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महिला सशक्तिकरण: नारी मुक्ति आंदोलन


नारी का सशक्तिकरण एक सर्वांगीण व बहु आयामी दृष्टिकोण है। यह राष्ट्र निर्माण की मुख्य धारा में महिलाओं की पर्याप्त व सक्रिय भागीदारी में विश्वास रखता है। एक राष्ट्र का सर्वांगीण विकास एवं समरसता पूर्ण विकास तभी संभव है जब महिलाओं को समझ में यथा स्थान व पद दिया जाए। नारी मुक्ति आंदोलन के अंतर्गत 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से भारत में स्त्रियों द्वारा अन्याय के खिलाफ स्वर उठाना प्रारंभ हो गया था परंतु नारी मुक्ति आंदोलन यूरोपीय समाज की देन कही जा सकती है। स्त्रियों के प्रति भेदभाव की भावना दुनिया भर में फैली थी। पश्चिमी देशों में नारीवाद की शुरुआत फ्रांसीसी क्रांति से मानी जाती है। फ्रांसीसी क्रांति में स्त्रियों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था। इससे पूर्व स्वतंत्रता, समानता तथा बंधुत्व पुरुषों के लिए आरक्षित था। 

उन्नीसवीं शताब्दी में पश्चिमी देशों की स्त्रियां शिक्षा, नौकरी, संपत्ति के अधिकार मताधिकार सहित सभी नागरिक अधिकारों के लिए लगातार संघर्ष करती रही और उन्हें काफी हद तक अर्जित भी किया, लेकिन उनकी नागरिकता दोयम दर्जे की ही थी और पूंजीवादी उत्पादन तंत्र में वे निम्नस्तरीय गुलामों में तब्दील कर दी गयी। फिर भी कुछ समकालीन क्रांतियां ऐतिहासिक तौर पर नारी मुक्ति संघर्ष को एक कदम आगे ले आई। उन्हें सामंती समाज के निरंकुश दमन से एक हद तक छुटकारा दिलाया। सामाजिक उत्पादन में उनके भागीदारी की स्थितियां पैदा की और उनके भीतर अपने अधिकारों, स्वतंत्र अस्मिता और स्वतंत्र पहचान के लिए लड़ने की, सामाजिक- राजनीतिक क्रियाकलापों और संघर्षों में हिस्सा लेने की और एक नई जमीन पर खड़े होकर यौन उत्पीड़न का विरोध करने की चेतना पैदा की।

इसी समयावधि में 28 फरवरी 1909 को अमेरिका में सोशलिस्ट पार्टी के आहवान पर महिला दिवस सबसे पहले मनाया गया। 1910 मैं सोशलिस्ट इंटरनेशनल के कोपेनहेगन सम्मेलन में अंतरराष्ट्रीय दर्जा दिया गया। उस समय इसका प्रमुख ध्येय महिलाओं को वोट देने का अधिकार दिलवाना था। उस समय अधिकतर देशों में महिलाओं को वोट देने का अधिकार नहीं था। 1911 से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस मनाने की परंपरा शुरू हुई।1917 में रूस की महिलाओं ने महिला दिवस पर रोटी और कपड़े के लिए हड़ताल पर जाने का फैसला  किया।यह फैसला ऐतिहासिक महत्व की मानी जाती है। भारत में नारी मुक्ति तथा देश की गुलामी से मुक्ति की लड़ाई समानांतर रूप से लड़ी गई। राष्ट्रीय आंदोलन में एक बार फिर समाज को स्त्री शक्ति की आवश्यकता महसूस हुई। यह वही स्त्रियां थी जो सदियों पूर्व अज्ञानता के अंधकार में धकेली जा चुकी थी। 

नेतृत्वकर्ता ,समाज से ज्ञान व कुरीतियों से मुक्त होकर स्वतंत्रता संग्राम में सम्मिलित होने की अपील कर रहे थे। इस अर्थ में भारतीय स्त्रियों का मुक्ति आंदोलन पश्चिमी वूमेन लिबरेशन से थोड़ा सा भिन्न है।1828 में राजा राममोहन राय ने महिलाओं की दशा सुधारने हेतु गहन आंदोलन चलाया। परिणाम स्वरुप 1819 में सती प्रथा विरोध अधिनियम पारित किया गया। और इसी समय बाल विवाह की समाप्ति,स्त्री शिक्षा के प्रचार - प्रसार हेतु प्रयत्न किए गए। प्रसिद्ध समाज सुधारक दयानंद सरस्वती ने ब्रह्म समाज की स्थापना कर कुरीतियों के विरुद्ध आंदोलन चलाया। स्त्री शिक्षा,बाल विवाह निषेध और विधवा विवाद हेतु अनेक समाज सुधार कार्य किये। अनेक मुद्दों पर समाज के कड़े विरोध के बावजूद कई अभियान आज भी जारी है। 

राष्ट्रीय आंदोलन में भारतीय महिलाओं ने हर कदम पर पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर अंग्रेजी सत्ता से संघर्ष किया। आगे चलकर महात्मा गांधी के आह्वान पर हजारों की संख्या में अमीर- गरीब, शिक्षित और अशिक्षित स्त्रियां दहलीज से बाहर निकल पड़ी।और राष्ट्रीय आंदोलन में उनकी भागीदारी ही नहीं नेतृत्व क्षमता भी सिद्ध हुई। राष्ट्रीय आंदोलन में भीकाजी कामा, एनी बेसेंट,सरोजिनी नायडू, राजकुमारी अमृत कौर, विजय लक्ष्मी पंडित जैसे अनेक स्त्रियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही। लंबी लड़ाई के पश्चात आज भारत की महिलाएं कानूनी स्तर पर पुरुषों के संपर्क खड़ी है। भारतीय संविधान में वर्णित समस्त मौलिक अधिकारों में स्त्री पुरुष को समान माना गया है। 

इस दौरान की उपलब्धियां भी हासिल हुई उदाहरण के लिए मताधिकार तथा महत्वपूर्ण राजनीतिक पदों पर नियुक्त होने के अधिकार के साथ-साथ विवाह संपत्ति में समान अधिकार उल्लेखनीय है। स्वास्थ्य की दृष्टि से बालिक होने की आयु में विवाह अधिकार महत्वपूर्ण योगदान किया ।आज जो ऐसा कोई भी क्षेत्र नहीं जहां महिला कार्यरत नहीं है। इस प्रकार महिला सशक्तिकरण का संबंध महिलाओं के तरक्की और पुरुष प्रधान समाज में बराबरी के स्थान दिलाने से है। विश्व भर में महिलाओं और पुरुषों की आबादी समान होते हुए भी उन्हें बराबर का सम्मान नहीं मिलता। अतः महिला सशक्तिकरण के अंतर्गत शोषण के विरुद्ध आवाज उठाना और सामाजिक संबंध से प्रमुख मुद्दे आते हैं जिन पर गंभीरता से विचार करने की आवश्यकता है। नारी सम्मान में दो लाइन- चुप रहना मेरे कमजोरी नहीं, शोर मचाने में यकीन नहीं, मेरी सफलता मेरी आवाज बनेगी।

- डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक (मनु)

सह प्राध्यापक, शोध निर्देशक (शिक्षा)
ग्रेसियस कॉलेज ऑफ़ इंस्टीट्यूट अभनपुर, रायपुर, छत्तीसगढ़ 
लेख 7122640962281547139
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