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काश, सिंध प्रांत दोबारा अखंड भारत का हिस्सा बने...!


विस्थापित सिंधी समाज की अब भी प्रबल कामना 

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- महेश कुमार शर्मा (वरिष्ठ पत्रकार)
   जरीपटका, नागपुर 
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नागपुर। आधी सदी से भी ज्यादा अवधि तक पड़ोसी मुल्क की अमानवीय एवं कायराना गतिविधियों को झेलने के बाद 'पहलगाम में निर्दोष हिन्दुओं के सामूहिक नरसंहार' ने आखिरकार भारत का धैर्य खत्म कर दिया और पाकिस्तान को युद्ध के लिए ललकार कर, उसकी औकात दिखानी शुरू कर दी. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दूरदर्शितापूर्ण नेतृत्व में उनकी टीम के अनुभवी रणनीतिकारों और तीनों सेनाओं के प्रमुखों ने जबरदस्त आक्रमण कर, पहली ही रात में पाकिस्तान को छठी का दूध याद दिला दिया. उसके कई प्रमुख सैन्य केन्द्र तबाह कर दिए. बाद के घटनाक्रम में उसने विवश होकर युद्ध-विराम की घोषणा की और "उदार" भारत ने इस अनुरोध को स्वीकार भी कर लिया. लेकिन क्या "सांप" पर विश्वास किया जा सकता है...?

भारतीय सेना की प्रारंभिक कार्रवाई के बाद सिन्धी समाज में गजब का जोश देखा गया. सिन्धी बुजुर्ग पाकिस्तान की नेस्तनाबूदगी की हार्दिक कामना करते हुए अपने जीवित रहते मूल वतन को दोबारा अखंड भारत में शामिल होते देखना चाह रहे थे. 1947 में भारत-पाक के विभाजन के पश्चात सिन्धी और पंजाबी समुदाय ने जो त्रासदियां झेली हैं, वे विश्वविदित हैं. हिन्दू धर्म की रक्षा की खातिर उन्होंने मातृभूमि में अपार सम्पत्ति छोड़कर विस्थापित के रूप में भयंकर तकलीफें सहन कीं. परिश्रम के बूते उन्होंने न केवल स्वयं को पुनर्स्थापित किया, बल्कि देश की अर्थव्यवस्था में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया. कहावत है - "जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी...!" मां और मातृभूमि से दूर होने की मर्मांतक वेदना को केवल यह लोग ही समझ सकते हैं. ऐसे में उनकी इन भावनाओं को उचित सम्मान  दिया जाना चाहिए.

फिर वतन आजाद होगा...!

पाकिस्तान ने खुद ही अपनी मौत के वारंट पर दस्तखत कर दिए थे. यह बात समझ में आ जाने पर उसने गिरगिट की तरह रंग बदलकर येन-केन-प्रकारेण भारत को सीजफायर के लिए मना लिया. कारण कि पीएम मोदी और उनके अनुभवी रणनीतिकारों ने गहन मंथन कर, "यौद्धिक शतरंज" की ऐसी बिसात बिछाई कि पाकिस्तान के आतंकी प्यादे खून के आंसू बहाने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहे थे. इससे पहले सिन्ध प्रांत को एक बार फिर अखंड भारत में शामिल करने की आशा जागी थी, जो अब भी सिन्धी समाज में मौजूद है. यदि ऐसा सचमुच हो जाता है तो न केवल देश को मजबूती मिलेगी, लुप्तप्राय होती सिन्धु घाटी की सभ्यता, संस्कृति व भाषा का संरक्षण भी होगा. अलग राज्य होने से सक्षम युवाओं को उचित राजनीतिक अवसर मिलेंगे, जिससे समाज की अनसुलझी समस्याओं का निराकरण प्रभावी ढंग से होगा.

- घनश्याम कुकरेजा
   राष्ट्रीय संरक्षक : भारतीय सिन्धु सभा

वतन की मिट्टी माथे पर लगाएंगे

हिन्दू धर्म के महानतम पौराणिक ग्रंथ श्रीमद्भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा है कि दुष्टों का दमन करने के लिए की गई हिंसा "पुण्यकर्म" की श्रेणी में आती है. पीएम नरेन्द्र मोदी एंड टीम के नेतृत्व में भारतीय सेना ने इसी उपदेश को ध्यान में रखते हुए पाकिस्तान को हमेशा के लिए नेस्तनाबूद करने की सौगंध खाकर ऐसा हमला बोला कि वह खुद मौत मांगने लगा और युद्ध-विराम की गुहार लगाई. यदि पाकिस्तान फिर मस्ती करता है तो पुनः उसकी कमर तोड़कर सिन्ध प्रांत को भारत में शामिल किया जा सकता है. तब यह समाज अपने प्यारे वतन की माटी माथे पर लगाकर "अद्वितीय मोदी" को दिल से दुआएं देगा.

- कोडूमल धनराजानी
   उपाध्यक्ष : सिन्धु झूलेलाल वेलफेयर सोसाइटी

केवल कल्पनाएं ही की हैं

हम बाल्यकाल से ही अपने बुजुर्गों से सिन्ध की महिमा सुनते आए हैं. जब जब भी उनके सामने बैठते, वे मातृभूमि का बखान करता हुआ कोई ऐसा किस्सा छेड़ देते कि हमारा "बाल-मन" सिन्ध को देखने के लिए मचल उठता. हमारे बड़े-बूढ़ों की बातें इतनी लच्छेदार होतीं कि लगता था कि हमें पंख लग जाएं और वहां पहुंचकर जी भरकर मौज करें. लेकिन तब यह संभव नहीं था. हम केवल कल्पनाएं कर सकते थे. अब, जबकि हमारे लाड़ले व हठी प्रधानमंत्री मोदी ने आतंकवाद का नामोनिशान मिटा देने का संकल्प लिया ही है तो उम्मीद की एक किरण उदित हुई है कि हम अपने बचपन के सपने को युवावस्था में पूरा कर सकते हैं. कहते हैं न -"जहां चाह, वहां राह...!"

- डॉ. विंकी रुघवानी
   प्रशासक : महाराष्ट्र मेडिकल काउंसिल 

कला-जगत को निकट से परखेंगे

पाकिस्तान अगर अपने वादे से मुकरता है तो उसके "सर्वनाश" के बाद सिन्ध प्रांत अखंड भारत का अभिन्न अंग बन सकता है. यदि वास्तव में  ऐसा होता है तो भारतीय कला-जगत की सभी महत्वपूर्ण हस्तियों का पहला कार्य वहां की समृद्ध "सांस्कृतिक विरासत" का निकटता व बारीकी से अध्ययन करना होगा क्योंकि यह तथ्य निर्विवाद है कि सिन्ध के कला-जगत का आधार-स्तम्भ पूर्णतः वैज्ञानिक है. पुरातत्व विभाग को इस बात के सबूत "मोअनि जो दड़ो" की ऐतिहासिक खुदाई के दौरान मिल चुके हैं.

- किशन आसूदानी
   अध्यक्ष : सुन्दर कला संगम

इकानामी को मिलेगा बूस्ट

सिन्धी समाज के बंधु परिश्रम के मामले में विश्वविख्यात हैं. वे अथक मेहनत कर अपने पसीने से मिट्टी तक को सींचकर सोना उगाना जानते हैं. इन दिनों जैसी अटकलें लगाई जा रही हैं, अगर हालात अनुकूल बनते हैं और सिन्ध प्रांत अखंड भारत का अंग बन जाता है तो यकीनन देश की अर्थव्यवस्था को "बूस्ट" मिलेगा. जब भारत में बसे विस्थापित सिंधी ही छत इकानामी में अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान दे रहे हैं तो निश्चित रूप से सिन्ध प्रांत के बंधु भी‌‌ देशोत्थान के इस कार्य में अहम भूमिका निभाएंगे. उत्तर प्रदेश के सीएम योगी ने कुछ माह पूर्व ही एक सभा में घोषणा की थी - "हम पाकिस्तान से सिन्ध प्रांत वापस लेकर रहेंगे." लगता है कि उनके मुख से किसी दैवीय शक्ति ने यह कहलवाया था, जो वाणी कदापि असत्य नहीं होती.

- मनोहर आडवानी
   व्यवसायी एवं समाजसेवी.
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