास्थ्य खराब हो सकता हैं। इसके अधिक उपयोग से इसकी जो किरणे निकलती हैं उससे कान खराब हो सकते हैं। क्योंकी हम कान में लगाकर सुनते हैं। हमारे कान की नसोंसे ब्रेन की नसे जुड़ी होती हैं। इसलिए ब्रेन ट्यृमर या कैन्सर जैसी भयानक बिमारी हो सकती हैं। बच्चे नाजूक होते हैं। इसलिए बच्चों के शरीर पर जल्दी असर होता है। एक बात बताना भूल गई, अगर गाड़ी चलाते वक्त मोबाइल से बाते करते रहेंगे तो रासेपर से ध्यान अट जायेगा और दुर्घटना हो सकती हैं। बच्चे पढ़ाई करने के टाईम फोन से चैटीग करने और गाना सुनने में समय बर्बाद करते हैं। बच्चों का ध्यान पढ़ाई से हट जाता हैं। कभी हाथ से मोबाईल गिर कर टूट जाये तो पैसो का नुकसान तो होता ही हैं। अकिन मोबाईल में रखी सारी जानकारी नष्ट हो जाती हैं। वैसे ही टिव्ही का हैं। ज्यादा टिव्ही देखने से आँखे खराब होती हैं। छोटे बच्चे कार्टून देखते है। उन्ही की भाषा बोलते हैं। टिव्ही ज्यादा देखने से हमारा ध्यान कहीं और लगता नहीं जैसे चान्स मिला मम्मी इधर उधर गई की टिव्ही लगाकर बैठ जाते हैं बच्चे, बाहेर खेलने तक का मन होता नहीं उनका, बडों को व्यायाम करना चाहीये और बच्चों को मगेम खेलने चाहिये इससे अपनी हेल्थ अच्छी रहती हैं। टिव्ही में जो सिरीयल आप खाना खाने के वक्त देखते हो उनका टिव्ही में एक टाईम होता हैं। लेकिन मे आपका टाईम बेकार ना हो मनोरेंजन भी आपको चाहिये, इसलिए में जो सिरीयल आपको दिखाती हूँ । वह सब में रेकार्ड करके आपको दिखाती हैँ । 

बच्चों मै हर छट्टी के दिन आपको इस तरह की जानकारी आपके खाली वक्त में बताती हूँ इस जानकारी से आप लोग वंचित ना रहे। आपको दुसरों से पता ना चले आपके घरसे ही आप को सब सिखने के लिए मिले, में आपको यह जानकारी न बताऊँ और बाहर से आपको पता चले तो आपको लगेगा हमारे पैरैंटसू हमे कुछ नहीं बताते पढ़ाई के साथ साथ दुनीया में क्या हो रहा। उसकी जानकारी होना बहुत जरुरी हैं। अगर बच्चों आपके दिमाग में कुछ और चल रहा हैं। या कुछ प्रश्न उठ रहे हैं तो मुझे जरुर पूछो, पूछ्ने के लिए हिचकीचाना नहीं, मम्मी से कोई बात छुपाना नहीं मम्मी के पास हर प्रश्न का जबाब होता हैं। जो भी में करती हूँ आपके अच्छे के लिए करती हूँ । ताकी आप बड़े होकर स्वस्थ निरोगी होशियार रहो। जिम्मेदारी सम्भालने के बाद या बड़े होने के बाद मेरी कही हुई बात याद रखेंगे या उस रास्ते पर चलेंगे तो आपका जीवन खुशी से भरा होगा। आगे आपकी मर्जी, में ममता को कुछ और बताना चाहुंगी, ममता तुम चौदा साल की हो गई हों तुम्हारी सहेलीयों के बीच अपने स्किन के लिए क्या करना चाहिए ताकी हम गोरे हो और ज्यादा सुंदर हो जाए तो बेटा किसी कंपनी के प्रॉडक्ट से साबुन या क्रिम लगाकर सुंदर नहीं बनते तो असली सुंदरता हमे जो खुशी मिलती हैं । वह हमारे चेहरेपर आती हैं। तो हमारा चेहरा सुंदर दिखने लगता हैं। झुकना हैं तो दुसरों के सामने नहीं लटके अपने लिए झुको यानी व्यायाम करने के लिए झुको, खुली हवा की सेर से कंडीशनक और कोई नहीं। खुल कर जियों, कुछ अच्छा नया नया सीखनें की कोशीश करो, किसी जेवर से खुब सुरती नहीं हैं। तो तुम्हारे हुनर से हैं, कभा दुसरों की मुस्कराहट में अपनी खुशी ढुंढो, खुबस्रती जिस्म में नही रूह में होती हैं। ममता मेरे पास जो था बेटा मैने तुम्हे समझा दिया। अब मुझे पुरा विश्वास हैं, मैने जो आप तीनों को समझाया वह समझ में आया होगा और आगे किसी के भी प्रश्न का जवाब आप अच्छे से दे सकते हैं। इस जानकारी से किसीके बहकावे में नहीं आयेंगे, इस सन डे को मैने ज्यादा टी. बा देखने से औँखे खराब हो सकती हैं। सु्लती आपको टीव्ही और मोबाईलकी जानकारी दि अगले छुट्टी में और कुछ बतावूंगी अभी अप खेलने जावो, खुलकर खेलो और मधू अपने काम में लग गई, मधू अपने पति को अपनी सासू माँ को भी अपना बराबर का साथ देती थी। कभी किसीको शिकायत का मौका नहीं दिया।

मधू अपने पति महेश के साथ व्हरांडे में बैठी थी। तभी मधू ने अपने घर के सामने किसी का सामान आते हुए देखा, सामान के ट्रक के पिछे एक बड़ी कार थी उस कार से एक फैमीली उतरी, कुल छ:ह लोग थे और एक छोटासा गोदी में था।
दुसरे दिन मधू उनसे मिलने गई, आप इस एरीया के लिए नये हो, आप को किसी भी चीज की जरूरत हो तो बताइयेगा। फिर मधू सबसे मिली, पति पत्नी सास, संसूर, एक ननंद, एक बारा साल की उसकी बेटी और डेढ़ साल का छोटा बेटा था रजनी को, बहुत साल के बाद हुआ था इसलिए बहुत लाडला था। सबसे बचाके रखते थे। जब रजनी और रमन सेटल हो गये। ननंद सेकंड इअर में थी और बेटी सिक्स क्लास में पढ़ती थी। जब रजनी और मधु किसी काम से बाहर निकलती थी तो बाते कर लेती थी। रजनी ने मधु को घर के अन्दर आनेके लिए कहाँ, मधु अन्दर गई तो मधू को रूम में यानी रजनी के बेडरूम में घुटनसौ होलने लगी, मधु ने कहा हम लोग क्रांडे में बेठते हैं रजनी और मधू बाते करने लगे तो मधू ने पुछा आपके बेडरूम मे इतना अंधिरा पूरी खिडकीयों बंद, खिडकीयों के परदे पूरे ढके हुए, तब रजनी ने बताया हमे हमारा बेटा बेटी के दस साल बाद हुआ हमने आशा ही छोड़ दी थी। हमे इतने साल बाद दुसरा बच्चा होगा। ज्किन हमारा बच्चा बिमार ही ज्यादा रहता हैं। इसलिए घर के सब लोगो ने बोला इसे बाहर की हवासे सूरज की किरणा से बचा ओ, पूरे वक्त दवाई लेती हूँ। ताकी वह ठीक हो जाये, मेरे दिल में डर सा बैठा हुआ हैं। उसे लेकर, दस साल बाद हमारे घर आनंद ही आनंद हआ इसलिए उसका नाम हमने आनंद रखा है। बेटी के वक्त मन ख़ुश हुआ तो उसका नाम खुशी रखा।

यह सब सुनने के बाद मधूने रजनी से कहाँ अगर तुम मुझे अपनी सहेली समझती हो या मुझपर विश्वास करती हैं तो मैं जो बतावूंगी वह सिर्फ एक हप्ता ही करके देखना, रजनी तो पहले सोच विचार में ड़ब गई, रजनी को लगा मधू पता नहीं क्या कहनेवाली हैं। पांच मिनट सोचने के बाद रजनी तेयार हो गई मधु की बात सुनने के लिए।
मधू रजनी को उनके बेडरूम में ले गई और परदे खिसकाकर खिडकीया खोलने लगाई, की फ्रेस नॅचरल हवा और सूरज की किरणे कमरे में आने दो अपने बेटे को खुली हवा में निकालो बाहर खेलने दो, जो वह अपने हाथ से खाना चाहे खाने दो सिर्फ एक हप्ते तक यह सब करो, एक हप्ते बाद हम मिलते हैं। फिर बात करेंगे, अगर तुम्हारा बेटा ठीक हुआ तो इसे प करना, नहीं तो जैसे तुम लोग चाहते थे वैसे ही बेटो को रखनाः जब हम परेशान होते हैं तो जोभी कोई करने के लिए कहता हैं। तुरंत करने के लिए राजी हो जाते हैं। रजनी ने अपने पति को समझआाया पति ने अपने माँ बाप को समझाया इसमें कुछ बुराई तो नहीं हैं। सब कुछ नॅँचरल भगवान का दिया हुआ हैं। रजनी को दो दिन में ही चमत्कार नजर आया आनंद के चेहरे पर तेज आ गया। मुझाया हुआ चेहरा खिलने लगा, धिरे धिरे आनंद की सेहत ठीीक होने लगी आनंद ने बाहर खेलना भी शूरू किया, आनंद की दादी पुराने ख्यालात की थी। दादा ने मधू के बच्चों को सेहतमंद देखा था। इसलिए मधू ने बताने के बाद उन्होंने ज्यादा कुछ बोला नहीं। अगर मधू के बच्चे नहीं होते तो, दादी मधू को अपने घर आने भी नहीं देती उनके पोते के पास आना या कुछ सलाह देना तो दूर की बात थी। नॅचरल हवा नॅँचरल उजाला घर के लिए चत्मकार का काम करता हैं, जिनके घर यह संब सोच विचार होते हैं। उनके घरमें बिमारीयाँ कोसो दूर रहती हैं। निसर्ग के साथ घरकी सफाई भी जरुरी होती हैं। जैसे पूराने जमाने में हमारे पूर्वज ऑँगन में सुबह सबसे पहले झाड़ू लगाकर पानी का छिडकाव करके अपने ऑगन में रंगोली डालते थे। यह काम डेली सुबह चाय पिने से पहेले होता था। वह लोग बोलते थे गृहीणी के आंगण से उसके घर के अन्दर का पता चलता था की अन्दर कितनीसाफ सफाई होगी या घर के लोग कितने साफ विचार के हॉंगे वर्गेरे, कहछ परानी बातां के ऊपर अमल कियां जाता रहा, काफी बाते हमारी समझ में आती नहीं चेकिन हम पुरानी चीजें पसंद जरूर करत है। जस गहनों की पुरानी डिसाईन नये लोगोंको परसंद आने लगी हैं। 

राजस्थान का घागरा चालों बहुत पसंद करते हैं। भारत की संस्कृती में नारी श्रंगार के ऊपर बहत कविताये लिखी गयी है। जतना नारी का शरीर ढका रहेगा उतनी नारी संदर दिखती हैं। कभी तुलना करनी हैं तो दो अलग नारीयों की तस्वीर बनाये एक को पुरे श्रंगार के साथ जैसे गले में पहनना हाथ में चूडायां बहूत सारी माथे पे बिन्दी, मांगटिका कान में बड़े बड़े झमके साड़ी ब्लावूज यह सब दिखाकर नारा को कनवास में उतारों और दुसरी को ना गले में, ना हाथ में ना बिन्दी दोनों तस्वीरे कोई भी देखें तो पहली तस्वीर की तारीफ ही करेंगे बस थोडी सी अपनी संस्कृ्ती की बाते समझा रही थी। चेकिन सबकी अपनी अपनी मर्जी होती हैं।

मैं रजनी के घर की बाते कर रही थी। राजनी के घर का वातावरण मधू के घर से काफी अलग था। मधू के बच्चे स्कृल से आने के बाद स्कृल ड्रेस बदला कर, हात मुँह धाकर कुछ खालेते थे और अपना होम वर्क करने बेठउते थे। रजनी के घर में उसके विपरित था। स्कुल से आते बराबर रजनी की बटी टिवी लगाकर बैठ जाती थी ना कपड़े चेंज ना फ्रेंस होंना, जब रजनी चिल्लाती थी तब कुछ देर के बाद रजनी की बेटी खुशी धीरे से उठती थी रजनी की ननंद हरदम मोबाईल पे लगी रहती थी सास को घर घर की नुक्स निकालते निकालते फुर्सद ही नहीं मिलती, काफी लोगों को आदत होती हैं अपने घर में झांककर नहीं देखने पर दुसरों के घर में जरूर झाकेंगे खुदकी बेटी क्या कर रही हैं। उसकी तरफ ध्यान ही नहीं। रजनी जब काम करती थी और बेटी जब छोटी थी तब टिवी में कार्टुन लगाकर बिठा देती थी इसलिए खशी को टिक्षी का इतना शोक लग गया की जब भी टाइम मिलता टिव्हां लगाकर बेंठ जाना, कभी बेटे आनंद को भी वही आदत लगाई।

रज़नी के ननंद के पास मोबाईल था वह पढने भी बैठती थी तो मोबाईल हाथ में रहता था। रजनी की ननंद सुप्रिया उस. माबाइल का बहुत शोक था। हरदम हाथ में सुप्रिया के मोबाईल ही रहता था। सूप्रिया की स्कुटी खुराब हुई थो तो वह बससे ट्रवेल कर रही थी। लो उसके बँग में से किसीने मोबाइल निकाल लिया सुप्रया अपन भाई के पिपछे लगी दूसरा मोबा्ईल खरीद कर देने के लिए, उसकी माँ भी बेटे को बोलने लगी तेरी एकही तो बहेन हैं। उसने जानबुझकर मोबाईल गुम नहीं किया। फिर भाईने बहेन को दुसरा मोबाईइल खरीदकर दिया। दुसरी बार स्कुटी की किसी वाहन से टक्कर हो गई तो मोबाईल हाथ में था सुप्रिया के तो निचे गिर गया अर ट्ट गया। फिरसे नया मोबाईल चाहीये, जैसे पैसे की कोई कींमत ही नहीं दुकानदार जैसे मुफ्त में सब कुछ देता हैं। बच्चों को पेसे की कीमत सिखाओ पैसा चलकर पास नहीं आता बहुत मेहनत करने से मिलता हैं। बच्चों को बार बार समझाना पडता है एक बार समझाने से उनकी समझ में नही आता सुप्रिया दो बार स्कूटी से गिरते गिरते बची क्यों की स्कुटी चलाते वक्त मोबाईल से बोलते रहती थी सूप्रिया कॉलेज से घर आ रही थी पास ही पहुँच गई थी तभी एक बड़ासा गहरा गढ़ढ़ा सामने आ गया सुप्रिया का ध्यान पूरा मोबाईल पर था उसे गढूढा नहीं दिखा और स्कूटी सहीत गढूढे में गिर गई। अॅक्सीडेंट इतना जोरदार था की सुप्रिया वही बहोश हो गई यह सब घर के पास हुआ इसलिए उनके पडोसीने उसे पहचानकर घर में आकर बताया घर के लोग तुरंत वहाँपर गये और सुप्रिया को नजदीक के हॉस्पीटल लेकर गये चेकिन सुप्रिया बेहोशी की वजह से कोमा में गई एक हप्ते तक वेट किया ठीक होने का पर सुप्रिया ठीक नहीं हुई उसकी मौत हो गई, उसकी मौत से पूरे एरीया में, उसके घर में उदासीका माहौल छा गया, सब अपने अपने बच्चों को समझाने की कोशीश कर रहे थे चेकिन बच्चे कुछ दिनों में भूल जाते हैं और वही गलत काम दसरा करते हैं। क्योंकी बचपन से करते आये हैं। यह आदत तो बच्चों को बड़ो ने ही लगाई हैं। इतने जलदी तो बदल नही सकती आदते। 

रजनी को अपनी बेटी का डर शुरु हुआ। क्योंकी बुआ को देखकर बेटी वैसे ही करने लगी थी। रजनी का ससूर बहुत सिथा साधा था वह अपने पत्नी को बोलते रहते थे की बेटी के तरफ ध्यान दे चेकिन रजनी के सास को फालतु बातों से वक्त ही नहीं मिलता था। सुप्रिया के मौत ने रजनी के ससूर को हिलाकर रख दिया उनके दिल पर गहरा असर हुआ और बेटी के जानेके चार महिने बाद वह भी चल बसे, रजनी की सास उस घर को और उस जगह को जिम्मेदार उहराने लगी चैकिन उनकी बेटीकी गलती उनके ध्यान में नहीं आयी आखरी तक।
इधर मधू की बेटी भी सुप्रिया को देख कर बिगडने लगी थी मथू को उसे समझाना मुश्कील हो रहा था। 

सुप्रिया की मौत से मोबाईल की ब्राई मधू ने ममता को समझाई, अब तो ममता समझ गई मध का बड़ा बेटा रजनी की बेटी के बराबर का था वह उसके साथ खेलता था वह ज्यादा टीव्ही देखती थी। तो उसके दिल में भी यह बात आई थी की हमारी मम्मा तो हमें ज्यादा टिव्ही देखने ही नही देती बोलते हैं ना अच्छे के साथ से अच्छा सिखने को मिलता है और बुरी संगत से हम विगड़ते हैं। मधुका तिसरा बेटा यानी तीन नंबर बच्चा क्योंकी पहिलो बेटी ममता थी बाद में राजीव और रोहन, रोहन आठ साल का था। वह भी रजनी के बेटे के साथ खेल लेता था। कभी कभी उनके घर भी चला जाता था। जब भी मधू के बच्चे रजनी के घर के अन्दर जाते थे तो रजनी के घर टिव्ही लगा ही रहता था। मधु के बच्चे भी टिव्ही देखने बैंठ जाते थे। यानी मधू ने जो अपने बच्चों को आदते लगाई थी वह धिरे धिरे गुम होते जा रही थों। मधू बहुत चिता में थी। एक दिन इतवार को मधू हर छुट्टी के दिन कुछ नई नई जानकारी याँ देती थो। आज वह जब शूरू हुई तब मधूकी आँखो में हलकासा पाणी आ गया था, उसने शूरू किया।

देखो बच्चों दुनियादारी समझाना चाहती हूँ । आज के दौर में हर जगह बहुत कॉम्पीटिशन हैं। हम लोग साधारण परिवार से हैं। देखो बेटा हमारा जो होना था हो गया। जब बनना था बन गये। हम जो आप लोगों को समझाते हैं । वह सब आपके भले के लिए होता हैं। अगर आप लोग अभी पढ़ाई पर ध्यान दोंगे तो आगे आपके लिए अच्छा हैं। एक वार हाथ से वक्त निकल गया तो दुबारा वापस नहीं आता। वक्त किसीका इंतजार नहीं करता, हमे वक्त को पकड़कर अपने में ढालना पडता हैं। हमने वक्त की बरबादी की तो हमारी बर्बादी हैं। आजकल बिना पोझीशन के इज्जत नहीं मिलती। इज्जत के लिए पोझीशन और पैसा चाहीये। पैसे की किमत समझों, बिना पेसे के कुछ नहीं मिलता, पोझीशन एजूकेशन से हैं । एजूकेशन से डिप्रीया, डिग्रीया जितनी ज्यादा उतनी पोझीशन पोस्ट बड़ी, बडी पोस्ट में पैसा ज्यादा आप देखते हो आपके पापा दिन रात मेहनत करते हैं। तब जाकर अपने परिवार को अच्छा जीवन दे सकते हैं। आजकल महंगाई इतनी ज्यादा है की पैसा पूरा होता ही नहीं। आपके पापा में अपने सब खर्च अपनी जरुरते कम कर दी। आपके पापा आपको अच्छा जीवन देने में लगे रहते हैं। से उन्हें लगता हैं मेरे बच्चे बहुत आगे जाये; मुझझे चार गुणा पैसा कमाये, माँ बाप की यही इच्छा होती हैं। हमारे बच्चों को सब कुछ मिले। हमे दुसरों को देखकर जीवन नहीं जिना, हमे अपनीघर की परिस्थीती देखकर खुदको उसमें ढालना हैं। में आपके पापा के साथ हर वक्त खड़ी रहती हूँ। उन्हें घर की परेशानी से दूर रखती हैं । सही समझाना चाहती हूँ, पापा का साथ दो उनकी परेशानी कम करो तभी हमारे घर में सुख शांती का वातावरण हरदम रहेगा।

रजनी की सास पुराने विचार की थी। इसलिए वह जगा अच्छी नहीं हैं हमे घर छोडकर दुसरी जगह जाना चाहिये और कुछ दिनों बाद वह लोग नई जगह रहने गये। चेकिन रजनी जो मधू से सिख कर गई थी निसर्ग के साथ चलना, ताजी हवा में सांस लेना सूरज देवता को घर में आने देना, उनके किरणों की सुनहरी चादर अपने कमरों में फैलाना यह सब करते वक्त रजनी को मधू की याद बहत आती थी। कभी कभी रजनी मधु से मिलने चली जाती थी। मधू के विचारों से रजनी का जिवन भी सुधर गया। वह भी अपने पति के कदमों से कदम मिलाकर चलना बच्चों को पैसे की किंमत सिखाना रजनी ने भी मधू का रास्ता अपनाया, हर गृहीणीने मधू जैसे बनकर अपने बच्चों को आगे बढ़ावो, आगे मधू की बेटी डॉक्टर बनी और समाजकी सेवामं लग गई। बड़ा बेटा आर्मी में बड़ा ऑफीसर बनकर देश की सेवा में लग गया और छोटा बेटा इंजीनियर बनकर अपनी कंपनी खोली और बेरोजगारों को उनके परिवारों को रोजी रोटी देने का जिम्मा उठाया। एक दिन तीनों बच्चे मधू की तस्वीर को फूलमाला चढ़ाकर अपने माँ को उनके दिये हुओ संस्कार की श्रद्धांजली समंपित की, मम्मा आपकी वजहसे हम इतने आगे बढ़े, आपके संस्कार हम कभी नहीं भूलेंगे।
     

- मालती माणिक

   लखनऊ, उत्तर प्रदेश
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