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रत्न



रत्न का सीधा मतलब 

नग होता है

कीमती पत्थर,

चमकता पत्थर,

दुर्लभ पत्थर 

इन की कीमत ज्यादा होती थी 

क्यों कि ये रेयर होते थे



तांबा,चांदी, सोना भी खदानों से 

बड़ी मेहनत से निकाला जाता है

जिस का इकोनॉमिक्स

बड़ा क्लिष्ट रहता।


दो हजार किलो अयस्क में 

एक ग्राम सोना मिलता है

ये अयस्क भी जमीन के

तीन चार किलोमीटर 

अंदर से निकालना पड़ता

तभी सोना किमती है


हीरा ढूंढना

और भी कठिन है

कहते है

दो सौ पचास टन मिट्टी में 

एक कैरेट हीरा मिलने की

संभावना होती है


मोती जिसे बड़ा दुर्लभ 

माना जाता है

दस हजार सीप में 

एक मोती मिलता है

तभी उस की कीमत होती है


ये सारी जानकारी देने के

पीछे कोई भूमिका है

धरती, समुद्र, आकाश,  

अपने अपने कीमती रत्न 

बड़े छिपाके रखते थे

लेकिन इन्हें इंसान नाम के 

जानवर की समझ नहीं थी

सनातन काल में 

समुद्र मंथन किया गया

जब इतने धन की या

संसाधन की आवश्यकता नहीं होगी

कलयुग के आने तक  

दो हजार सालों पहले तक

पृथ्वी समुद्र आकाश 

काफी सुरक्षित था

धरती को चलाने वाले 

सुलझे हुए लोग थे

बाद में ये सत्ता लालची, स्वार्थी, 

लोगों के हाथों में चली गई 

परिणाम हमारे सामने है

तभी एक ही अश्वत्थामा के

पास ब्रह्मास्त्र था

आज लाखों अनपढ़ 

गवारों के हाथों में 

एटम बम का कंट्रोल है


ऐसे ही अनपढ़ गंवारों ने

"यू नो" कल्चर्ड पर्ल्स बनाए,

उस से मन नहीं भरा तो 

लेबोरेट्री में डायमंड्स बनाए

आज अगर कोई डायमंड्स 

पहन कर इतराती तो लोग कहते

अरे छोड़ भाई "वो वाले है"

वैन गॉग,पिकासो, रवि वर्मा,

रघु राय के डुप्लीकेट चित्र बनाए,

टी सीरीज में गाने बनाए,

इस में उन्हें क्या 

हासिल हुआ पता नहीं

लेकिन काफी 

सारे डुप्लीकेट लोग बनाए


सोचोगे तो समझोगे की 

आज के जमाने में

कोई शाश्वत कलाकार नहीं हुआ

कोई भीमसेन,रविशंकर,

बिस्मिल्लाह, गावसकर, कपिल,

नहीं हुए

जिसे लार्जर दॅन लाइफ कहते है

आज के यू नो सेंसेशन... बस... 

हफ्ते भर के होते है

इन के पास आकडे होते है,

पर सांख नहीं होती

तभी तो सारे रियलिटी शो में

पुराने गाने, किस्से, लोग, ही चलते है


आज के लोगों ने

डुप्लीकेट रिश्ते बनाए,

जहाँ हँसी थी

मगर अपनापन नहीं।

डुप्लीकेट धर्म बनाए,

जहाँ ईश्वर था मगर करुणा नहीं।


सच्चाई की जगह

"इमेज बिल्डिंग" आई,

और किरदार की जगह

"ब्रँडिंग" बिकने लगी।


तभी एक खोखला पन दिखता है

कोई कुछ भी बन जाए तो

उपहास ज्यादा दिखता है

क्यों की इन में साधना की

कमी दिखती है


- राजेन्द्र चांदोरकर 'अनिकेत'

   नागपुर, महाराष्ट्र

काव्य 8335664998562388520
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