मेरा किसन
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बात कुछ इस तरह की है -
एक दिन मैं अपनी धुन में गाड़ी चला रहा था। गाड़ी तेज रफ़्तार में थी. अचानक सामने एक कुत्ता आ गया, मैंने ब्रेक कसी, लेकिन बेचारे निरीह अबोल जानवर को चोट पहुंची। वह कराहता हुआ दर्द से चीखता हुआ एक ओर हो गया.
हूट हूट !
लगा की चाबुक की आवाज आयी। पलटकर देखा। किसन के बदन पे कोड़े के ताजे निशान थे।
एक दूसरा वाकिया --
दुबई की यात्रा पे था. समंदर के किनारे हम सब एकट्ठे हुए थे। समंदर के बीच एक छोटे से जहाज पर कोई पचास साठ लोगों का ग्रुप था। हंसी ठहाकों के बीच मदिरा की बोतलें टकरा रहीं थीं। मधुर संगीत गूंज रहा था। कुछ युवतियां डांस करने लगी-- बेली डांस। फिर संगीत बदल गया। युवतियों के बदन पे नाम मात्रा वस्त्र रह गए थे। नर्तकियां डोल रहीं थीं। और मन डोल रहा था।
छाट छाट।
फिर आवाज आई। पलटकर देखा, किसन के बदन पे बहुत से कोड़ों के निशान थे। बदन से खून रिस रहा था।
अस्पताल में राउंड ले रहा था। अनेक मरीजों को देखने के पश्चात पेट में चूहे कुदने लगे।सेक्रेटरी को कुछ समय मरीज न भेजें कहकर मैं टिफिन खोल भोजन करने लगा। पहला निवाला मुख में लेने ही वाला था कि फोन बजा, एक मरीज सिरीयस हो गया, जल्दी आएं, टिफिन बंद किया और दौड़ा। मरीज की स्थिति बहुत बिगड़ चुकी थी। काफी जद्दोज़िहाद के बाद स्थिति कुछ संभली। जी में जी आया। एक आवाज सुनाई दी वाह।
मुड़कर देखा, किसन मुस्कुरा रहे थे।
मेरी आशाएं, इच्छाएं, कामुकता, लालच, क्रोध, वासना, सब हैं उस कोड़े के तरह जो किसन को दर्द देते हैं।
जो पल मैं अपने आप को औरों के लिए भूल जाता हूं, वो किसन के घाव पे मलहम की तरह होते हैं। और किसन कौन.. ? किसन है मेरी आत्मा, जो हर पल कोड़े की मार सह रहा था। और लहू लुहान हो रहा था।
- डॉ. शिवनारायण आचार्य ‘शिव’
नागपुर, महाराष्ट्र