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नजरें


कुछ तेरी चुलबुली नज़र
यूं गुल खिलाती हैं, 
नज़र क्या चीज़ है, 
नज़रिया बदल देती हैं।

कसमें खाईं थीं,  
न देखेंगे फिर उधर,
दिल बेवफा बन बैठा,
देख उसकी शोख़ नज़र। 

देख उसकी 
कातिल नज़र,  
दुश्मन दिल 
बगावत पर आया उतर,  
दिल अपना ही था मगर,
आज वो भी बन गया
मीर जाफ़र।

 - डॉ. शिवनारायण आचार्य ‘शिव
    नागपुर, महाराष्ट्र
काव्य 295148676996919073
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