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पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे ने छत्तीसगढ़ की अस्मिता को अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर पहचान दिलाई - डॉ. विनय पाठक


नागपुर/रायपुर। विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज , छत्तीसगढ़ इकाई के द्वारा पद्मश्री डॉ.सुरेंद्र दुबे  को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। अध्यक्षता करते हुए डॉ.विनय कुमार पाठक, पूर्व अध्यक्ष  छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग, रायपुर,छत्तीसगढ़ एवं कुलपति थाणे विद्यापीठ,गोपालगंज,बिहार ने कहा कि पद्मश्री डॉक्टर सुरेंद्र दुबे छत्तीसगढ़ के एकमात्र ऐसे कवि थे, जिन्होंने छत्तीसगढ़ के अस्मिता को अंतरराष्ट्रीय क्षितिज पर पहचान दिलाई। 

हिंदी कविता के साथ छत्तीसगढ़ी शब्दों को ढालकर इस तरह प्रस्तुत करते थे,जिससे छत्तीसगढ़ की गौरवशाली सांस्कृतिक इतिहास से लोग परिचित हो सके। इनकी प्रस्तुति करने का ढंग ही ऐसा होता था कि श्रोतागण स्वस्थ मनोरंजन के साथ उनके शब्दों की जादूगरी और उसके माध्यम से हास्य व्यंग्य का आश्रय लेकर वाह-वाह करने को बाध्य हो जाते। छत्तीसगढ़ को इस विभूति का अनायास बिछोह हृदय विदारक ही कहां जाएगा। 

वक्ता डॉ. हंसा शुक्ला, प्राचार्य स्वामी स्वरूपानंद महाविद्यालय हुडको भिलाई ने पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए कहा कि उनकी कविता में संदेश है जो कि समाज को संगठित करता है।दुबे जी भाव भंगिमां को अच्छे से समझते थे। और उनकी कविता से युवा पीढ़ी भी काफी प्रभावित रहते हैं। और कहां की जिन्हें प्यार से ब्लैक डायमंड कहा जाता है। दुबे जी कहते थे जिंदा रहना है भारत में तो मर्यादा बहुत जरूरी है।

अतिथि डॉक्टर गोकुलेश्वर कुमार द्विवेदी सचिव विश्व हिंदी साहित्य सेवा संस्थान प्रयागराज ने कहा कि डॉ सुरेंद्र दुबे जी बहुत ही सरल तरीके से अपना पाठ को करते थे फेसबुक मित्र थे। अंजलि कुमार, बिलासपुर ने श्री दुबे जी के व्यक्तित्व को रेखांकित करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की। श्री शत्रुघ्न जी ने डॉ. दुबे के काव्य पाठ  श्री राम जी को रेखांकित करते हुए श्रद्धांजलि अर्पित किया। श्री संतोष शर्मा रायपुर छत्तीसगढ़ ने श्री दुबे जी को श्रद्धांजलि स्वरुप हास्य व्यंग सुनाया।

आयोजक संयोजक संचालन करते हुए डॉ. मुक्ता कान्हा कौशिक छत्तीसगढ़ प्रभारी ने कहा कि पद्मश्री डॉ. सुरेंद्र दुबे अपने विलक्षण हास्य, तीक्ष्ण व्यंग्य और अनूठी रचनात्मकता के माध्यम से न केवल देश-विदेश के मंचों को गौरवान्वित किया बल्कि छत्तीसगढ़ी भाषा को वैश्विक पहचान दिलाने में भी  राम भूमिका निभाई। 
थम गई सांस पर यादों में टाइगर अभी जिंदा है दहाड़ गूंजती रहेगी। श्रद्धांजलि अर्पित की।
कार्यक्रम का प्रारंभ डॉ. अवंतिका शर्मा के मां सरस्वती वंदना से हुआ। स्वागत डॉ. अनुरिमा शर्मा,व्याख्याता जे.आर दानी कन्या शाला रायपुर छत्तीसगढ़ के द्वारा किया गया। आभार डॉ.सरस्वती वर्मा प्राध्यापक महासमुंद के द्वारा किया गया। आभासी पटेल पर अनेक साहित्यकार,कवि, शिक्षाविद उपस्थित रहे।
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