मां
https://www.zeromilepress.com/2024/03/blog-post_53.html
पर पढ़ने बैठाती हर दिन रात।
नहीं लिखा ठीक से, फिर लिख एक बार।
यही कहती मां हर बार।
चल उठ, जा जल्दी स्कूल।
पढ़ लिख ले और बन जा कुछ ।
यही कहती मां हर बार।
पढ़ेंगी लिखेंगी बन सकती अफसर
बैठना है लाल दिए की गाड़ी में तुझे।
यही कहती मां हर बार
मां ने नन्हीं आंखों को दिए ख्वाब बड़े-बड़े
यह कहती मां हर बार
ज़िद पर ठानी मां की हर बात।
ख्वाब पूरा करना इस बार
कुछ कर दिखाने की चाहत
याद दिलाती मां की हर बात।
जब कुछ बनाकर गई मां के पास
रूक ना पाए आंसू एक भी बार।
लगा के सीने से कहती हर बार मां
मां मेरी थी अनपढ़ गवार।
पर पढ़ने बैठाती हर दिन रात।
नहीं लिखा ठीक से, फिर लिख एक बार।
यही कहती मां हर बार।
चल उठ, जा जल्दी स्कूल।
पढ़ लिख ले और बन जा कुछ ।
यही कहती मां हर बार।
पढ़ेंगी लिखेंगी बन सकती अफसर
बैठता है लाल दिए की गाड़ी में तुझे।
यही कहती मां हर बार
मां ने नन्हीं आंखों को दिए ख्वाब बड़े-बड़े
यह कहती मां हर बार
जिद पर ठानी मां की हर बात हर।
ख्वाब पूरा करना इस बार
कुछ कर दिखाने की चाहत
याद दिलाती मां की हर बात।
जब कुछ बनाकर गई मां के पास
रूक ना पाए आंसू एक भी बार।
लगा के सीने से कहती हर बार
वाह.. रे मेरी बिटिया तुझ पर है मुझको नाज
- डॉ मिनाक्षी सोनवणे, हिंदी विभागाध्यक्षा
-एल ए डी और श्रीमती आर पी महिला महाविद्यालय, नागपुर