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गणगौर : राजस्थान का प्रमुख लोक पर्व


गौर ए गणगौर माता खोल ए किवाड़ी...

होली के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिप्रदा से सोलह दिन तक चलने वाली गणगौर पूजा का त्योहार राजस्थान का प्रमुख लोक पर्व  है। राजस्थान के पर्व,उत्सव और त्यौहार में लोक संगीत, नृत्य,और कला संस्कृति की अनूठी व अलौकिक मिशाल देखने को मिलती है। गणगौर का त्योहार राजस्थान के अलावा उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश, हरियाणा और गुजरात के कुछ इलाके में  बड़े ही उत्साह ओर उमंग  के साथ मनाया जाता है। अखंड सौभाग्य का प्रतीक व किशोरियों का गौरी पूजन उत्सव भी कहा जाता है। गणगौर का त्यौहार महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है।धार्मिक मान्यताओं के अनुसार गणगौर का पर्व ईसर (शिव) गणगौर (पार्वती) की अर्चना का  प्रतीक माना गया है । 


गणगौर की पौराणिक कथा -

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार  भगवान शिव और माता पार्वती भ्रमण के लिए जा रहे थे, उनके साथ में नारद जी भी थे। जब वे एक गांव में पहुंचे तो निर्धन परिवार की महिलाओ ने बड़ी श्रद्धा और भक्ति से उनका स्वागत सत्कार किया। माता पार्वती ने उनकी सच्ची श्रद्धा और भक्ति से प्रसन्न हो कर उन पर सुहाग रस छिड़क दिया। उसके पश्चात उच्च और धनाढ्य परिवार की महिलाएं अनेक तरह की मिठाई और पकवान ले कर पहुंची ।भगवान भोले नाथ ने माता पार्वती से खा की  आपने सारा आशीर्वाद तो उन निर्धन महिलाओ को दे दिया।अब इनको आप क्या देंगी ? माता ने कहा इनमें से जो भी सच्ची श्रद्धा से यहा  आई है उन पर ही इस विशेष सुहागरस के छींटे पड़ेंगे वो सौभाग्यशाली होगी। तब माता पार्वती ने अपनी अंगुली से रक्त के छींटे लगाए जो सच्ची श्रद्धा से आई उन पर पड़े और वे धन्य हो गई। अपने ऐशवर्य का दिखावा करने वाली महिलाओं को निराश लौटना पड़ा। उस दिन  चैत्र मास की शुक्ल तृतीया थी तब से आज तक चल रही परंपरा के अनुरूप महिलाए तृतीया के दिन भगवान शिव यानी गण और गौर यानी माता पार्वती की पूजा करती है।

समूह के रूप में पूजन होता है -

गणगौर पूजन एक समूह के रूप में की जाती है । प्रत्येक समूह में एक - नव विवाहिता युवती के साथ 10 -15 किशोरिया होती है ।
सदियों से चल रही इस परम्परा के अनुसार शादी के बाद हर नवविवाहिता युवती को सर्व प्रथम आने वाले गणगौर पर्व पर गणगौर पूजन करना आवश्यक माना जाता है । और नव विवाहिता गणगौर पूजा करने अपने मायके आती है।कहा जाता है कि एक नव विवाहिता अपने सुहाग (पति) के लिए गणगौर पूजन करती है तथा इसके साथ पूजने वाली किशोरियों की अर्चना सुयोग्य व सुन्दर वर की प्राप्ति के लिए की जाती है । होली के त्यौहार के दूसरे दिन चैत्र कृष्ण प्रतिप्रदा से गणगौर पूजने वाली युवतियों एवं किशोरियों की तैयारिया शुरू हो जाती है । दिनचर्या के मुताबिक भौर में 4 -5 बजे स्नान करके समूह के रूप में बावड़ी, कुआ या तालाब से हरी दूब व पानी लेने जाती है। इस प्रकार यह नित्य क्रम 16 दिन तक प्यार,आस्था, उमंग एवं उत्साह से लोक गीतों की मधुर स्वर लहरें बिखेरते हुए चलता रहता है ।

मिट्टी की मूर्तिया बनाई जाती है -

शीतलाष्ठी के  दिन युवतियां नये रंग बिरंगे परिधानों में सज-संवर कर कुम्हार के घर चाक की मिट्टी  लेने जाती है तथा उस मिट्टी से ईसर  और गणगौर एवं कानीराम, सालण, रौवा ये पांच मूर्तिया बनाई जाती है । गणगौर के लोक गीतों में बिरमादत्त जी (ब्रह्मा) तथा उनके दो पुत्रों ईसरदास (शिव) एवं कानीराम (विष्णु) पुत्री रौवा (रोहिणी) व दामाद सूर्य (सूरजमल) का उल्लेख भी बहुत ही सुन्दर ढंग से किया जाता है । युवतियां दोपहर में गणगौर को पानी पिलाने तथा रात्रि में बनौरा निकालने की दैनिक क्रिया भी करती है  । समूह की प्रत्येक किशोरी क्रम: से बनौरा निकालती है।गेंहू चने की घूघरी का प्रसाद लगाकर वितरित करती है। तथा रविवार को सूर्यभगवान का उपवास रखती है ।
      
युवतियां सुबह - सुबह बाड़ी में दूब लेने जाते समय ये लोक गीत गाती है -

बाड़ी वाला बाड़ी खोल, 
बाड़ी की किवाड़ी खोल।
छोरियां आई दूब  न..
           
सोना रो चिटियो हाथ     
में, ईसरदास जी बौय 
बाय न जाय।
बिरमादत्त जी बौय बा          
न जाए, झखर  झारी 
हाथ में..
बहू गौरा सिंच बा न
जाए..
 
युवतियां सुबह बाड़ी से दूब लेकर आने के बाद घर पर पूजा करते हुए गीत गाती है -

गौर ऐ गणगौर माता 
खोल किवाड़ी,
बाहर आयी रौआ-सौआ 
पूजन वाली..

काचा- काचा गोबलिया 
कुण् काडे राज,
ईसरदास भरतार, गौरा 
काडे राज..

ईशर - गणगौर की पूजा करने के बाद दूब के 16 तार लेकर सुहागिन महिलाये ये गीत 16 बार गाती है जबकि कुवारी युवतियां इस गीत को 8 बार गाती है।

पूजा के बाद ये गीत गाया जाता है -

गोर गोर गोमती,ईशर पूजे पार्वती,
पार्वती के आला टीका, गोर के सोने का टीका..

रात्रि में युवतियां बनोरा निकालते हुए गीत गाती है -

ऐ मोती संमदरियां में 
निपजे, सौव म्हारे 
ईसरदास र,
कान बधाओं म्हारी 
गौरल को..

ईसरदास जी क मांडी 
गणगौर, बहू गौरां
क मांडो झूमर कड़ो,
थारै कोठे तो सोव 
चन्द्रहार, कोठे सोव झूमर        
कड़ो..

ईसर जी तो पेचों बांधे, 
गौरा बाई पेचों सवारे 
ओ राज,
म्हें ईसर थारी साली 
हां..
      
चैत शुक्ल तृतिया के दिन राजस्थान में अनेक स्थानों पर गणगौर के मेले लगते है  एवं गणगौर की सवारी बड़ी धूम -धाम से निकाली जाती है । विशेष कर जयपुर में गणगौर की सवारी व मेला देखने योग्य होता है । गणगौर समापन के दिन युवतियां नये - नये परिधान पहन कर समूह के रूप में लोक गीत गाती हुई गण्गौर को कुए या तालाब में विसर्जन करती है । युवतिया इसे गणगौर को सुसराल भेजना मानती है । गणगौर को विदा करते समय ये गीत गाया जाता है -
‘बिरमादत्त जी थारी पोल संभाल गौर चली घर आप कै’ इस प्रकार 16 दिन से चल रहा ये उमंग  और उत्साह का पर्व गणगौर की विदा के साथ सम्पन्न हो जाता है ।
तीजं त्युंवहारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर -
अर्थात त्यौहार पर्व श्रावणमास की तीज से प्रारम्भ होते है और गणगौर विर्सजन के साथ चार माह के लिए त्यौहारों का सिलसिला बन्द हो जाता है। 

- डॉ. शंभू पंवार, (विश्व रिकार्ड धारक)

अंतर्राष्ट्रीय, लेखक, पत्रकार-विचारक,
चिड़ावा, झुनझुनु (राजस्थान)

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