आज प्रज्ञाचक्षु संत गुलाबराव महाराज का जन्मोत्सव
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अपनी जमा पूंजी आदि सर्वस्व न्यौछावर कर उन्होंने पांडुरंग पंत, लक्ष्मण भट, श्री जोशी जैसे पढ़े- लिखे विद्वानों से पश्चिमी दर्शन से लेकर संगीत, आयुर्वेद, थियॉसॉफी, इलेक्ट्रान सिद्धांत तक के ग्रंथों का श्रवण कर गहन शोध, चिंतन व मनन किया। इन विचार धाराओं और सिद्धांतों पर जब वे वक्तव्य देते, तो सुनने वाले हैरान रह जाते थे। मायर्स, स्पेन्सर, डार्विन आदि के ग्रंथों पर भी उनकी समीक्षा अत्यंत विचारणीय है। अमरावती स्थित उनके वाचनालय में आज लगभग 4 हजार ग्रंथ उपलब्ध हैं।
उनके विषय में विद्धानों में यह धारना प्रचलित है कि वे 'शब्द संयम' साधना सिद्ध थे, यही कारण था कि वे हर धर्म व संप्रदाय के शास्त्रों की सुंदर विवेचना करने में सक्षम थे। यहां तक कि पशु - पक्षियों की भाषा का भी उन्हें ज्ञान था। संप्रदासुरत, सुखपरसुधा, प्रियलीला महोत्सव, नित्यतीर्थ, साधु - बोध, अभंग, पदरचना, पत्राचार, निबंध आदि रचनाओं में उनके पारदर्शी व्यक्तित्व के दर्शन होते हैं।
संत गुलाबराव जी महाराज अपनी सारी ग्रंथ संपदा के प्रति विनयानवत स्वीकार करते हैं कि यह सारी संपदा संत ज्ञानेश्वर महाराज के ग्रंथों पर भाष्य रूप है। उन्होंने स्वयं को संत ज्ञानेश्वर महाराज की कन्या रूप में ही रखा। वे कहते थे, 'मुझे ज्ञानेश्वर मां ने गोद लिया' संत गुलाबराव जी महाराज एक ऐसी संत विभूति रहे जिन्होंने भारतीय वांगमय में परस्पर विरोधी दिखाई देने अथवा अनुभूत होने वाले विचारों और सिद्धांतों में अकाट्य समन्वय स्थापित किया। परस्पर विरोधी सिद्धांतों में सर्वग्राह्य समन्वय स्थापित करने वाले वे एकमात्र संत रहे। 6 जुलाई 1881 में जन्म तथा 20 सितंबर 1915 में उन्होंने बहमस्थान के लिए महाप्रस्थान किया।