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ध्यान की दुकान खोल ध्यानी बिकने लगा : योगेश समदर्शी


नागपुर/भोपाल। दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी नगर, भोपाल में दिनांक 6 जून 2024 को शाम 4.30 बजे आरिणी चैरिटेबल फाउंडेशन एवं दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय के संयुक्त तत्वावधान में साहित्यिक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसमें  'वर्तमान काल में छन्दों की प्रासंगिकता' बिषय पर मुख्य वक्ता के रूप  में गाजियाबाद से पधारे योगेश समदर्शी, कवि एवं प्रकाशक, समदर्शी प्रकाशन ने कहा कविता भाव सरिता की तरह है।  और छंद जैसे उस सरिता के तट को सजा लिया गया हो। संवेदना को भाव की चासनी में पाग कर विधान की शुचिता में बुन कर रसों से सजा कर, अर्थ की विराट विरासत को सूत्र वाक्य में समाहित कर देना ही छंद है।  छंद ही श्लोक है और श्लोक ही मंत्र है।  मंत्र ही मन और मंतव्य को सधता है।  छंद और स्वच्छंद दोनों में कोई विशेष अन्तर नहीं मात्र तपस्या और साधना का अन्तर है।  बहती सरिता से ध्वनि आ रही है।  इस ब्रह्मांड में हर तरफ ध्वनि है  शोर है किन्तु शोर और संगीत में अन्तर है। जब शोर को सात सुरों के विधान में बांध कर संचारित किया जाता है तो शोर संगीत बन जाता है।  छंद और स्वच्छंद का अन्तर होता है। 
आपने बहुत सारे छंदों का प्रस्तुतिकरण दिया। जैसे दोहा, चौपाई, सोरठा, घनाक्षरी आदि। 
आपने छन्द के तीखे तीर जैसे 


प्याऊ व छबील वाले, देश में न जाने कैसे
बोतलों में बंद हो के, पानी बिकने लगा
दान वाली गाय बिकी, बेटियां भी हाय बिकी 
टके दो टके में आज, प्राणी बिकने लगा 
गुरु और चेले वाली, तोड़ के परम्पराएं 
गुरु ज्ञान बेचता है, ज्ञानी बिकने लगा 
योग ध्यान प्राणायाम, साधना के मार्ग बिके 
ध्यान की दुकान खोल, ध्यानी बिकने लगा। 


वक्ता के रूप में मेरठ से पधारे श्री सुल्तान सिंह सुल्तान, राष्ट्रीय ओज कवि एवं गीतकार, ने अपने विचारों एवं रचनाओं के माध्यम से संवाद स्थापित किया  एवं कहा छंद श्रुत काव्य या साहित्य की वाचिक परम्परा का मूल है।  हमारे छंद रस पूर्ण तो हैं ही ये याद करने में सहज और सरल है।  छंद को  ही साहित्य कहा गया था। पद्य और गद्य का मूल अन्तर ये ही है  कि पद्य को गया जा सकता है।  इसी लिए कविता का मुख्य गुण उसकी गेयता है  तुकबंदी है। अतुकांत कविता के नाम पर इस गेयता पर कुठाराघात हो रहा है जो ठीक नहीं।  आपने वीररस की जो रचनाएं सुनाईं उससे हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज गया। 

आपकी शिराओं में जो जमने लगा है आज। 
आया हूँ जगाने उसी सोये हुए रक्त को। 

और 

शिशु यहां सिंहों के दांत गिनने के लिए। 
मुंह में हाथ डाल जबडों को फाड़ देते हैं। 


कार्यक्रम के अध्यक्ष  मध्यप्रदेश लेखक संघ के अध्यक्ष डॉ राम वल्लभ आचार्य ने छंद की विस्तृत जानकारी प्रदान की और बताया कि एक करोड़ सत्तर लाख छंद भारत में मौजूद रहे हैं। लेकिन पचास प्रमुख छंदों में भारतीय साहित्यकार सृजन करते हैं। 

सुरुचिपूर्ण ढंग से  भोपाल के वरिष्ठ साहित्यकार श्री सुरेश पटवा ने कार्यक्रम का संचालन किया। स्वागत भाषण करुणा राजुरकर, सचिव, दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय ने दिया। कार्यक्रम की रुपरेखा डॉ मीनू पांडेय नयन, अध्यक्ष आरिणी चेरिटेबल फाउन्डेशन ने दी। रामराव वामनकर, अध्यक्ष, दुष्यंत कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय ने आभार प्रकट किया। सरस्वती वंदना प्रबुद्ध साहित्यकार विनोद जैन ने प्रस्तुत की। भोपाल के छंद मर्मज्ञ साहित्यकारों ने अपनी गरिमामयी उपस्थिति से कार्यक्रम को सफलता प्रदान दी।
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