Loading...

जंग स्त्री की


स्त्री तू सबको प्यार करे
बदले में तुझे तिरस्कार मिले 
अपना सम्मान पाने की खातिर 
जंग स्त्री की जारी है।

स्त्री तु प्रकृति का विस्तार करें 
बदले में तुझे अपमान मिले 
अपनी जगह बनाने की 
जंग स्त्री की जारी है। 

स्त्री तू घर, बाहर का काम करें 
बदले में कुदृष्टि का शिकार बने
अपना वज़ूद पाने की 
जंग  स्त्री की जारी है।

स्त्री तू अपमान सहकर मुस्कुराती रहे 
बदले में सिर्फ दर्द मिले 
अपना वजूद पाने की 
जंग  स्त्री की जारी है।

स्त्री तू बेटी, माँ, पत्नी, बहन बन 
बदले में तू सेवा करें 
अपने लिये दो बोल मीठे सुनने
को जंग स्त्री की जारी है।

- मेघा अग्रवाल
   नागपुर, महाराष्ट्र
काव्य 1286964900951625040
मुख्यपृष्ठ item

ADS

Popular Posts

Random Posts

3/random/post-list

Flickr Photo

3/Sports/post-list