हर दिन हो पर्यावरण दिवस
https://www.zeromilepress.com/2025/06/blog-post_34.html
पर्यावरण संरक्षण को लेकर साल में एक दिन अर्थात '5 जून' आता है, जब पूरी दुनिया 'विश्व पर्यावरण दिवस' मनाती है। यह दिन हमें प्रकृति के साथ हमारे रिश्ते को समझने और उस पर चिंतन करने का अवसर देता है, लेकिन दुर्भाग्यवश यह दिन अब दिखावे का दिन बनता जा रहा है। सोशल मीडिया पर पौधारोपण की तस्वीरें, झाड़ू लगाते लोग, पर्यावरण बचाने की अपीलें... और फिर अगले ही दिन वही पुरानी दिनचर्या, वही लापरवाही । क्या पर्यावरण दिवस का सार केवल एक दिन की औपचारिकता भर रह गया है?
2025 में पर्यावरण दिवस की विषय है 'प्लास्टिक प्रदूषण को हराएं' जो प्लास्टिक कचरे की बढ़ती समस्या और उसके समाधान की ओर ध्यान आकर्षित करती है। लेकिन अपने आसपास नजर दौड़ाएं, तो स्पष्ट हो जाएगा कि शायद ही कोई ऐसी वस्तु बची हो जिसमें प्लास्टिक का उपयोग न हुआ हो। कम या ज्यादा, लेकिन प्लास्टिक हमारे जीवन का ऐसा अभिन्न हिस्सा बन चुका है कि आने वाले समय में यह स्वास्थ्य और पर्यावरण की सबसे बड़ी चुनौती के रूप में सामने खड़ा है। एक शोध के अनुसार, हर वर्ष लगभग 11 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा जल निकायों में पहुंचता है, जो समुद्री जीवन, पारिस्थितिकी तंत्र और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डालता है। आज तो माइक्रोप्लास्टिक कण मिट्टी, जल और यहां तक कि मानव शरीर में भी पाए जा रहे हैं, जो गहरी चिंता का विषय है।
भारत में हर वर्ष लगभग 9.5 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है। इसमें से लगभग 60% का पुनर्चक्रण हो पाता है, लेकिन शेष कचरा नालियों, नदियों और खेतों में जाकर हमारे वातावरण को दूषित करता है। नगर निगमों को अपशिष्ट प्रबंधन की गंभीर चुनौती का सामना करना पड़ता है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में प्लास्टिक कचरे के निस्तारण के उचित साधन तक नहीं हैं। प्लास्टिक जलाना एक आम प्रक्रिया बन गई है, जो वायु प्रदूषण की एक नई समस्या खड़ी कर रही है। प्लास्टिक को लेकर कहीं न कहीं समाज में जागरूकता की भारी कमी दिखाई देती है। प्लास्टिक ने हमारे जीवन में साधारण से लेकर असाधारण तक सभी रूपों में जगह बना ली है। आम जनता को न तो इसके दुष्प्रभावों की समुचित जानकारी है और न ही विकल्पों की पहचान । समाधान की दिशा में सोचना होगा कि प्लास्टिक उत्पादों का पुनः उपयोग, प्रभावी पुनर्चक्रण प्रणाली का विकास, बायोडिग्रेडेबल और पुनः उपयोग योग्य सामग्री को बढ़ावा और स्कूल-कॉलेजों में पर्यावरण शिक्षा को अनिवार्य बनाना, ऐसे कुछ ठोस कदम हैं जिन्हें तत्काल अपनाने की आवश्यकता है।
सरकारों की भूमिका भी इसमें महत्वपूर्ण है। पर्यावरण के लिए सरकार सख्त कदम उठाने की आवश्यकता है कि हर घर, नुक्कड़, चौराहे, विद्यालय, पुलिस चौकी, अस्पताल आदि जगहों पर एक सीमित संख्या में श्रेणी अनुसार पौधे होने ही चाहिए। इससे न सिर्फ हरित आवरण बढ़ेगा, बल्कि पर्यावरण संतुलन में भी मदद मिलेगी पर क्या केवल सरकारी कदमों से काम हो जाएगा? बिल्कुल नहीं। शैक्षणिक संस्थान, उद्योग, और गैर-सरकारी संगठन भी प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ जागरूकता फैलाने और व्यावहारिक समाधान प्रस्तुत करने में प्रमुख भूमिका निभा सकते हैं। उदाहरण के लिए वृक्षारोपण, रैलियों और पोस्टर प्रतियोगिताओं का आयोजन किया जाए, जिससे युवाओं में पर्यावरण के प्रति गहरी चेतना आए।
प्लास्टिक प्रदूषण हो या किसी भी प्रकार का प्रदूषण इसके खिलाफ व्यक्तिगत और सामूहिक दोनों स्तरों पर प्रयास अनिवार्य हैं। कपड़े के थैले, स्टील / तांबे की बोतलें, पुनः उपयोग की आदतें आदि बड़ी भूमिका निभा सकते हैं। याद रखें कि छोटे-छोटे कदम बड़े परिवर्तन ला सकते हैं। आइए, हम सब मिलकर कृत-संकल्प लें कि प्लास्टिक प्रदूषण को हराएंगे और एक स्वच्छ, हरित और स्वस्थ भविष्य की ओर आगे बढ़ेंगे। पृथ्वी पर जीवन तभी संभव है, जब हम प्रकृति के साथ संतुलन बनाए रखें। यह समस्या किसी एक सरकार, संस्था या व्यक्ति के बस की बात नहीं है। यह तभी संभव है जब सरकार, समाज, शिक्षण संस्थान, उद्योग और हर नागरिक मिलकर साझा संकल्प लें और धरती को बचाने की दिशा में ठोस कदम उठाएं।
- प्रा. रवि शुक्ला
अध्यक्ष प्रयत्न फाउंडेशन ऑफ इंडिया
महाराष्ट्र