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सुर्ख पलाश


अनंत चले जा रहे ये रास्ते सारे
बारिश में भीगे काले विभोर चमके 
ठंडी में ठिठुर कर हुए शुष्क मैले
मानो आँखें बंद है ध्यान लीन मग्न

कहीं कोई इमारतें हैं खड़ी ऊँची 
कभी कोई दफ़्तर या कारख़ाना
ये हरे हरे से पेड़ भी खड़े पाये गये 
कहीं चंपा के तो कहीं बोगनवेल

ऐसे में एक सुर्ख़ सुंदर सरगोशी
कहीं अध खिले कही विस्तृत रेशमी
गर्मी के आनेकी खबर लिए मुसकाते
जैसे प्रकृति के भेजे हुए हैं दूत

पलाश के चटक लाल फूल 
ब्ब्रह्मा विष्णु महेश इनमें करे निवास 
वेद करते इसकी महिमा का वर्णन 
होली के रंग बनाये इनसे खेलें हम

वीरान सूखे रास्ते बेरंग से जब चले
हवायें गर्म बहे लू के चटके दिये
पलाश खिले लाल रंग बिखेरे 
जीवन है अब भी सुंदर यह दर्शाये

- डॉ. हेमा मेनन
समाचार 8275524907387183431
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