नारी
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तू शारदा, तू ही लक्ष्मी
तू विंधवासिनी, तू सिंहासिनी
तू जननी शूरवीर की
तू ही प्राणदायत्री,
युग बदले, सदियां गुजरी
साल बीते,
नहीं बदली रीत पुरानी
क्यों सीता ही दे अग्नि परीक्षा,
क्यों यशोधरा ही तड़पे विरह में,
क्या कमी थी राधा के प्रेम में,
क्यों विष को गले लगाया मीरा ने।
संसार को जन्म देती है जो
उसका ही दोहन क्यों करे,
ममता की मूरत है
वह रोदन आज क्यों करे?
- डॉ. तौकीर फातमा
कटनी (मध्य प्रदेश)